यदि भूलना एक वरदान न होता तो, मनुष्य जबकि एक जन्म के बोझ में ही इतना दबा रहता है अनेक जन्मों का बोझ एक साथ इस जीवन में कैसे उठाता? मनुष्य का इतिहास, आशायें , शोक निराशायें सब कुछ सूक्ष्म मन में संचित रहते है । ‘क्रूडमन और सूक्ष्ममन’ (crude and subtle mind) के बेचैन बने रहने के पर कारणमन(causal mind) अपना दावा नहीं करता परन्तु, पिछले सभी जन्मों का पूरा पूरा लेखा क्रमागत रूप से ‘कारणमन’ (causal mind) में संचित होता जाता है। इस प्रकार मन में संचित प्रत्येक सतह अपने अपने जीवन की होती है और चित्रमाला की तरह बनी रहती है जब तक कि वे सब संस्कार भोगकर समाप्त नहीं हो जाते हैं। साधना के द्वारा जब क्रूडमन को सूक्ष्ममन में और सूक्ष्ममन को कारणमन में निलंबित करने का अभ्यास हो जाता है तो साधक अपने पिछले जन्मों का क्रमशः द्रश्य देख सकता है बिलकुल सिनेमा की तरह। दूसरों के पिछले जन्म को देख पाना स्वयं के पिछले जन्मों को देख पाने से सरल होता है, पर क्या यह करना उचित होगा? नहीं । यह भी ईश्वरीय विधान है, पिछले जन्म को जानने पर आगे बढ़ने के लिये मिल रहे अवसरों का लाभ नहीं मिल पाता और अवसाद में ही जीवन निकल जाता है।
पिछले जन्मों की स्पष्ट स्मृति केवल तीन प्रकार की स्थितियों में ही हो सकती है, 1, जिनका व्यक्तित्व अच्छी तरह उन्नत हो, 2, जो स्वेछा से पूर्ण सचेत होकर मरे हों, 3, जो दुर्घटना में मरे हों। इस स्थिति में भी 12 या 13 वर्ष की आयु तक ही यह स्मरण रह पाता है अन्यथा उस व्यक्ति को दुहरा व्यक्तित्व जीना पड़ता है जो पुनः मृत्यु का कारण बनता है। जो व्यक्ति 12/13 साल तक पिछले जन्म की घटनाओं को याद रख पाते हैं वे संस्कृत में यतिस्मर कहलाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने मन को एक विंदु पर केन्द्रित कर दे तो उसे अपने पिछले जन्म का सब कुछ याद आ सकता है यदि उसके पिछले संस्कार अपूर्ण रहे हों। पर इस प्रकार का परिश्रम करने का कोई उपयोग नहीं बल्कि उस पराक्रम को परमपुरुष को अनुभव करने में ही लगाना चाहिये उसे जान लेने पर सब कुछ ज्ञात और प्राप्त हो जाता है, पिछले इतिहास को जान लेने से क्या मिलेगा?
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