325 छोटे बच्चों की आध्यात्मिक शिक्षा
बच्चों को सृष्टि और इस जगत की उत्पत्ति के संबंध में इस प्रकार समझाया जाना चाहिये कि उनके मन पर अनावश्यक काल्पनिकता का बोझा न लद जाये। जैसे, परमपुरुष ने सृष्टि को क्यों रचा ? इसके उत्तर में उनसे कहा जा सकता है कि परमपुरुष बिलकुल अकेले थे, अन्य कोई नहीं था, स्वभावतः उन्हें किसी साथी की आवश्यकता हुई जिसके साथ वह खेल सकें। सच भी है कौन चाहेगा सदा ही अकेला रहना? हम सभी अपने परिवार और मित्रों को अपने आस पास ही रखना चाहते हैं तभी हमें आनन्द मिलता है। इसी प्रकार परमपुरुष भी किसी को अपने साथ में चाहते थे जिसके साथ वे हॅंस सकें, खेल सकें। परंतु था तो कुछ नहीं इसलिये वह कुछ रचना चाहते थे जिससे वे अकेले न रहें। यदि तुम कोई खिलौना बनाना चाहो तो कुछ पदार्थ चाहिये होगे कि नहीं? जैसे, प्लास्टिक, लकड़ी, कागज, धातु ,रबर आदि जिससे तुम अपने मन पसंद खिलौने को बना सकते हो। परमपुरुष तो अकेले थे निर्माण करने के लिये कोई पदार्थ नहीं था इसलिये उन्होंने अपने मन के ही कुछ भाग का उपयोग करते हुए वाॅंछित पदार्थ पाया और विभिन्न प्रकार की रचना करने लगे जिसे ‘‘संचर’’ कहा जाता है।
जब वह पदार्थ तैयार हो गया तो उन्होंने पौधे और जन्तुओं को बनाया, छोटे बड़े पक्षी ,कुत्ते, बंदर चिंपांजी और अंत में मनुष्य। इस संरचना में उन्होंने सभी को मन दिया कुछ में अधिक उन्नत और किसी किसी का कम उन्नत, परंतु सभी उनके सार्वभौमिक परिवार के अभिन्न अंग हैं। इस प्रकार उनका अकेलापन दूर हो गया । जड़ पदार्थों से मनुष्य के निर्माण करने की पद्धति ‘‘प्रतिसंचर’’ कहलाती है। इस तरह परमपुरुष ही सबके पिता हैं वे सभी को अपने प्रेम और आकर्षण से अपनी ओर वापस बुला रहे हैं। अपने दिव्य आकर्षण से वह प्रत्येक को खींच रहे हैं। इस ब्रह्माॅंड की यह प्राकृतिक कार्य प्रणाली है।
बच्चे जब इस प्रकार से स्पष्ट रूप से यह जानंेगे कि वे कौन हैं और कहाॅं से आये हैं तो निश्चय ही वे अनुभव करेंगे कि वे सब परमपुरुष की ही संताने हैं, उन्हीं की बेटे बेटियाॅं हैं । इस प्रकार की धारणा उनके मन में बन जाने पर वे अपने जीवन में पूर्ण आत्मविश्वास भर कर कार्य कर सकेंगे। वे अपने लक्ष्य को स्पष्टतः समझेंगे और उसे पाने के लिये यहाॅं वहाॅं नहीं भटकेंगे, वे यह सदा ही अनुभव करते रहेंगे कि परमपुरुष उन्हें लगातार देख रहे हैं। वे इस विश्व को समझ सकेंगे कि यह सब विभिन्न रचनायें, उन्हीं के आकार और प्रकार हैं और वे सब परमपुरुष केन्द्रित विश्व में ही रहते हैं। इस प्रकार वे दूसरों के साथ में अपने संबंधों को भी पसंद करेंगे क्योंकि स्वाभाविक रूपसे वे परमपुरुष को पिता और संसार की छोटी बड़ी सभी रचनाओं और अस्तित्वों को अपने परिवार का हिस्सा मानेंगे। इसलिये वे सभी पेड़ पौधों और प्राणियों के साथ अपना मधुर व्यवहार बनायेंगे। इस प्रकार वे धर्म के रास्ते पर सरलता से बढ़ते जायेंगे तथा एक महत्वपूर्ण बात उनके मन में बस जायेगी वह यह कि ‘हम परमपुरुष से आये हैं और उनके पास ही लौटकर जाना है इसके लिये साधना करना घर वापस लौटने की प्रक्रिया है उसे अवश्य करना चाहिये।’
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