Saturday, 6 August 2022

388 शिव को प्रणाम कैसे करें ?

 

(प्रणाम मंत्र में शिव)

‘‘नमस्तुभ्यं विरुपाक्ष नमस्ते दिव्य चक्षुसे, 

नमः पिनाक हस्ताय वज्रहस्ताय वै नमः,

नमः त्रिशूल हस्ताय दंडपाशासिपानये, 

नमस्त्रैलोक्यनाथाय भूतानाम पतयेनमः,

नमः शिवाय शॉंताय कारणत्रयहेतबे, 

निवेदयामि चात्मानम् त्वमगतिः परमेश्वरा।’’

अर्थात्, ‘‘दिव्यद्रष्टि वाले विरूपाक्ष तुम्हें प्रणाम, पिनाक और बज्र को हाथ में धारण करने वाले तुम्हें प्रणाम, त्रिशूल रस्सी और दंड को धारण करने वाले तुम्हें प्रणाम, सभी प्राणियों/भूतों के स्वामी और तीनों लोकों के स्वामी तुम्हें प्रणाम, तीनों लोकों के आदिकारण शॉंत शिव को प्रणाम, परम प्रभो मेरी यात्रा के अंतिम बिंदु और लक्ष्य मैं अपने आप को आपके समक्ष समर्पित करता हॅूं।’’

स्पष्टीकरण- 

शब्द ‘विरूपाक्ष’ के दो अर्थ हैं, एक तो वह जिसके नेत्र विरूप अर्थात् अप्रसन्न या क्रोधित हों, दूसरा यह कि जो प्रत्येक को विशेष मधुर और कल्याणकारी द्रष्टि से, दयालुता से देखता हो। पापियों के लिये शिव, विरूपाक्ष  पहले रूप में और सद्गुणियों के लिये दूसरे अर्थ में लेते थे।

‘दिव्यचक्षु’ का अर्थ है जिसके पास प्रत्येक वस्तु के भीतर छिपे मूल कारण को देख सकने  की दिव्य द्रष्टि है, अर्थात् वर्तमान भूत और भविष्य को देख सकने वाला।

‘पिनाक’ अर्थात् जो डमरु को बजा कर सभी प्राणियों के शरीर मन और आत्मा को कंपित कर देता हो वह सदाशिव हैं। दुष्टों को दंडित करने और अच्छे लोगों की रक्षा के लिये हमेशा से हर युग में हथियार बनाये जाते रहे हैं शिव ने भी सब की भलाई के लिये भयंकर वज्र धारण किया। इसलिये वे वज्रधर ही नहीं ‘शुभवज्रधर’ कहलाते हैं ।

‘त्रिशूल’ से शिव शत्रुओं को तीन ओर से छेदित करते थे, शिव इसे हाथ में लिये रहते थे इसलिये वे ‘शूलपाणि’ कहलाते हैं। पापियों के हृदय में भय पैदा करने और बांधने के लिये, जिससे कि वे पाप से दूर रहें और सच्चे लोगों को शॉंति से रहने दें, शिव, दंड और रस्सी लिये रहते थे।

‘त्रैलोक्यनाथ’, शिव तीनों लोकों के जीवन प्रवाह को नियंत्रित, पालित और पोषित करने के कारण त्रैलोक्यनाथ और इस पृथ्वी के सभी जीवधारियों की प्रकृति को भलीभांति जानते हैं अतः वे भूतनाथ कहलाते हैं। संगीत विद्या के विद्यार्थियों के लिये वह प्रमथनाथ हैं। चूॅंकि शिव अपने भीतर और बाहर पूर्ण नियंत्रित रहते थे अतः वे शान्त कहलाते हैं। इस शॉंत पुरुष के पास सब पर नियंत्रित करने की शक्ति है इसलिये कहा गया  है ‘नमः शिवाय शान्ताय‘।

जड़, सूक्ष्म और कारण संसार के मूलकारण घटक को चितिशक्ति कहते हैं। ये शिव और चितिशक्ति एक ही हैं। इसीलिये उन्हें ‘कारणस्त्रयहेतबे‘ कहा गया हैं। उस परमसत्ता को, जिसने अपने मधुर और प्रभावी प्रकाश से सभी निर्मित और अनिर्मित को भीतर बाहर से प्रकाशित कर रखा है, सभी प्रणाम करते हैं और समर्पित रहते हैं। वही सबके अंतिम लक्ष्य होते हैं, अतः कहा गया है ‘निवेदयामि च आत्मानम् त्वम गतिः परमेश्वरा‘। हे परमेश्वर मैं अपने आपको आपके समक्ष समर्पित करता हूॅ क्योंकि आप ही मेरे परम आश्रय हैं। हे शिव, हे परम पुरुष, अनाथों के अंतिम आश्रय, थकेमांदों के अंतिम आश्रयस्थल, मैं अपने अस्तित्व की सभी भावनायें आपके चरणों में समर्पित करता हॅूं।


No comments:

Post a Comment