82 बाबा की क्लास (शिव . 7)
राजू- बाबा! आपने शिव के परिवार में उनकी तीन पत्नियाॅं और प्रत्येक से एक एक संतान होने के बारे में बताया है परंतु गणेश के संबंध में कुछ कहा ही नहीं है, क्या वह शिव के परिवार के सदस्य नहीं हैं?
बाबा- तुमने सही प्रश्न किया। पितृ सत्तात्मक पृथा के प्रारंभ होने के बाद समूह के प्रभावी पुरुष को मुखिया के रूप में स्वीकार किया गया और गोत्रपिता नाम दिया गया। पिता की सम्पत्ति का अधिकार पुत्र को प्राप्त होने लगा। संस्कृत में समूह को गण कहते हैं अतः समूह के नायक को गणेश , गणनायक या गणपति कहा जाने लगा। इसलिये गणेश का अस्तित्व इतिहासपूर्व माना जाता है और लोग हँसी में कह भी देते हैं कि जब गणेश की पूजा सभी देवताओं के पहले की जाती है तो शिव के विवाह के समय भी गणेश की पूजा हुई होगी तो फिर गणेश , शिव के पुत्र कैसे हुए ? स्पष्ट है कि गणेश , शिव, पार्वती, दुर्गा आदि के पुत्र नहीं हो सकते वे सामाजिक पृथाओं के अंतर्गत हैं , धर्म से उनका कोई संबंध नहीं है। चूंकि समूह के नेता को मोटा तगड़ा होना चाहिये अतः हाथी जैसा शरीर, समूह में संख्या की खूब बृद्धि होना चाहिये अतः वाहन के लिये चूहा (क्योंकि चूहों की संख्या अन्य प्राणियों की तुलना में तेजी से बढ़ती है) प्रतीकात्मक रूप में स्वीकार किया गया। पौराणिक काल में इसे गणपति कल्ट के रूप में स्वीकार कर धार्मिक आधार बना दिया गया। पुराणों में आपस में ही समानता नहीं है, एक ही तथ्य को अलग अलग स्थानों पर अलग अलग वर्णित किया गया है। पुराणों की कहानियां शिक्षाप्रद हैं परंतु हैं सब काल्पनिक। उनके भीतर छिपी हुई शिक्षा को ही समझने का प्रयास करना चाहिए न कि कहानी के शब्दों का।
नन्दू- लेकिन पुराणों में तो शिव का आकार और प्रकार ही बदल गया, उन का मूल स्वरूप जो आपने हमें समझाया है वह तो कहीं भी नहीं दिखता?
बाबा- पौराणिक काल में भी शिव की पूजा जारी रही इतना ही नहीं तत्कालीन सभी 22 प्रकार के शिवलिंगों, ज्योतिर्लिंगों , आदिलिंगों, अनादिलिंगों आदि को एकीकृत कर दिया गया। ये शिव, जैनशिव, बौद्धशिव और शिवोत्तरतंत्र कालीन शिव से बिलकुल भिन्न थे क्योंकि अब इनका पुराना बीजमंत्र ‘ऐम‘ से ‘होम‘ कर दिया गया। चूंकि बीज मंत्र के बदलने से देवता की संकल्पना ही बदल जाती है अतः 7000 वर्ष से लोगों में बसे अपने शिव, बौद्ध शिव, जैनशिव या शिवोत्तरतंत्र के शिव एक नहीं रहे, अनेक होगये।
रवि- इस काल में क्या शिव के संबंध में कोई नयी अवधारणा भी शुरु की गयी ?
