लगभग 2000 वर्ष पहले भारत के एक महान सन्त अष्टावक्र ने योग विज्ञान में क्रान्तिकारी अनुसंधान किया था। वास्तव में उनका शरीर अष्टांगयोग की साधना करने के लिए वांछित योगासनों को उचित प्रकार से नहीं कर पाता था। बताया जाता है कि उनके शरीर में आठ प्रकार की वक्रता थी जिससे वे किसी भी प्रकार से अपने शरीर को साधना करने के लिए सीधा और स्थिर रखकर नहीं बैठ पाते थे। इसलिए उन्होंने शरीर में स्थित विभिन्न ऊर्जा केन्द्रों (जिन्हें योगविज्ञान में चक्र कहा जाता है) और उनसे संबंधित वृत्तियों पर नियंत्रण करने का उपाय खोजा जिनके आधार पर वे शरीर की किसी भी स्थिति में साधना करने में सफल हो गए। अपनी ‘‘अष्टावक्र संहिता’’ नामक पुस्तक में उन्होंने इस योग साधना की पद्धति को उन्होंने ‘‘राजाधिराज योग’’ नाम दिया है। उन्होंने इस पद्धति को सबसे पहले बंगाल के वक्रेश्वर में अलार्क नामक शिष्य को सिखाया था।
उन्होंने अपनी पुस्तक में बताया है कि मनुष्य के शरीर में स्थित रीढ़ के सबसे निम्न विंदु पर जो ऊर्जा केन्द्र होता है उसे ‘मूलाधार चक्र’ कहा जाता है और वह चार वृत्तियों, धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष को नियंत्रित करता है। उससे ऊपर लिंगमूल के बिलकुल पीछे ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ छह वृत्तियों अवज्ञा, मूर्छा, प्रणाश, अविश्वास, सर्वनाश, और क्रूरता को नियंत्रित करता है। उससे ऊपर नाभि पर स्थित मनीपुर चक्र दस वृत्तियों लज्जा, पिशूनता, ईर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, क्षय, तृष्णा, मोह घृणा और भय पर नियंत्रण करता है। उससे ऊपर छाती के केन्द्र पर अनाहत चक्र होता है जो बारह वृत्तियों, आशा, चिंता, चेष्टा, ममता, दंभ, विवेक, विकलता, अहंकार, लोलता, कपटता, वितर्क और अनुताप पर नियंत्रण करता है।
गले के क्षेत्र में स्थित विशुद्ध चक्र 16 वृत्तियों षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत्य, निषाद, औम, हुम्, फट्, वोषट, वषट, स्वाहा, नमः, विष और अमृत को नियंत्रित करता है। दोनों भौहों के बीच स्थित आज्ञा चक्र दो वृत्तियों अपरा, और परा ज्ञान को नियंत्रित करता है। इन चक्रों के आस पास ही इनके उपचक्र होते हैं जो इनसे जुड़ी वृत्तियों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार मनुष्य से संबंधित सभी 50 वृत्तियां भीतर, बाहर और दसों दिशाओं में क्रियारत होने के कारण कुल 1000 हो जाती है जिन्हें कपाल के मध्य स्थित सहस्त्रार चक्र नियंत्रित करता है। आज के विज्ञान को यह अभी तक अज्ञात है, इसे जानकर आगे के अनुसंधान की आवश्यकता है।
अष्टावक्र ने बताया कि हम नियमित योगासनों की सहायता से प्रत्येक चक्र से जुड़ी वृत्तियों पर नियंत्रण पा सकते हैं और अपने विचारों और व्यवहार में परिवर्तन ला सकते हैं। आसनों से इन चक्रों या उपचक्रों पर या तो दबाव बढ़ाया जाता है या कम किया जाता है जिससे वृत्तियों पर नियंत्रण होता है जैसे, मयूरासन से मनीपुर चक्र पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है अतः यदि इसे नियमित रूप से किया जाता है तो इस चक्र और उसके चारों ओर के उपचक्रों से स्रावित होने वाले हरमोन्स व्यवस्थित होकर उनसे जुड़ी हुई वृत्तियों को भी अधिक संतुलित कर लेते हैं। मानलो कोई व्यक्ति बड़े जनसमूह के सामने बोलने से डरता है तो इसका अर्थ है उसका मनीपुर चक्र कमजोर है। अब यदि वह मयूरासन नियमित रूप से करता है तो उसका यह भय समाप्त हो जाएगा। इसी प्रकार अन्य चक्रों और उपचक्रों पर आवश्यक दबाव कम करके भी हारमोन्स को अपने अनुकूल स्रावित करने योग्य बनाया जा सकता है और उनसे जुड़ी वृत्तियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
स्पष्ट है कि आध्यात्मिक साधना करने वालों को अपने अनुकूल आसनों को ज्ञात कर सावधानी से उन्हें करने का अभ्यास नियमित रूप से करते रहने पर अवश्य ही सफलता मिलती है। आजकल तथाकथित योग के प्रचार से विश्व भर में योगासनों का व्यापक प्रदर्शन करने वाले योग गुरुओं की अचानक बाढ़ आ गई और यह धंधा जोर पकड़ता जा रहा है। योग साधना करने के इच्छुक और योग से रोग हटाने के इच्छुक लोगों को बहुत सोच समझकर योग्य व्यक्ति से ही इनसे यह सीखना चाहिए।
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