Saturday 28 March 2020

305 कोरोना गुरु (1)

305 कोरोना गुरु (1)

‘‘क्यों सेठ! क्या हाल चाल हैं?
‘‘क्या पूछते हो भैया! देखते नहीं ‘कोरोना’ के कहर का रोना घर घर में पसरा है।’’
‘‘ काहे को रोना? वह तो हमें सही ढंग से जीने का रास्ता सिखा रहा है।’’
‘‘ ये भी कोई शिक्षा हुई? स्कूल कालेज बंद, न मंदिर, न मस्जिद! न मिलना जुलना! न चहलपहल! न आना जाना। अरे! इसने तो देवमूर्तियों के दर्शन कर पाना भी दुर्लभ कर दिया है? सब धंधा चैपट हो गया, लोग मर रहे हैं?’’
‘‘ लेकिन यह भी सोचो जरा, अपने शरीर और घर के भीतर बाहर इतनी स्वच्छता रखने का काम इससे पहले कब करते थे? तथाकथित पवित्र स्थानों में भीड़ की भक्ति क्या देखी नहीं है? ’’
‘‘लेकिन देवदर्शन बिना कोई काम शुरु करना! नहीं नहीं ये तो बिलकुल ही गलत है।’’
‘‘ सेठ जी! पत्थरों और सप्तधातुओं से बनी मूर्तियों में तथाकथित देवता को खोजते हो पर अपने भीतर बैठे देवों के देव की अनदेखी करते हो। इसीलिए ‘कोरोना’ सिखा रहा है कि बाहर मत भटको और न ही व्हीआईपी बनकर अलग से दर्शन कर लेने का भ्रम पालो, आडम्बर और मन का मैल हटा कर मन को ही स्वच्छ बना लो देवता दिखाई देने लगेंगे।’’
‘’ अरे यार! क्या घर से बाहर भी न निकले कोई?’’
‘‘ क्यों नहीं, काम से ही बाहर निकलो, अनावश्यक भीड़ के अंग न बनो, वाहनों की होड़ में न पड़ो, अपने परिवार के साथ शेष समय बिताओ, यही ‘कोरोना’ कह रहा है।’’
‘‘ पर कितने ही लोग तो उसके प्रकोप से यों ही मरते जा रहे है, वह क्या?’’
‘‘ सही है, उचित स्वच्छता, सात्विक भोजन, यम नियम का पालन और संयमित जीवन से दूर रहने वाले लोग ही ‘कोरोना’ का भोजन बनते हैं।’’
‘‘तो क्या कोई आदमी काम धाम भी न करे? घर में ही बैठा रहे? दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति कौन करेगा?’’
‘‘ भैया! यह प्रकृति का नियम है कि जब जब असंतुलन उत्पन्न होता है वह अपने आप संतुलन बनाती है। यह अस्थायी व्यवस्था है जब हम स्वच्छता से रहने और सात्विक जीवन पद्धति को अपना कर सामाजिक संतुलन बना लेंगे ‘कोरोना’ गुरु प्रसन्न होकर स्वयं अंतर्ध्यान  हो जाएंगे।’’

Thursday 26 March 2020

304 धन्ना सेठ

304
धन्ना सेठ
पारिवारिक समस्याओं और आर्थिक संकट से जूझते हुए रवि, जैसे तैसे अपनी डिग्री पूरी कर बेरोजगारों की भीड़ में सम्मिलित हो गया। नौकरी की तलाश में चलते चलते एक दिन रास्ते के किनारे एक वृक्ष के नीचे कुछ सुस्ताने के लिए बैठा ही था कि साइकिल से जाते हुए एक अधेड़ व्यक्ति को दूसरी ओर से आते हुए दो युवकों ने धक्का देकर गिरा दिया और साइकिल पर टंगा बैग छीनकर भागने लगे। रवि उनके पीछे दौड़ा और कुछ दूर जाकर उनमें से एक युवक जिसके पास बैग था उसे पकड़ लिया, तीनों में संघर्ष हुआ । रवि के मुंह पर कुछ खरोंचें आईं पर वह बैग लेकर वापस देने उस व्यक्ति के पास पहुॅंचा।
व्यक्ति गदगद होकर बोला, ‘‘ भैया! तुमने यह बैग लौटाकर मेरा जीवन ही नहीं नौकरी भी वापस दिलाई है, मैं आजीवन आपका अहसानमन्द रहॅूंगा।’’
रवि निर्विकार भाव से पेड़ की ओर जाने लगा पर अचानक मुड़कर बोला,
‘‘ जरा दिखाना इस बैग में क्या है?’’
व्यक्ति ने फौरन बैग उसके हाथ में दे दिया। बैग में छोटे बड़े नोटों के अनेक बंडलों में से उसने पाॅंच पाॅंच रुपयों के नोटों का एक बंडल निकाल कर बैग उसे बापस दे दिया। व्यक्ति बोला,
‘‘ भैया! तुम्हारे इस बहादुरी भरे कार्य और ईमानदारी के लिए यह इनाम तो बहुत कम है, इस बैग में हमारे सेठ के कर्मचारियों का वेतन है जिसे मैं बैंक से निकाल कर ले जा रहा था। मैं उनका मुनीम हॅूं, तुम मेरे साथ चलो मैं उनसे तुम्हें बहुत बड़ा इनाम दिलाऊंगा।’’
‘‘ क्या नाम है तुम्हारे सेठ का?’’
‘‘धन्ना सेठ’’
‘‘वही जो धन्ना ब्राॅंड दूध की डेयरी भी चलाता है?’’
‘‘जी हाॅं, ठीक कहा, वह डेयरी भी उन्हीं की है।’’
‘‘ अरे! वह तो दूध में डिटर्जेंट और केमिकल मिलाकर बच्चों, युवकों और बूढ़ों सभी के जीवन से खिलवाड़ कर रहा है, मैं तो उसका पानी भी नहीं पी सकता’’
‘‘मुनीम साब! यह नोटों की गिड्डी वापस रख लो नहीं तो धन्ना सेठ तुम्हारे वेतन से काट लेगा’’ कहते हुए रवि संघर्ष पथ पर फिर बढ़ चला।