बाबा- पौराणिक हिन्दु युग में जब बौद्ध धर्म और शैव धर्म आपस में मिश्रित होने लगे , तब इस मिश्रित धर्म को नाथ धर्म कहा गया। अधिकाॅंशतः पूर्वी भारत में इस धर्म के अनुयायी अधिक पाये जाते हैं। उन्होंने इसे नाथ धर्म इस लिये कहा क्योंकि उनके गुरुगण अपने नाम के अंत में नाथ (अर्थात् स्वामी) शीर्षक का उपयोग करते थे, जैसे आदिनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ, रोहिणीनाथ, चैरंगीनाथ आदि आदि। अर्थात् इनका उद्गम मूलतः बौद्ध धर्म से हुआ पर भारत से बौद्ध धर्म के नष्ट हो जाने पर उन्होंने शैव धर्म को अपना लिया फिर भी वे बौद्ध धर्म की कुछ कर्मकाॅंडीय विधियों का पालन करते रहे। यह रहस्य इनमें से कोई नहीं जानता सभी अपने को शैव ही कहते हैं।
नन्दू- क्या नाथ कल्ट और शैव सचमुच एक हो गये?
बाबा- नहीं, बौद्धतंत्र जब पौराणिक तंत्र से प्रभावित हो रहा था तो उस संक्रमण काल में नाथ कल्ट का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। नाथ कल्ट में नाथ शव्द को उनके प्रवर्तकों के नाम के बाद जोड़ने की प्रथा अपनाई गई जैसे आदिनाथ, मीनानाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ आदि। इसके सभी प्रवर्तकों को शिव के अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी मूर्ति को शिव के अवतार के रूप में पूजा जाने लगा। अतः शिव को भी विश्वनाथ, वैद्यनाथ, तारकनाथ आदि नाम दे दिये गये। पौराणिक युग के शिव और शाक्त कल्ट के अनुयायी शिवलिंग की पूजा करते रहे पर नाथ कल्ट से अपने को भिन्न प्रदर्शित करने के लिये वे उन्हें तारकेश्वर , विश्वेश्वर या कभी कभी दोनों का उच्चारण करते रहे। इस तरह चाहे कोई भी समय रहा हो और कितना ही प्रभावी व्यक्तित्व अपनी किसी भी प्रकार की संकल्पना को स्थापित करना चाहता रहा हो शिव के विना उसे कोई मान्यता प्राप्त नहीं हुई।
राजू- बाबा! आपने शिव के परिवार में उनकी तीन पत्नियाॅं और प्रत्येक से एक एक संतान होने के बारे में बताया है परंतु गणेश के संबंध में कुछ कहा ही नहीं है, क्या वह शिव के परिवार के सदस्य नहीं हैं?
बाबा- तुमने सही प्रश्न किया। पितृ सत्तात्मक पृथा के प्रारंभ होने के बाद समूह के प्रभावी पुरुष को मुखिया के रूप में स्वीकार किया गया और गोत्रपिता नाम दिया गया। पिता की सम्पत्ति का अधिकार पुत्र को प्राप्त होने लगा। संस्कृत में समूह को गण कहते हैं अतः समूह के नायक को गणेश , गणनायक या गणपति कहा जाने लगा। इसलिये गणेश का अस्तित्व इतिहासपूर्व माना जाता है और लोग हँसी में कह भी देते हैं कि जब गणेश की पूजा सभी देवताओं के पहले की जाती है तो शिव के विवाह के समय भी गणेश की पूजा हुई होगी तो फिर गणेश , शिव के पुत्र कैसे हुए ? स्पष्ट है कि गणेश , शिव, पार्वती, दुर्गा आदि के पुत्र नहीं हो सकते वे सामाजिक पृथाओं के अंतर्गत हैं , धर्म से उनका कोई संबंध नहीं है। चूंकि समूह के नेता को मोटा तगड़ा होना चाहिये अतः हाथी जैसा शरीर, समूह में संख्या की खूब बृद्धि होना चाहिये अतः वाहन के लिये चूहा (क्योंकि चूहों की संख्या अन्य प्राणियों की तुलना में तेजी से बढ़ती है) प्रतीकात्मक रूप में स्वीकार किया गया। पौराणिक काल में इसे गणपति कल्ट के रूप में स्वीकार कर धार्मिक आधार बना दिया गया। पुराणों में आपस में ही समानता नहीं है, एक ही तथ्य को अलग अलग स्थानों पर अलग अलग वर्णित किया गया है। पुराणों की कहानियां शिक्षाप्रद हैं परंतु हैं सब काल्पनिक। उनके भीतर छिपी हुई शिक्षा को ही समझने का प्रयास करना चाहिए न कि कहानी के शब्दों का।
नन्दू- लेकिन पुराणों में तो शिव का आकार और प्रकार ही बदल गया, उन का मूल स्वरूप जो आपने हमें समझाया है वह तो कहीं भी नहीं दिखता?
