जब लोग भौतिक उपभोग की सामग्री के अंधाकर्षण से अपना सामान्य ज्ञान ही खो डालते हैं तो वे सीमित साधनों में ही असीमित आनन्द की तलाश करने लगते हैं और अस्थायी वस्तुओं को स्थायी समझने की भूल करने लगते हैं। इस प्रकार वे अपनी सभी जीवन्तता क्षय कर डालते हैं और यह भूल जाते हैं कि इस संसार की कोई वस्तु स्थायी नहीं है। कभी कभी तथाकथित पढ़े लिखे लोग कहते हैं कोई बात नहीं मैं इन वस्तुओं का पूरी तरह उपभोग नहीं कर पाऊंगा, परंतु मेरे पोते पोतियॉ तो कर सकेंगे। यह विचार अविद्यामाया के द्वारा प्रेरित होता है और इस अविद्या माया का सॉंकेतिक नाम है रावण।
रामायण में रावण का नाम आता है यह पौराणिक ग्रंथ है इतिहास नहीं, परंतु उसमें वर्णित शिक्षायें महत्वपूर्ण हैं। इसमें रावण को दस सिरों वाला दर्शाया गया है। यह मनुष्य के वहिर्मुखी स्वभाव को प्रदर्शित करता है जो विभिन्न दिशाओं में जड़ता की ओर ही सक्रिय रहता है। अर्थात् परमसत्ता के केन्द्र से बाहर की ओर सेन्ट्रीफ्यूगल बल से विक्षेपित बना रहता है। इस प्रकार जब मन आन्तरिक प्रवाह से भटककर आलस्य, द्वेष, लोभ या अन्य पतनोन्मुख बलों से जकड़ने लगता है तो कहा जाता है कि वह अपने आन्तरिक रावण के फंदे में फंस गया है।
मानव मन में सूक्ष्म और क्रूड दोनों प्रकार की प्रवृत्तियॉं होती हैं, सूक्ष्म प्रवृत्तियों का रुख अन्तर्मुखी और क्रूड प्रवृत्तियों का रुख वहिर्गामी होता है। कू्रड प्रवृत्तियॉं पूर्व, पश्चिम, उत्तर दक्षिण, ऊर्ध्व और अधः इन छः प्रदिशाओं और ईशान, वायु, अग्नि और नैऋत्य इन चार अनुदिशाओं में अर्थात् सभी दशों दिशाओं में सक्रिय रहती हैं और ये इकाई जीव को सांसारिकता में ही फंसाये रखना चाहती हैं । यही क्रूड प्रवृत्तियॉं ही रावण के दस मुंह हैं। सूक्ष्म आन्तरिक प्रवृत्तियॉं आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर ले जाती हैं जो राम कहलाती हैं। इस प्रकार प्रत्येक जीवधारी के पास राम और रावण होते हैं। राम और रावण का संघर्ष सबके जीवन में चलता रहता है रावण भौतिक जगत में उलझाये रखना चाहता है और राम आत्मोन्नति के रास्ते पर ले जाना चाहता है। अतः हमें प्रत्येक क्षण सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि रावण की प्रवृत्तियॉं धीरे धीरे अपना शिकार बनाती हैं। जैसे, छात्र परीक्षा में नकल करने से पहले यह नहीं सोचता कि वह पकड़ा जा सकता है, चोर को चोरी करने के लिए जाने से पहले पकड़े जाने का भय नहीं लगता, समाजनेता अपने गलत कार्यों के प्रकाशित हो जाने का भय नहीं पालते आदि अनेक उदाहरण है जो रावण की प्रवृत्तियों को धीरे धीरे बढ़ाते हुए जीवन नष्ट करने के लिये कार्य करती हैं। इसलिये प्रारंभ से ही इनसे सतर्क रहना लाभदायी होता है, तभी राम की रावण पर विजय हो पाती है। इस दशमुखी रावण पर सरलता से विजय पाना संभव है यदि हम परमपुरुष की शरण में पूरे हृदयसे चले जायें। जब कभी भी रावणी वृत्ति का विचार आता है हम तत्काल उसे राम अर्थात् परमपुरुष की ओर मोड़ दें, रावण का तुरन्त अन्त हो जायेगा। परमपुरुष की सहायता के बिना दसमुखी रावण को परास्त करना बड़ा कठिन है।
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