Monday, 18 February 2019

238 बिग बेंग सिद्धान्त और आनन्दमार्ग दर्शन ( सृष्टि का उद्गम और अन्त )

238 बिग बेंग सिद्धान्त और आनन्दमार्ग दर्शन ( सृष्टि का उद्गम और अन्त )

 आनन्दमार्ग आध्यात्मिक दर्शन, के अनुसार, अपनी चिदानन्दघन अवस्था में रहते रहते अचानक परमसत्ता अर्थात (cosmic consciousness) के मन(cosmic mind )  मेें विचार आया कि एकमेव हूँ अनेक होकर देखूँ क्या होता है। इतना सोचते ही उनकी क्रियात्मक शक्ति (operative power ) जिसे प्रकृति कहा जाता है ,ने उनके मन(cosmic mind ) के ही  एक छोटे से भाग में , स्पेस-टाइम में बाँधकर इस सगुण सृष्टि को वर्तमान रूप में असीमित आकार देकर रच डाले गुरुत्वाकर्षण, ब्लेकहोल, गेलेक्सियाॅं और असंख्य सौर परिवार। इतना ही नहीं वनस्पति सहित असंख्य जीवधारियों की रचना कर, संचर और प्रतिसंचर (expansion and contraction phase) में इन्हें गतिशील करके ब्रह्मचक्र को पूरा कर दिया। उनकी अपेक्षा यह थी कि ये सभी छोटी बड़ी मानसिक तरंगें अपनी क्रमागत यात्रा करते हुए यथा समय वापस उन्हीं के पास ही आ जाएंगी परन्तु इस चक्र का पचहत्तर प्रतिशत भाग तय करने के बाद भी पृथ्वीवासी इन मनुष्यों ने तो उन्हें बड़े ही असमंजस में डाल दिया है। वे वापस आनेवाले रास्ते को भूलकर धूल के कण से भी छुद्र इस धरती को ही सर्वसुखकारक और आनन्ददायक मानकर अपने को बना बैठे हैं स्वयंभू पृथक सम्राट। नाभिकीय शक्तियों से एक दूसरे को नष्ट करने की धमकी देते, अपने गन्तव्य  को बिसारे ये लोग अहंकार, लोभ, मान अपमान, छोटे बड़े, ऊँचनीच, धनी गरीब, प्रबल निर्बल, जैसे न जाने कितने द्वन्द्वात्मक दुर्ग बनाकर ढहाने तुले हैं मानवता के पवित्र मन्दिर को। अपने को उनसे पृथक मानकर रच डाली हैं भिन्नता और असमानता। उनकी एक कल्पना के भीतर ही अनेक कल्पनाओं में डूबे, उनके ही इन स्वरूपों को उनका स्वप्न में भी बिचार नहीं आता। वह दुखी होकर कभी कभी सोचते हैं कि अपना विचार समाप्त कर दूँ लेकिन ‘‘कार्य कारण प्रभाव और क्रिया प्रतिक्रिया नियम‘‘ से बँधी जब तक सभी विचार तरंगें अपनी सगुणता के सूक्ष्मतम भाग को भी उसके कर्मफल का भोग करा कर स्वच्छ नहीं हो जातीं उन्हें विवश होकर इनका साक्षी बने रहना होगा और यह संसार इसी प्रकार चलता जाएगा। (1)

आधुनिक वैज्ञानिक ब्रह्माॅंड की उत्पत्ति के संबंध में बिग बेंग (big bang ) सिद्धान्त को मानते हैं पर यह नहीं बता पाते कि यह बिगबेंग किसने किया। इसके अनुसार ब्रह्माॅड(cosmos), 13.8 बिलियन वर्ष पहले बिग बेंग के साथ 10-37  सेकेंड ( दस के ऊपर माइनस सेंतीस की घात, सेकेंड ) में उत्पन्न हुआ जिसका वर्तमान में दृश्य  व्यास 93 बिलियन प्रकाश  वर्ष है। पूरे ब्रह्माॅंड में पदार्थ के परिमाण की गणना करने पर पाया जाता है कि वह  3 से  100x1022 तारों की संख्या ( दस के ऊपर बाइस की घात ) के  बराबर है जो 80 बिलियन गेलेक्सियों में वितरित है। वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि बिग बेंग की घटना किसी विस्फोट की तरह नहीं हुई  बल्कि 1015 केल्विन (दस के ऊपर पन्द्रह की घात केल्विन ) ताप के विकिरण के साथ स्पेस टाइम में फैलता हुआ अचानक ही अस्तित्व में आया। इसके तत्काल बाद10&29 सेकेंड ( दस के ऊपर माइनस उनतीस की घात ) में स्पेस का एक्पोनेशियल विस्तार 1027  (दस के ऊपर सत्ताइस की घात ) अथवा अधिक के गुणांक में हुआ। जो कि कास्मिक इन्फ्लेशन कहलाता है । ब्रह्माॅड का ताप 10,000 केल्विन से अधिक सैकड़ों हजार साल रहा जिसे रेसेड्युअल कास्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड कहते हैं। यूनीवर्स का कुल घनत्व अर्थात् डार्क एनर्जी, वर्ष 2013 में की गयी गणना के अनुसार 68.3 प्रतिशत पाया गया है और डार्कमैटर घटक , द्रव्यमान ऊर्जा घनत्व का 26.8 प्रतिशत। शेष 4.9 प्रतिशत में सभी सामान्य पदार्थ, दिखाई देने वाले परमाणु, रासायनिक तत्व गैस और प्लाज्मा , दृष्य ग्रह, तारे और गेलेक्सियाॅं हैं। इस ऊर्जा घनत्व में बहुत कम परिमाण लगभग 0.01 प्रतिशत कास्मिक माइक्रोवेव बेकग्राऊंड रेडियेशन भी होता है और 0.5 प्रतिशत से भी कम रेलिक न्यूट्रिनो होते हैं। अभी इनकी मात्रा भले ही कम हो पर बहुत पिछले काल में ये पदार्थ 3200 से भी अधिक रेड शिफ्ट में अपना अधिकार जमाये थे।
इस प्रकार वैज्ञानिकों द्वारा की गयी व्याख्या के अनुसार  अत्यन्त अकल्पनीय समय में ब्रह्माॅंड की उत्पत्ति होना पूर्वोक्त दर्शन के अनुसार परमपुरुष के मन की कल्पना से साम्य होने को प्रकट करता है।

