ईश्वर के संबंध में विभिन्न मतों में विभिन्न अवधारणाओं को बल दिया गया है। आपने किस मत की कौन सी अवधारणा को पालन करना स्वीकार किया है इस पर ही उनसे बात करना या न कर पाना निर्भर करता है।
सच्चाई यह है कि किसी ने भी ईश्वर को उनके निर्गुण स्वरूप में नहीं देखा है और न देख सकता है। इसलिए 90 प्रशित से अधिक भक्त पौराणिक कथाओं के आधार पर अपनी अवधारणाएं दृढ़़ करते हुए आगे बढ़ते हुए देखे जाते हैं। इन कथाओं में ईश्वर के अवतारों और आकार प्रकारों पर बताया गया है परन्तु उनको भी किसी ने साक्षात देखा नहीं है, जो भी पुस्तकों में भक्तों ने अपने अनुभव लिखे हैं उसी प्रकार उनके अनुयायी भी देखने का प्रयास करते हैं। अब समस्या यह है कि कोई भक्त कैसे यह जाने कि उस अद्वितीय अरूप अमाप्य अनन्त और अवर्णनीय को अपने छोटे से मन के द्वारा अनुभव करे, बात करे, अपने सुखदुख को बताकर शिकायत करे, उनका असीम प्रेम अनुभव करे?
इसका समाधान केवल विद्यातंत्र में ही मिलता है कर्मकांड में नहीं। शायद आप को पता होगा कि भगवान कृष्ण ने भी श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है- तपस्वीभ्योधिको योगी ज्ञानीभ्योपि मतोधिकः। कर्मिभ्यश्चाधिको योगी, तस्माद्योगी भवार्जुन।।
अर्थात् ‘योगी’ कर्मकांडियों, ज्ञानियों और तपस्वियों आदि से सबसे श्रेष्ठ है इसलिए अर्जुन तुम योगी बनो।
आजकल योगी होने का मतलब योगासनें करने और सिखाने वाले को माना जाता है। पर यह सही नहीं है। विद्यातंत्र में मान्य योग की परिभाषा है‘ ‘‘संयागो योगो इत्युक्तो आत्मनो परमात्मना’’ अर्थात् "परम आत्मा" को अपनी जीवात्मा के साथ जोड़ने की प्रक्रिया को योग कहते हैं।
अब यहॉं आपके प्रश्न का उत्तर मिलने की संभावना बनती है। परन्तु फिर प्रतिप्रश्न उठता है कि कैसे?
इसका उत्तर है विद्यातंत्र में विशारद कौल गुरु जो पुरश्चरण की क्रिया में प्रवीण हो उससे अपने इष्ट मंत्र को प्राप्त करना। जब आपको अपने इष्ट और इष्टमंत्र का सही सही ज्ञान कौल गुरु के द्वारा करा दिया जाता है और अपने निर्देशन में साधना का अभ्यास करा कर योग्य बना दिया जाता है तब आपका मन और बुद्धि उस अरूप का रूप अपनी आत्मा के भीतर देख सकती है, अनुभव कर सकती है, उससे बात कर सकती है और उसके साथ एकाकार हो सकती है। वहीं आपको अनुभव होगा कि यही मेरे सर्वस्व हैं। यों तो अनेक लोगों को यह कहते सुना जाता है कि ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव’ पर उन सबके व्यवहार में बहुत भिन्नता देखी जाती है। आप हतोत्साहित न हों, मन में कौल गुरु की अवधारणा को जीवन्त रखें वे आपको स्वयं इष्टमंत्र देने आएंगे और आपकी वार्ता अपने इष्ट से करायेंगे।
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