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धन्ना सेठ
पारिवारिक समस्याओं और आर्थिक संकट से जूझते हुए रवि, जैसे तैसे अपनी डिग्री पूरी कर बेरोजगारों की भीड़ में सम्मिलित हो गया। नौकरी की तलाश में चलते चलते एक दिन रास्ते के किनारे एक वृक्ष के नीचे कुछ सुस्ताने के लिए बैठा ही था कि साइकिल से जाते हुए एक अधेड़ व्यक्ति को दूसरी ओर से आते हुए दो युवकों ने धक्का देकर गिरा दिया और साइकिल पर टंगा बैग छीनकर भागने लगे। रवि उनके पीछे दौड़ा और कुछ दूर जाकर उनमें से एक युवक जिसके पास बैग था उसे पकड़ लिया, तीनों में संघर्ष हुआ । रवि के मुंह पर कुछ खरोंचें आईं पर वह बैग लेकर वापस देने उस व्यक्ति के पास पहुॅंचा।
व्यक्ति गदगद होकर बोला, ‘‘ भैया! तुमने यह बैग लौटाकर मेरा जीवन ही नहीं नौकरी भी वापस दिलाई है, मैं आजीवन आपका अहसानमन्द रहॅूंगा।’’
रवि निर्विकार भाव से पेड़ की ओर जाने लगा पर अचानक मुड़कर बोला,
‘‘ जरा दिखाना इस बैग में क्या है?’’
व्यक्ति ने फौरन बैग उसके हाथ में दे दिया। बैग में छोटे बड़े नोटों के अनेक बंडलों में से उसने पाॅंच पाॅंच रुपयों के नोटों का एक बंडल निकाल कर बैग उसे बापस दे दिया। व्यक्ति बोला,
‘‘ भैया! तुम्हारे इस बहादुरी भरे कार्य और ईमानदारी के लिए यह इनाम तो बहुत कम है, इस बैग में हमारे सेठ के कर्मचारियों का वेतन है जिसे मैं बैंक से निकाल कर ले जा रहा था। मैं उनका मुनीम हॅूं, तुम मेरे साथ चलो मैं उनसे तुम्हें बहुत बड़ा इनाम दिलाऊंगा।’’
‘‘ क्या नाम है तुम्हारे सेठ का?’’
‘‘धन्ना सेठ’’
‘‘वही जो धन्ना ब्राॅंड दूध की डेयरी भी चलाता है?’’
‘‘जी हाॅं, ठीक कहा, वह डेयरी भी उन्हीं की है।’’
‘‘ अरे! वह तो दूध में डिटर्जेंट और केमिकल मिलाकर बच्चों, युवकों और बूढ़ों सभी के जीवन से खिलवाड़ कर रहा है, मैं तो उसका पानी भी नहीं पी सकता’’
‘‘मुनीम साब! यह नोटों की गिड्डी वापस रख लो नहीं तो धन्ना सेठ तुम्हारे वेतन से काट लेगा’’ कहते हुए रवि संघर्ष पथ पर फिर बढ़ चला।
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