Friday, 22 December 2023

421 रामायण/रामचरितमानस में कमियॉं निकालना?

 

प्रत्येक रचनाकार अपनी रचना की विषयवस्तु में किसी एक चरित्र को केन्द्रित कर अपने विचार व्यक्त करता है। अन्य चरित्र कथानक की आवश्यकता के अनुसार यथा स्थान पर अपनी भूमिका पाते जाते हैं। रामायण या रामचरितमानस जैसे महाकाव्यों में जिस चरित्र को प्रधानता दी गई है वह है ‘‘राम’’। इसलिए स्वाभाविक है कि अन्य सभी पात्रों की भूमिका ‘‘राम’’ के चारों ओर ही सीमित रहेगी। ‘रामायण’ माने ‘राम का घर’ और ‘रामचरितमानस’ माने ‘मेरे मन के अनुसार राम का चरित्र’ अतः स्पष्ट है कि रचनाकार किसी चरित्र का चित्रण करते समय जितना आवश्यक होगा उतना विवरण ही देगा। इससे उस रचयिता पर किसी चरित्र की उपेक्षा किए जाने का दोषारोपण करना उचित प्रतीत नहीं होता। पूर्वोक्त ग्रंथों के रचियताओं ने अपने इष्ट ‘‘राम’’’ के प्रति अनन्य निष्ठा प्रदर्शित की है और उनसे जुड़े सभी पात्रों के चरित्रों में भी उसी निष्ठा को निरूपित किया है फिर चाहे वह लक्ष्मण और भरत हो या दशरथ और सुमित्रा अथवा वशिष्ठ और मंथरा। रचनाकार भक्तों का पूर्णतः उद्देश्य यह है कि हर प्रकार से वे अपने इष्ट ‘राम’ के प्रति ‘‘ओत प्रोत’ भाव से जुड़े रहें। भक्ति की पराकाष्ठा में भक्त अपने इष्ट से क्षण भर भी दूर नहीं रह सकता। बार बार वन के कष्टों का विवरण देकर राम द्वारा रोके जाने पर भी लक्ष्मण और सीता इसीलिए उनके साथ साथ वन चल दिये। उन दोनों की भावना यह थी कि मुझे चाहे जितना कष्ट हो पर मैं अपने इष्ट को अपने प्रत्येक कार्य से प्रसन्नता देना चाहता हंॅू। यह रागात्मिका भक्ति कहलाती है। दशरथ अपने इष्ट से दूर रह ही नहीं सकते थे इसलिए राम के वन जाते ही उन्होंने अपने शरीर को ही तिनके की भांति त्याग दिया। तुलसीदास जी का कहना है, ‘‘वन्दौ अवध भुआल, सत्य प्रेम जेहिं राम पद। विछुरत दीनदयाल, प्रिय तनु तृण इव परिहरेउ। इसलिए पौराणिक कथाओं को शब्दशः न लेकर उनके पीछे दी गई शिक्षा ही ग्रहण करना चाहिए परन्तु तथाकथित विद्वान मनमानी व्याख्या कर उनके महत्व को कम करते देखे जाते हैं!



No comments:

Post a Comment