बाबा- पौराणिक काल में भी शिव की पूजा जारी रही इतना ही नहीं तत्कालीन सभी 22 प्रकार के शिवलिंगों, ज्योतिर्लिंगों , आदिलिंगों, अनादिलिंगों आदि को एकीकृत कर दिया गया। ये शिव, जैनशिव, बौद्धशिव और शिवोत्तरतंत्र कालीन शिव से बिलकुल भिन्न थे क्योंकि अब इनका पुराना बीजमंत्र ‘ऐम‘ से ‘होम‘ कर दिया गया। चूंकि बीज मंत्र के बदलने से देवता की संकल्पना ही बदल जाती है अतः 7000 वर्ष से लोगों में बसे अपने शिव, बौद्ध शिव, जैनशिव या शिवोत्तरतंत्र के शिव एक नहीं रहे, अनेक होगये।
रवि- इस काल में क्या शिव के संबंध में कोई नयी अवधारणा भी शुरु की गयी ?
बाबा- पौराणिक हिन्दु युग में जब बौद्ध धर्म और शैव धर्म आपस में मिश्रित होने लगे , तब इस मिश्रित धर्म को नाथ धर्म कहा गया। अधिकाॅंशतः पूर्वी भारत में इस धर्म के अनुयायी अधिक पाये जाते हैं। उन्होंने इसे नाथ धर्म इस लिये कहा क्योंकि उनके गुरुगण अपने नाम के अंत में नाथ (अर्थात् स्वामी) शीर्षक का उपयोग करते थे, जैसे आदिनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ, रोहिणीनाथ, चैरंगीनाथ आदि आदि। अर्थात् इनका उद्गम मूलतः बौद्ध धर्म से हुआ पर भारत से बौद्ध धर्म के नष्ट हो जाने पर उन्होंने शैव धर्म को अपना लिया फिर भी वे बौद्ध धर्म की कुछ कर्मकाॅंडीय विधियों का पालन करते रहे। यह रहस्य इनमें से कोई नहीं जानता सभी अपने को शैव ही कहते हैं।
नन्दू- क्या नाथ कल्ट और शैव सचमुच एक हो गये?
बाबा- नहीं, बौद्धतंत्र जब पौराणिक तंत्र से प्रभावित हो रहा था तो उस संक्रमण काल में नाथ कल्ट का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। नाथ कल्ट में नाथ शव्द को उनके प्रवर्तकों के नाम के बाद जोड़ने की प्रथा अपनाई गई जैसे आदिनाथ, मीनानाथ, मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ आदि। इसके सभी प्रवर्तकों को शिव के अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी मूर्ति को शिव के अवतार के रूप में पूजा जाने लगा। अतः शिव को भी विश्वनाथ, वैद्यनाथ, तारकनाथ आदि नाम दे दिये गये। पौराणिक युग के शिव और शाक्त कल्ट के अनुयायी शिवलिंग की पूजा करते रहे पर नाथ कल्ट से अपने को भिन्न प्रदर्शित करने के लिये वे उन्हें तारकेश्वर , विश्वेश्वर या कभी कभी दोनों का उच्चारण करते रहे। इस तरह चाहे कोई भी समय रहा हो और कितना ही प्रभावी व्यक्तित्व अपनी किसी भी प्रकार की संकल्पना को स्थापित करना चाहता रहा हो शिव के विना उसे कोई मान्यता प्राप्त नहीं हुई।
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