सभी धर्मों में भौतिक जगत की उपलब्धियों को पाने के लिए ही पूजा पाठ करने की सलाह दी जाती है। इस कारण कुछ लोगों ने अपने को विशेषज्ञ घोषित कर उसकी शिक्षा देने का धँधा अपना लिया है और तदनुसार लोगों को मार्गदर्शित कर सिखाने लगे हैं कि ‘‘विश्वासे मिले वस्तु तर्के बहु दूर...’’ अर्थात् वस्तु की प्राप्ति विश्वास से होती है न कि तर्क से तथा यह भी कि ‘‘मजहब में अकल का दखल नहीं ’’ किया जाता। इसका परिणाम यह हुआ है कि भोले भाले अनुयायी , इन निहित स्वार्थी लोगों के हाथ के हथियार बन गए हैं। यदि सर्वसाधारण के मन में नित्यानित्य विवेक और वैज्ञानिक तर्कज्ञान का द्वार खोल दिया जाए तो धर्म के नाम पर इन्हें धोखा दिया जाना सम्भव नहीं हो सकेगा अथवा स्वर्ग और तीसरे संसार के आनन्द का प्रलोभन नहीं दिया जा सकेगा। परन्तु ये निहित स्वार्थी लोग इस बात को जानते हैं इसलिए वे जन साधारण को अज्ञानता के अन्धकार में ही भटकते रहने देना चाहते हैं। इस प्रकार भोले भाले लोग जो भी अपने खून पसीने से अर्जित करते हैं ये परजीवी तथाकथित विद्वान लोग उनमें भय और हीनता के बोध को जगाकर अपना लाभाँश लूटते रहते हैं। इस विज्ञान के युग में इन ठगों से बचा जा सकता है यदि हम किसी भी बात को या सिद्धान्त को स्वीकार काने से पहले उस पर अपने तर्क, विज्ञान और विवेक के आधार पर विश्लेषण कर लें।
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