Sunday, 3 December 2023

419 अक्षरामृत कौन है?

 

विद्वान ऋषियों ने यह जानने के लिए एक संगोष्ठी की कि वह कौन है जो इस समग्र ब्रह्माण्ड का नियंत्रण करता है जिसकी उपासना कर हम इस विश्वमाया से मुक्त हो सकें। इस पर अनेक मत इस तर्क पर स्थिर हो गए कि ‘प्रकृति’ ही वह सत्ता है जो सभी पर नियंत्रण करती है और सभी का संचालन करती है, इतना ही नहीं प्रकृति ने ही अपनी विश्वमाया में सबको भ्रमित कर रखा है अतः उसी की उपासना करना चाहिए। एक ऋषि इससे सहमत नहीं हुए। उन्होंने तर्क दिया कि ‘‘ ‘प्र’ करोति या सा प्रकृतिः’’ अर्थात् जो अपने को विभिन्न प्रकारों में रूपान्तरित करती रहती है वह प्रकृति है अतः जो बदलता रहे वह परम सत्य नहीं माना जा सकता। चूंकि प्रकृति का क्षरण होता रहता है इसलिए वह अमर नहीं है अतः उसे उपास्य भी नहीं माना जा सकता। उपास्य वही हो सकता है जो अमर हो। तो वह अमर सत्ता कौन है जिसकी उपासना की जा सकती है? एक ऋषि बोले ‘‘हर’’ ‘ह’ माने अन्तरिक्ष और ‘र’ माने ऊर्जा इसलिए अन्तरिक्षीय ऊर्जा ही अक्षय है वह नष्ट नहीं होती अतः ‘हर’ ही अमर हैं और वही अक्षर भी इसलिए वही उपास्य हैं।

अन्य ऋषि ने तर्क दिया कि ऊर्जा भले ही नष्ट न हो परन्तु रूप तो बदलती रहती है अतः वह भी प्रकृति की भॉंति है इसलिए जब प्रकृति उपास्य नहीं है तो ऊर्जा को भी उपास्य नहीं माना जा सकता। बहुत डिस्कशन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि ‘‘प्रकृति का क्षरण होता है और ऊर्जा भले अक्षर है परन्तु इसे उपासना का लक्ष्य नहीं माना जा सकता। परन्तु इन दोनों का ही नियंत्रणकर्ता कोई एक ही सत्ता है जिसके अभिध्यान करने, जिससे जुड़ने और जिसके सर्वत्र व्याप्त होने का अनुभव करने पर ही हम इस विश्वमाया से मुक्ति पा सकते हैं।

सूत्र के रूप में इसे उपनिषद इस प्रकार व्यक्त करते हैं- 

‘‘क्षरं प्रधानं अमृताक्षरं हरः क्षरात्मनावीशते देव एकः, 

तस्याभिध्यानात् योजनात् ततत्वभावात् भूयश्चान्ते विश्वमाया निवृतिः।’’


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