Friday 7 August 2020

328 ‘ब्रह्म‘ कहाॅ पाए जाते हैं?


उस दिन मेरे एक मित्र ने आकर बडा़ विचित्र प्रश्न पूछ डाला। कहने लगे, ये ‘ब्रह्म’ कहाॅं पाया जाता है? 

उनसे अप्रत्याशित प्रश्न सुनकर अचरज तो हुआ पर उत्तर भी उचित और उनके अनुकूल हो इसके लिए मैंने ‘उन’ सबके पिता से से ही निवेदन किया कि अब तुम्हीं बताओ इन्हें क्या उत्तर दूॅं? मुझे पता नहीं कब पढ़ा, रसखान कवि का एक सवैया, याद आ गया। जिसमें वे कहते हैं कि,

 ‘‘मैं ने वेदों और पुराणों में ‘ब्रह्म’ को ढूड़ा पर सभी ने मन में पहले से चार गुना भ्रम पैदा कर दिया। वेद कहते हैं कि उस ब्रह्म को कभी भी कहीं भी देखा नहीं जा सकता, सुना नहीं जा सकता, वह कैसे स्वरूप और स्वभाव का है यह कोई नहीं जानता। मैं तो सभी जगह उन्हें ढूंड़ता फिर पर किसी महिला या पुरुष ने मुझे उसका पता नहीं बता पाया। पर आश्चर्य, कि जब थक कर हार गया तो एक फूलों की लताओं से बनी झोपड़ी में सुस्ताने बैठना चाहा तो देखा, वहाॅं राधिका के पैरों के पास ‘वह’ बैठा था।’’

‘ब्रह्म’ मैं ढूड़्यो पुरानन वेदन, भेद कियो चित चैगुन चारुन ।

देेखो सुनो न कहूं कबहूं वह कैसो स्वरूप व कैसो सुभायन।

ढूंड़त ढूंड़त ढूड़ि फिर्यो ‘रसखान’ बतायो न लोग लुगाइन।

पायो कहाॅं, वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत ‘राधिका’ पायन।

यह सुनकर मित्र महोदय खिन्न हुए, बोले, वाह! यह भी कोई बात हुई, राधिका के पैरों में बैठा मिला ब्रह्म? 

मैं ने उन्हें धैर्य से सोचने को कहा कि यदि आप राधा को कोई लौकिक जगत की सुंदर महिला को समझते हैं तो भूल करते हैं। ‘‘राधा’’ का अर्थ है भक्त के भक्तिभाव की चरम अवस्था अर्थात् क्लाइमेक्स आफ डिवोशनल सेंटीमेंट आफ ए डिवोटी। ‘राधा’ है अपने ‘इष्ट’ के प्रति प्रेम की उत्तुंता का भाव, समर्पण की पराकाष्ठा। 

और, भक्त कौन है? भक्त है ‘उन्हें’ पाने के लिए उत्कट हुआ व्यक्ति जिसे उनके अलावा किसी की चाह नहीं होती। 

वे बोले, कुछ समझ में नहीं आया। मैंने कहा, पुराणों में एक दृष्टान्त देकर इसे इस प्रकार समझाया गया है-

नारद जी ने एकबार भगवान विष्णु से पूछा, प्रभो! आप कहाॅं रहते हैं, बैकुंठ में, योगियों के हृदय में या कहीं और? विष्णु जी बोले नहीं नारद! न तो मैं बैकुंठ में रहता हॅूं और न योगियों के हृदय में, मैं तो वहाॅं रहता हॅूं जहाॅं मेरे भक्त मुझे पाने की उत्कट इच्छा से गाते हैं, पुकारते हैं।

‘‘ नाहं वसामि वैकुंठे योगिनाम् हृदये न च।

मद्भक्ताः यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद!’’

इसलिए उन्हें कहीं दूर जाकर तलाश करने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें पाने के लिए जब मन मेें उत्कट इच्छा जागेगी इतना कि उनके बिना रहना मुश्किल हो जाएगा, वे स्वयं ही आपके सामने प्रकट हो जाएंगे। 


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