Monday, 12 October 2020

346 सप्तलोक क्या है ?

ये सभी एक साथ ही है,इनकी कोई अलग-अलग दुनिया नहीं है। सप्त लोकों में निम्नतर लोक है " भूर्लोक"(physical world)। ऊर्ध्वतम लोक है "सत्य लोक" जो परमपुरुष में स्थित है। और, इन दोनों के बीच जो पञ्च लोक हैं, वही है पञ्चकोष । मानव मन के पाँच कोष, पाँच स्तर । भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः । भुवः है स्थूल मन, जो प्रत्यक्षरूपेण शारीरिक कर्म के साथ सम्पर्कित रहता है। स्वः लोक है सूक्ष्म मन । मनोमय कोष, मानसिक जगत् । मुख्यतः सुख-दुःख की अनुभूति होती है कहाँ ? स्वर्लोक में, मनोमय कोष में । तो, यह जो स्वर्लोक है, इसी को लोग स्वर्ग कहते हैं , स्वः युक्त “ग”। सुख-दुःख की अनुभूति यहीं होती है । मनुष्य को अच्छा कर्म करने के बाद मन में जो तृप्ति होती है, वह मन के स्वर्लोक में अर्थात् मनोमय कोष में होती है । इसलिए ये स्वर्लोक हमेशा तुम्हारे साथ है । तुम सत्कर्म करते हो, तुम मानव से अतिमानव बनते हो तो, स्वर्लोक खुशी से भर जाता है और जब तुम मनुष्य के तन में, मनुष्य की शक्ल में अधम कर्म करते हो, तो स्वर्लोक दुःख में भर जाता है, मन में ग्लानि होती है,आत्मग्लानि होती है ।

  स्वर्ग-नरक अलग नहीं, इसी दुनिया में हैं और तुम्हारे मन के अन्दर ही स्वर्ग छिपा हुआ है। इसलिए जो पण्डित हो चाहे अपण्डित हो, स्वर्ग-नरक की कहानी, किस्सा-कहानी सुनाते हैं, वे सही काम नहीं करते हैं। वे मनुष्य को misguide करते हैं , विपद में परिचालित करते हैं, उनसे दूर रहना चाहिए वे dogma के प्रचारक हैं ।

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