Thursday, 27 December 2018

226 चिलम

226 चिलम

मुख्य सड़क से तीन चार किलोमीटर दूर बसे गाॅंव में आयोजित यज्ञकार्य के लिए मुख्य पुरोहित के रूप में आमंत्रित किए गए पंडितजी को सड़क से गाॅंव तक ले जाने के लिए यजमान ने बैलगाड़ी का प्रबंध किया। बस से उतरकर पंडितजी बैलगाड़ी से  थोड़ी देर ही आगे बढ़े थे कि एक नाले के समीप पेड़ के नीचे बैठे दो चरवाहे चिलम पीते दिखे। पंडितजी, उन्हें  देखते हुए आगे बढ़ते, मुश्किल से पाॅंच मिनट ही अपने मन पर नियंत्रण रख पाए और बैलगाड़ी चालक से बोले,
‘‘ भैया ! आपके पास चिलम है क्या?’’
‘‘ नहीं महाराज! मैं चिलम नहीं पीता‘‘
‘‘ अच्छा, तो थोड़ी देर रुको, मैं अभी आया’’ कहकर वे उन चरवाहों के पास पहॅुचे और बोले ,
‘‘मुझे चिलम पिलाओगे?’’
‘‘ लेकिन महाराज! हम लोग छोटी जाति के चरवाहे हैं’’ अचरज सहित डरते हुए वे बोले।
‘‘ अच्छा! तो बोलो शिव, शिव, शिव।’’
उनमें से एक झट से बोला, ‘‘महाराज! बिना बताए आपने मेरा नाम जान लिया आप तो बहुत पहुॅंचे हुए लगते हैें’’ और दोनों शिव शिव बोलते हुए दूर से ही जमीन पर लेटकर उन्हें प्रणाम करने लगे। पंडितजी ने उनके हाथ से चिलम लेकर दो तीन कश लगाए और बैलगाड़ी की ओर चल पड़े। उधर पूरे दृश्य को बैलगाड़ी चालक आश्चर्य से देखता रहा। गाॅंव पहुॅंचकर पंडितजी के स्वागत में स्थानीय पंडितों सहित यजमान खड़े थे पर बैलगाड़ी चालक ने धीरे से उनके कानों में देखे गए दृश्य का वर्णन कह सुनाया। सभी पंडित और समाज के अन्य लोग आगन्तुक पंडित को प्रधान पुरोहित बनाने तो क्या यज्ञमंडप में भी प्रवेश नहीं करने देने पर अड़ गए। स्थिति को समझ आगंतुक पंडित सबसे बोले,
‘‘ यह ठीक है कि चिलम पीना बहुत हानिकारक है, पर क्या शिव को श्मशान में बैठकर साधना करने से उन्हें अपवित्र और पतित माना जा सकता है?’’
‘‘ अरे! शिव को यज्ञ का देवता माना ही कहाॅं गया है जो उनका उदाहरण दे रहे हो? यदि मान भी लेें तो शिव, शिव हैं उनकी आप अपने से तुलना कैसे कर सकते हैं?’’ सभी एकसाथ चिल्ला उठे।
‘‘ मित्रो! शिव का नाम ही सबको पवित्र करने वाला होता है फिर वे लोग तो अनेक बार शिव शिव बोल चुके थे, उनमें से एक शिव ही था। जब सब कुछ शिवमय हो गया तो अपवित्रता कहाॅं रही?’’
सब स्तब्ध।