Tuesday 5 February 2019

236 नासिका और श्वसन का जीवन में महत्व

236 नासिका और श्वसन का जीवन में महत्व
श्वसन विज्ञान हमारे भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान में जीवन्त भूमिका निभाता है । पाचन क्रिया से लेकर सूक्ष्म आध्यात्मिक अभ्यासों में भी श्वास के नियंत्रण का बहुत महत्व  है। जन सामान्य इस विज्ञान को समझे बिना ही सभी कार्य करते हैं अतः वे शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ ही बने रहते हैं, भले ही वे इसे मानें या नहीं।
तुरंत समझने के दृष्टिकोण से यह आधारभूत नियम जान लेना चाहिए कि जब हमें कोई भौतिक रूप से कार्य करना हो जैसे दौड़ना, चलना आदि तो उस समय श्वास को दायीं नासिका से चलना चाहिए। इसमें भोजन का कार्य भी सम्मिलित है। उचित पाचन क्रिया के लिये भोजन प्रारंभ करने के आधा घंटे पहले और समाप्त होने के एक घंटे बाद तक दायीं नासिका से श्वसन क्रिया चलते रहना चाहिए। इसके विपरीत मानसिक और बौद्धिक कार्य जैसे पढ़ना, याद करना, योगासन करना, ध्यान करना, साधना पूजा आदि करने के समय बाॅयां स्वर चलना चाहिए। इसमें द्रव पदार्थों जैसे पानी पीना आदि भी सम्मिलित है।
ईश्वर प्रणिधान, ध्यान और योग साधना के लिये सर्वोत्तम अवसर वह होता है जब दोनों नासिकाओं से श्वसन क्रिया जारी हो परन्तु यह पाना सरल नहीं हो पाता। बात यह है कि यह श्वसन क्रिया स्वाभाविक रूप से नियमित अन्तराल पर अपने आप बदलती रहती है। इसे समझने के लिये इसके पीछे छिपी हुई विज्ञान इस प्रकार है। मनुष्यों के शरीर में तीन सूक्ष्म नाड़ियाॅं इडा, पिंगला और सुषुम्ना रीढ़ के भीतर एक छोर से दूसरे छोर तक कार्य करती हैं और सभी प्रकार के संवेदनों को मस्तिष्क को प्रेषित करती रहती हैं। जिन स्थानों पर ये तीनों आपस में मिलती हैं वहाॅं पर ऊर्जा केन्द्र निर्मित करती हैं जिन्हें योग की भाषा में चक्र कहते हैं। ये नाड़ियाॅं हमारे मन और आध्यात्मिक स्तर को श्वसन के द्वारा ही सूक्ष्मता से नियंत्रित करती हैं क्योंकि प्रत्येक नाड़ी से श्वसन का कार्य अलग अलग जुड़ा रहता है। जैसे, जब इडा सक्रिय रहती है तो स्वर बाॅंयी नासिका से और जब पिंगला सक्रिय होती है तब स्वर दाॅंयी नासिका से चलता है। तथा सुषुुम्ना के सक्रिय रहने के समय दोनों नासिकाओं से श्वास चलती है।
इस प्रकार स्वर विज्ञान के अनुसार कार्य करने की जानकारी और सतर्कता रखने से जीवन के बहुत से कार्य सुव्यवस्थित होने लगते हैं। परन्तु यदि बीमारी, या दिनचर्या के बदलने या अन्य कारणों से उचित कार्य करने के समय उचित श्वसन क्रिया प्राप्त नहीं होती है तो समस्यायें उत्पन्न होती हैं, जैसे , भोजन करते समय दाॅंयां स्वर न चले तो पाचन क्रिया सही नहीं होगी और एसीडिटी, डिस्पेप्सिया आदि घेर लेंगे। इसी प्रकार यदि अध्ययन करने या ध्यान करने के समय वाॅंयां स्वर न चले तो ठीक ढंग से याद नहीं होगा और ईश्वर चिंतन भी आनन्ददायी नहीं हो सकेगा। सोने के लिये भी बाॅंयी करवट से सोना सबसे अच्छा होता है क्योंकि इससे स्वर दाॅंयी नासिका से चलता रहता है इसलिए पाचन क्रिया सुचारु बनी रहती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से पींठ के बल सोना बुरा होता है, उससे बुरा होता है दायीं करवट से सोना और सबसे बुरा होता है पेट के बल सोना।
स्वर विज्ञान के संबंध में भगवान शिव ने ही सबसे पहले यह रहस्योद्घाटन किया था कि इसकी जानकारी रखने से भौतिक और आध्यात्मिक जगत की अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। मानलो कोई भारी वजन लेकर ऊंचाई पर चढ़ना चाहता है और स्वर विज्ञान के नियमों का पालन नहीं करता है तो हाॅंथों में दर्द  होने लगेगा और हड्डियां भी प्रभावित हो सकती हैं। यदि ऊंचाई चढ़ते समय फेंफड़े वायु से रिक्त हों तो बड़ी भारी समस्या हो सकती है परन्तु यही कार्य गहरी साॅंस लेकर फेंफड़ों में वायु को भरे रहकर सरलता से किया जा सकता है। ठोस भोजन करते समय दांया और तरल भेजन करते समय बाॅंयां स्वर चलना चाहिए। निर्जल उपवासों के दिनों में प्रायः नवाभ्यासी शीघ्र ही भूख से कष्ट पाने लगते हैं, स्वरविज्ञान की सहायता से वे इसे दूर करने के लिये भूख लगने के समय दांयीं करवट से लेट जाएं जिससे स्वर बाॅंयां चलने लगेगा अतः भूख का आभास समाप्त हो जाएगा। बार बार भूख लगने पर हर बार दांयीं करवट लेटकर उस पर नियंत्रण किया जा सकता है। बड़ी आंत में दर्द होने पर दर्द होने के समय जिस नासिका से स्वर चल रहा हो उसे तत्काल बदलकर दूसरी नासिका से सक्रिय कर लेना चाहिए इससे दर्द दूर हो जाएगा। भूख लगने पर पित्त को एकत्रित नहीं होने देना चाहिए अन्यथा वह एसीडिटी का कारण बनेगा।
स्वर विज्ञान की क्रियाएं बड़ी ही सूक्ष्म होती हैं और स्वाभाविक रूप से चलती रहती हैं अतः जब शरीर स्वस्थ और संतुलित रहता है श्वसन क्रिया अपने आप सही चलती रहती है। परन्तु कभी किसी कार्य विशेष के समय यदि उचित नासिका स्वर नहीं चलता पाया जाए तब उसे किस प्रकार बदला जा सकता है? इसका उत्तर यह है कि जिस नासिका स्वर की आवश्यकता है उसके विपरीत करवट से पाॅंच छः मिनट तक लेट जाना चाहिए। जैसे भोजन करते समय दायाॅं स्वर लाने के लिए बाॅंयी करवट से पाॅंच या सात मिनट तक लेट जाने पर दाॅंया स्वर चलने लगेगा, इसके बाद भोजन किया जा सकता है।

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