वह परमसत्ता केवल एक ही है। दार्शनिकों ने उसे अपने अपने ढंग से समझाने के लिए अनेक दार्शनिक नाम दिये हैं जैसे, परमब्रह्म, परमपुरुष आदि। स्वयंभू का अर्थ है केवल ‘‘स्वयं होना’’ अर्थात् स्वयं अस्तित्व में आना। इसलिए सभी कुछ जो हम देख पाते हैं और नहीं देख पाते, उनके मन में ही हैं अतः वे निर्पेक्ष हैं और पूरा ब्रह्मांण्ड सापेक्ष।
जैसे, हमारा शरीर हमारे मन का ही विस्तार है उसी प्रकार यह सम्पूर्ण जगत, गेलेक्सीज, ब्लेकहोल सहित पूरा ब्रह्माण्ड और स्पेस, टाइम आदि सब उनके मन का ही विस्तार है। हमें यह जानकर अजीब लगता है क्योंकि हम सभी उन्हें अपने से पृथक मानते हैं जबकि हम सब उन्हीं के मन में हैं। इसीलिए उपनिषदें बार बार उनसे अपनी पृथकता को भूलकर अपने ही हृदय में अनुभव करने की विधियों का पालन करने का मार्गदर्शन करती है।
जब तक हम अपने को उनसे पृथक मानते रहेंगे हम उस अमरत्व को अनुभव नहीं कर सकते। समुद्र के किनारे पर बैठकर समुद्र की गहराई का अनुभव नहीं किया जा सकता उसमें डूबना ही पड़ता है। इस तरह जब हम समुद्र के साथ अपनी एकता स्थापित कर लेते हैं तब हमें समुद्र क्या है यह अनुभूति हो जाती है। वास्तव में लोगों को पौराणिक कहानियों ने भ्रमित कर रखा है। हमें अपने तर्क, विज्ञान और विवेक का उपयोग करना चाहिए।
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