Sunday 18 September 2016

83 बाबा की क्लास (शिव . 8 )

83 बाबा की क्लास (शिव . 8 )

चंदू- कुछ लोग शिव को स्थान विशेष से जोड़कर उन्हें दूसरों से अलग बतलाते हैं, जैसे बनारस के विश्वनाथ या उज्जैन के महाकाल?
बाबा- हाँ , 7000 वर्ष पुराने सदाशिव की आज तक की यात्रा में लोगों के द्वारा क्या क्या गति कर दी गई है इस  श्लोक  से सरलता से समझा जा सकता है।
सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैल मल्लिकार्जुनम,
उज्जन्याम् महाकालम् ओंकारम् अमलेश्वरम।
वाराणस्याम् विश्वनाथः सेतुबंधे रामेष्वरम्
झारखंडे वैद्यनाथः राढ़े च तारकेश्वरा ।
अर्थात् सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल के मल्लिकार्जुन, उज्जैन के महाकाल और अमलेश्वर के ओंकार, वाराणसी के विश्वनाथ, सेतु बंध के रामेश्वर तथा झारखंड के वैद्यनाथ और राढ़ के शिव तारकेश्वर कहलाते हैं।

नन्दू- लोगों ने यह क्यों किया?
बाबा- शिव की सरलता, साधुता और दिव्यता के कारण वे जन जन के प्रिय देव ही नहीं महादेव की तरह प्रतिष्ठित हो चुके थे अतः स्थान विशेष के लोगों ने अपनी अपनी आत्मीयता के कारण उन्हें ये नाम दे दिये परंतु बाद में स्वार्थ और लोभवश पुजारियों ने उनमें भिन्नता भर कर जीवन के अलग अलग कार्यो की सफलता पाने का लोभ उनकी पूजा के साथ जोड़ दिया।

राजू- परंतु गाँव गाँव  में यह देखा गया है कि हर जगह छोटे छोटे बच्चे भी मिट्टी के शिव लिंग बना कर आरती करते हैं और अपने ढंग से पूजा करते हैं वे क्या हैं? क्या वे मान्यता प्राप्त हैं?
बाबा- इन्हें लौकिक शिव कहते हैं। इनका उल्लेख किन्हीं ग्रंथों में नहीं है वरन् ये तो लोगों के द्वारा निर्मित उनके अपने भोलेनाथ हैं। शिव की साधुता, सरलता और तेजस्विता के कारण वे समाज के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे स्तर के लोगों से सीधे ही जुड़े थे। उन्होंने ही समाज से वर्गभेद और जातिभेद मिटाया, उन्होंने समाज में भ्रामकता और स्वार्थपूर्ण भावजड़ता फैलाने वालों को अपने त्रिशूल से नष्ट कर दिया। स्त्रियों और शूद्रों को वेदमंत्रों का उच्चारण करना तो दूर सुन लेने पर भी वैदिक काल में सजा दी जाती थी, इसे शिव ने समाप्त कराया। समाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शिव की पहुँच ने उन्हें जनजन का प्रिय देवता बनाया । आज भी भारत में छोटी छोटी बच्चियां  मिट्टी के शिवलिंग बनाकर घी के दीपक से आरती करतीं हैं और अपनी तथा अपने परिवार की समृद्धि के लिये प्रार्थना करतीं हैं। ये शिव न तो वैदिक ,न तांत्रिक ,न जैन, न बौद्ध, न पौराणिक ,न नाथ कल्ट, किसी से भी मान्य नहीं हैं ये तो लौकिक शिव हैं, सरल लोगों के सरल देवता, न इनका कोई बीज मंत्र है न प्रणाम मंत्र और न ही ध्यान मंत्र । इनकी पूजा करने के लिये न किसी पंडित की आवश्यकता होती है और न ही किसी बाहरी कर्मकांडीय प्रदर्शन  की, केवल ‘‘नमः शिवाय‘‘ कह देने से ही उनकी पूजा हो जाती है। ये परमब्रह्म न हों, परमपुरुष भी न हों परंतु सरल लोगों के सरल और आत्मीय देवता अवश्य  हैं। 7000 वर्ष  पुराने
सदाशिव से इनका कोई संबंध नहीं है।

नन्दू- फिर ये शिव आये कहाँ  से?
बाबा- इसका उत्तर है कि शिव की सरलता, साधुता और तेजस्विता ने लोगों के हृदय में इतने गहरे पहुंच बना ली है कि लोग उनके साथ के बिना नहीं रह सकते। उनके सरलतम व्यक्तित्व के संबंध में अनेक किस्से कहे जाते हैं, परंतु वे अनेक दिव्य, अमूल्य खजानों के सागर थे। वे कहते थे बहादुर बनो, धर्म का पालन करो, सरलता को कभी न छोड़ो और सीधे रास्ते पर चलो। यही कारण है कि हर संवर्ग के लोग उनके सामने नतमस्तक हो कहते हैं ‘‘ निवेदयामी च आत्मानम् त्वमगतिः परमेश्वरा ।‘‘ अर्थात् हे मेरे जीवन के अंतिम लक्ष्य, मैं आपके समक्ष पूर्ण समर्पण करता हूँ ।

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