Saturday 21 March 2020

303 कोरोना

 कोरोना
भारतीय दर्शन में हमारे पूर्वजों ने सभी को स्वस्थ, सुखी और आनन्दमय जीवन जीने के लिए अपने गहरे अनुभवों और अनुसंधान से प्राप्त कुछ सूत्रों को समझाया है जिन्हें ‘नियम’ और ‘यम’ कहा जाता है। उन्होंने यह भी समझाया है कि इनका पालन न करने वाले कभी सुखी नहीं रह सकते। 
सभी की जानकारी के लिए यह बता देना उचित है कि ये नियम और यम क्या हैं। पाॅंच ‘नियम’ इस प्रकार हैं, ‘‘शौच’’ (भीतर और बाहर की सफाई कर प्रतिदिन स्वच्छ रहना), ‘‘संतोष’’ (जो भी प्राप्त है उसमें संतोष रखना न कि दूसरों को देखकर अंधी होड़ में दौड़ पड़ना), ‘‘स्वाध्याय’’ (सच्चे और हितकारक साहित्य का अध्ययन करना), ‘‘तप’’ (अपने मन और वाणी पर नियंत्रण रखना), ‘‘ईश्वर प्रणिधान’’(परमसत्ता के साथ अपने मन का तारतम्य जोड़े रखने का प्रयत्न करते रहना) आदि। इसी प्रकार पाॅंच ‘यम’ इस प्रकार हैं; ‘अहिंसा’(किसी भी प्राणी को मन कर्म और वचन से कष्ट न देना), ‘सत्य’(यथासंभव सच बोलना), ‘अस्तेय’(बिना पूछे किसी की कोई भी वस्तु न लेना), ‘ब्रह्मचर्य’(सम्पूर्ण जगत को ब्रह्म स्वरूप अनुभव करना), ‘अपरिग्रह’(आवश्यकता से अधिक धन या अन्य वस्तुओं का संग्रह न करना)।
अब विचार कीजिए ‘‘करोना वायरस’’ द्वारा किए जा रहे जन संहार पर। चीन में जन्मा यह घातक वायरस आज पूरे विश्व को जकड़ चुका है। इसका अभी तक कोई इलाज भी नहीं खोजा जा सका है। चीन की संस्कृति में मांसाहार की प्रधानता है, यम नियम का पालन करना तो कभी स्वप्न में भी नहीं देखा जाता इसलिए इस प्रकार की महामारियों को पनपने का अनुकूल अवसर मिलता है । चीन से संपर्क में आने वाले लोगों के द्वारा आज यह विश्व को अपनी चपेट में लेकर कुहराम मचा रहा है। अब प्रचार किया जा रहा है कि अनेक बार साबुन से हाथ धोएं, भीड़ में न जाएं, सेनीटाइजर का उपयोग करें , घर के भीतर रहें, बाहर जाएं तो माॅस्क पहने, घर पर रहकर ही कार्यालयीन कार्य करें ताकि इस महामारी को और अधिक फैलने से रोका जा सके। कुछ समय के लिए सभी प्रकार के आवागमन के साधान रोक दिए गए हैं। भीड़ एकत्रित करने वाले उपक्रमों जैसे माल, सिनेमा, बाजार आदि को बंद कर दिया गया है। ठीक है, हमें ये सभी उपाय करना चाहिए परन्तु ‘करोना’ के कारण ही सही, हम अपने पूर्वजों के द्वारा सुझाई गई जीवन पद्धति को याद कर लें और ‘‘यम तथा नियम’’ ईमानदारी से पालन करना प्रारंभ कर दें तो न केवल इस प्रकार की प्राण घातक बीमारियों से बचे रहेंगे वरन् स्वस्थ, सुखी और सानन्द जीवन को जी सकेंगे।

Wednesday 11 March 2020

302 वक्ता

302 वक्ता

जनगोष्ठियों या जनसभाओं में,
वक्ता अगण्य होते हैं।
कुर्सियाॅं सब भरी होती हैं पर, श्रोता नगण्य होते हैं।

प्रायोजित की गई भीड़ में
स्वयं थपथपाते वक्ता अपनी पींठ,
होड़ रहती है अधिकाधिक बोलने की।
इसलिये,
सुनना अनसुना कर, अन्य सभी सोते हैं!

