युधिष्ठिर अर्थात् जो व्यक्ति युद्ध जैसी परिस्थितियों में भी मानसिक रूप से स्थिर रहता है, उद्वेलित नहीं होता है वह युधिष्ठिर है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में अनगिनत ब्लेक होल, गेलेक्सियां, तारे और उल्काएं लगातार उत्पात मचाते रहते हैं परन्तु आकाश अर्थात् ‘स्पेस’ किसी भी प्रकार से उद्वेलित नहीं होता वह सदा ही एकरस बना रहता है इसलिए वह युधिष्ठर है। विद्यातन्त्र में पांचों पांडवों को पंचतत्व का रूपक दिया गया है, इसके अनुसार युधिष्ठिर आकाश तत्व को प्रदर्शित करते हैं। महाभारत में युधिष्ठिर से अन्य अनेक प्रश्न पूछने वाले यक्ष ने जब यह पूछा कि धर्मतत्व का सही सही मार्गदर्शन करने वाला रास्ता कौन सा है? तब युधिष्ठिर ने कहा, इसमें बड़ा ही कन्फ्युजन है क्योंकि यदि श्रुतियों के रास्ते को माने तो वे चार चार हैं उनमें से किसके अनुसार चलें यह कहना कठिन है क्योंकि उनमें एकरूपता नहीं है। यदि स्मृतियों पर विचार करें तो यही विरोधाभास उनमें भी है और इतना ही नहीं जिन्हें हम आदर्श मार्गदर्शक मानते हैं उन ऋषिमुनिगणों में भी किन्हीं दो महानुभावों का सिद्धान्त एकसमान नहीं पाया जाता हैं।
इसलिए मेरे विचार में तो सही रास्ता वही है जिसका अनुसरण करते हुए अनेक लोग साधारण अवस्था से ऊपर उठकर महापुरुषों के रूप में समाज में आज भी आदर पाते है।
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