  ब्रह्माॅंड की स्थानिक वक्रता शून्य के निकट है। हमारे मस्तिष्क में पाये जाने वाले न्यूरानों की संख्या ब्रह्मांड के सभी तारों की संख्या से अधिक है। जीवन की उत्पत्ति के संबंध में वैज्ञानिक मानते हैं कि जल के भीतर जीव उत्पन्न हुए पहले एक कोषीय और क्रमागत रूपसे बहुकोषीय जीव। डारविन के सिद्धान्त के अनुसार इसी क्रम में अति उन्नत जीव मनुष्य हुए हैं। पृथ्वी के अलावा अन्य गेलेक्सियों के किन्हीं सौर मंडल के ग्रहों में जीवन की संभावनायें भी बताई गयीं हैं।यह भी कहा गया है कि  ये जीव मनुष्य की तरह या मनुष्य से अधिक उन्नत  या अन्य प्रकार के भी हो सकते हैं। तारे और गेलेक्सियाॅं मरते हुए ब्लेक होल में लय हो जाते हैं और अंततः ब्लेक होल भी समाप्त हो जाता है, इसी प्रकार जीव भी मनुष्य होकर अंततः मर जाता है, इसके आगे क्या होता है विज्ञान को इसकी कोई जानकारी नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि1040 ( दस के ऊपर चालीस की घात, ) वर्ष बाद पूरे ब्रह्मांड में केवल ब्लेक होल ही होंगे। वे हाकिंग रेडिएशन के अनुसार धीरे धीरे वाष्पीकृत हो जावेंगे। अपने सूर्य के बराबर द्रव्यमान वाला एक ब्लेक होल नष्ट होने में 2x1066  वर्ष  ( दस के ऊपर छियासठ की घात वर्ष ) लेता है, परंतु इनमें से अधिकांश  अपनी गेलेक्सी के केेन्द्र में स्थित अपनी तुलना में अत्यधिक द्रव्यमान के ब्लेक होल में सम्मिलित हो जाते हैं। चूंकि ब्लेक होल का जीवनकाल अपने द्रव्यमान पर तीन की घात के समानुपाती होता है इसलिये अधिक द्रव्यमान का ब्लेक होल नष्ट होने में बहुत समय लेता है। 100 बिलियन सोलर द्रव्यमान का ब्लेक होल नष्ट होने में 2x1066 वर्ष ( दस के ऊपर निन्यान्वे की घात, वर्ष ) लेगा । ब्रह्मांड, गेलेक्सियों को समेटे ऐंसा गोला है जो लगातार फैलता जा रहा है। सबसे दूरस्थ गेलेक्सी सबसे तेज चलती है अतः उसकी लंबाई की दिशा  में संकुचन हो जाने के कारण केन्द्र में खडे़ अवलोकनकर्ता के लिये वह छोटी दिखाई देती है। (2)

इस प्रकार वैज्ञानिक गणनाएं भी सिद्ध  करती हैं कि ब्रह्मांड में पाये जाने वाले आकाशीय पिंडों अर्थात् ग्रहों, सूर्यों, गेलेक्सियों, ब्लेकहोलों या ऊर्जा अर्थात् प्रकाश , बिजली , रेडियो, और ब्लेकएनर्जी और पृथ्वी जैसे ग्रहों के जीवधारी आदि सभी स्पेस और समय के अत्यंत विस्तारित क्षेत्रों में अपना साम्राज्य जमाये हुए हैं परंतु फिर भी वे अनन्त नहीं हैं अमर नहीं हैं। अतः पूर्वोक्त आध्यात्मिक दर्शन के अनुसार परमपुरुष का विवश होकर अनन्त काल तक सबका  साक्षित्व बनाए रखना विज्ञान के सिद्वान्तों से मेल करता है और परमसत्ता के अस्तित्व का प्रमाण देता है।

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