पुराणकार "व्यासजी", जब ज्ञान बघारने पहुॅंचे भीड़ में,
तो उन्हें किसी ने नहीं सुना,
नहीं दिया ध्यान। और कुछ तो बोले-
इसे अपने पास ही रखो और बचाओ अपनी जान....
हम सब जानते हैं....
तुम जैसे बस, कहने को ही होते हैं!!

शायद इसीलिये,
विद्वान बढ़ते जा रहे हैं, ज्ञान घटता जा रहा है,
निर्दोष दंडित हो रहे हैं, न्याय बिकता जा रहा है।
हमारे कहने सुनने या बोलने बताने का क्या?
ऐसे तो रोज, सभी कुछ न कुछ कहते हैं! ! !
डाॅ टी आर शुक्ल, सागर मप्र।
11 जुलाई 2009

Saturday 7 March 2020

301 मूर्ति

 मूर्ति
‘‘ पापा! बाजार के उस अंधेरे से कोने में वह क्या है ?’’
‘‘ अरे ! तुम्हें नहीं मालूम ? ये महामहोपाध्याय पंडित दिवाकर जी की मूर्ति है, तुम लोगों को चैथी/पांचवी कक्षा में इनके बारे में नहीं पढाया गया ?’’
‘‘ क्या वही, जो संस्कृत और भारतीय दर्शन के मूर्धन्य विद्वान रहे हैं और शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर पाया ?’’
‘‘ वही हैं, तत्कालीन लोगों ने उन्हें सम्मान देने के लिए उनकी मूर्ति यहाॅं स्थापित की थी । यहीं पर, एकत्रित होकर, इस मैदान में कभी धर्म सभायें की जाती थीं परन्तु म्युनीसिपल ने अब यहाॅं बाजार बना दिया है।’’
‘‘ लेकिन मूर्ति की यह दुर्दशा ? शायद अनेक वर्षों से कोई देखरेख नहीं। न तो आस पास ही सफाई है और न ही मूर्ति पर। अरे ! उस पर तो मकड़ियों और पक्षियों का डेरा है, ओ हो ! उनका यह कैसा सम्मान ?’’
‘‘ यह तो मूर्ति है, इस युग में जीवित विद्वानों का तो इससे भी बुरा हाल होता है, बेटा ! ’’
‘‘ लेकिन क्यों ? ’’
‘‘ पता नहीं , तुम इस पर रिसर्च करना।‘‘

Monday 2 March 2020

300 महत्वपूर्ण चिन्तन का विषय

महत्वपूर्ण चिन्तन का विषय
(1)वे बहादुर सैनिक जो इस्लामिक धर्म की स्थापना के लिए युद्ध अर्थात् ‘जेहाद’ में भाग लेते हैं, अरबी भाषा में उन्हें ‘मुजाहिद’ कहा जाता है। वे मुजाहिद जो इस युद्ध में अपने प्राण त्याग देते हैं उन्हें ‘शहीद’ कहा जाता है; और वे जो यह युद्ध जीतकर जीवित बच जाते हैं उन्हें ‘गाजी’ कहा जाता है। 
(2)इसी प्रकार क्रिश्चियन धर्म की स्थापना के लिए युद्ध जिसे ‘क्रुसेड’(crusade) कहा जाता है, में अपने प्राण त्याग करने वालों को ‘मार्टर’ (martyr) कहा जाता है। 

प्रश्न यह है कि हमारे उन बहादुर वंशजों को जो अपने देश की रक्षा जैसे महान कार्य में अपने प्राण न्यौछावर करते हैं अथवा जनसामान्य की भलाई जैसे किसी अन्य महान कार्य के लिए अपना जीवन त्याग कर देते हैं उन्हें किस तर्क के आधार पर ‘शहीद’ कहा जाना उचित है? इसके बदले में उन्हें ‘‘दधीचि’’ कहा जाना अधिक उपयुक्त और सार्थक लगता है क्योंकि महर्षि दधीचि ने जनसामान्य की भलाई के लिए अपने जीवन का त्याग (sacrifice) किया था। उन्होंने अपना जीवन ‘जिहाद’ या ‘क्रुसेड’ में नहीं त्यागा था।

अब सोचिए, 
भारत में, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सम्पूर्ण देश की जनता के हित में प्राण न्यौछावर करने वालों जैसे, शहीद चंद्रशेखर आजाद, शहीद भगतसिंह और अनेक अन्य बहादुरों ने क्या ‘इस्लाम’ की स्थापना के लिए अपना सर्वस्व त्यागा था जो उन्हें अरबी भाषा में ‘शहीद’ कहा जाता है? 
भारत के इन अमर वीरों को उचित आदर देने के लिए हिन्दी अथवा संस्कृत का उपयुक्त शब्द है ‘दधीचि’, जिसका उपयोग नहीं किया जाता है, क्या यह सही है?