Sunday, 6 March 2016

52 बाबा की क्लास (अष्टाॅंगयोग -2)

( मित्रो पिछली क्लास में अष्टाॅंग योग के दो सोपानों पर चर्चा की जा चुकी है, आज हम इसके आगे चर्चा करेंगे )
52 बाबा की क्लास (अष्टाॅंगयोग -2)
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रवि- बाबा! यह दूसरा स्तर तो पहले स्तर से भी कठिन लगता है, शायद इसी कठिनाई से डरकर लोग इससे दूर ही रहना चाहते हैं?
बाबा- प्रारंभ में तो सभी कुछ कठिन लगता है, परंतु एक बार अच्छी तरह इसका महत्व और प्रक्रिया को सही ढंग से समझ लेने पर सब कुछ सरल हो जाता है। इसके आगे आता है तीसरा स्तर जिसे ‘‘आसन‘‘ कहागया है और एक बार विस्तार से तुमलोगों को इसके बारे में पहले बताया भी जा चुका है ।

इंदु- हाॅं बाबा! परंतु हम चाहते हैं कि फिर से उसे दुहरा दिया जाये तो सभी स्तरों के साथ याद रखने में सहायता मिलेगी?
बाबा-  मानव शरीर विज्ञानी कहते हैं कि शरीर के स्वस्थ संचालन हेतु प्रकृति ने इसमें अनेक ग्रंथियाॅं और उपग्रंथियाॅं ‘‘अर्थात् ग्लेंडस् और सबग्लेंडस्‘‘ बनाई हैं जिनसे निकलने वाले ग्रंथिरस ‘‘अर्थात् हार्मोन्स‘‘ के माध्यम से यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाये रखता है। संस्कृत में इन्हें चक्र और लेटिन में प्लेक्सस कहते हैं।
योगासन वे सरल भौतिक स्थितियाॅं हैं जो ग्रंथियों और ऊर्जा केन्द्रों को हारमोन्स का स्राव करने हेतु अनुकूल परिस्थितियाॅं पैदा करती हैं। इनसे ग्रंथियों का दोष दूर होता है और वृत्तियों पर नियंत्रण होता है। आसन ग्रंथियों को, ग्रंथियाॅं हारमोन्स को और हारमोन्स वृत्तियों को नियंत्रित करते हैं। ये शरीर में लचीलापन लातीं हैं। शरीर और मन में संतुलन रखती हैं। मन को जड़ चिंतन से दूर करती हैं। उच्च और सूक्ष्म साधना करने के लिये मन को तैयार करतीं हैं। आसनों के प्रकार प्रमुखतः ये हैं-
1 सर्वांगासन -शारीरिक स्वास्थ्य के लिये।
2 ध्यानासन- मन को नियंत्रित करने और ध्यान के लिये जैसे पद्मासन, बद्धपद्मासन, सिद्धासन और वीरासन। 3 मुद्रा- यह कठिन आसन होते हैं जो उचित साॅंस लेने और नियंत्रण के लिये किये जाते हैं।
4 बन्ध- ये केवल षरीर के भीतर की दस वायुओं को प्रभावित करते हैं।
5 वेध- ये सभी नाडि़यों और वायुओं को प्रभावित करते हैं।
प्रत्येक चक्र से मनुष्य के संस्कार या ‘प्रोपेन्सिटीज‘ भी जुड़े रहते हैं जो योगासनों के नियमित अभ्यास करने से नियंत्रित होते हैं। संस्कारों के नियंत्रण से विचार भी नियंत्रित होने लगते हैं, क्योंकि सभी योगासनें या तो ग्लेंडस् पर दवाव डालती हैं या दवाव कम करती हैं। जैसे मयूरासन में मणीपुर चक्र के चारों और दवाव बनने से उसपर और संबंधित उपग्रंथियों पर भी धनात्मक प्रभाव पड़ता है अतः वे सब संतुलित हारमोन्स का स्राव कारने लगती हैं जिससे जन्मजात प्रवृत्तियाॅं भी नियंत्रित होने लगती हैं। उदाहरणार्थ, यदि किसी को सभाओं में या वाद विवाद प्रतियोगिता में बोलने में डर लगता है और यदि वह मयूरासन नियमित रूप से करने लगे तो यह भय समाप्त हो जायेगा।
हारमोन्स का अधिक स्राव होने से प्रोपेन्सिटीज अधिक सक्रिय होती हैं और कम स्राव होने पर कम, इसलिये योगासनों के नियमित अभ्यास करने पर हारमोन्स के स्राव को आवश्यकतानुसार कम या अधिक किया जा सकता है। थायराइड और पैराथायराइड ग्लेंडस्  अर्थात् ‘‘विशुद्धचक‘‘ एवं आज्ञा चक्र अर्थात् ‘‘पिट्युटरी ग्लेंड‘‘ दोनों बौद्धिक विकास के लिये,  और लिंफेटिक ग्लेंडस्  अर्थात् मूलाधार , स्वाधिष्ठान और मणीपुर चक्र भौतिक विकास के लिये उत्तरदायी होते हैं। शीर्षासन सभी के लिये हानिकारक है, शीर्ष पर सहस्त्रार चक्र या पीनियल ग्लेंड होता है जो ध्यान की उचित विधियों के अनुसार अभ्यास करके सक्रिय किया जाता है न कि शीर्षासन से। इसके सक्रिय होने से सभी प्रोपेन्सिटीज और पूरा शरीर नियंत्रण में आ जाता है।
चक्रों और प्रोपे्रन्सिटीज पर नियंत्रण करने की यौगिक पद्धति का अनुसंधान 2000 वर्ष पूर्व  महान संन्त अष्टावक्र ने किया था और अपने निष्कर्षों को अष्टावक्रसंहिता नामक ग्रंथ में लिखा था। हमें मनमाने तरीके से इन्हें नहीं करना चाहिये वरन् जानकार व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही अभ्यास करना चाहिये अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

चंदू-  बाबा! हमें कौन से आसन करना चाहिये?
बाबा-  सर्वांगासन छात्रों के लिये सर्वश्रेष्ठ है। इसके अलावा मत्स्येन्द्रासन, भुजंगासन, शषकासन, बज्रासन और वीरासन भी यथा समय करना चाहिये।
आसन के बाद अष्टाॅंगयोग में अगला स्तर आता है ‘‘प्रणायाम‘‘ का, इसे भी एक बार विस्तार से बताया जा चुका है।

रवि- जब आसनों को दुहरा कर नवीन कर दिया गया है तो प्रणायाम को भी क्यों न नवीनीकृत किया जावे?
बाबा- स्वाभाविक श्वास  पर नियंत्रण करने का कार्य अष्टाॅंग योग में अनिवार्य घटक माना गया है, संस्कृत में इसे प्राणायाम कहते हैं। वह विधि जिससे प्राण (vital fluid) अर्थात् प्राण के दसों प्रकार प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, क्रकर, देवदत्त और धनन्जय, इन सब पर नियंत्रण किया जाता है प्राणायाम कहलाती है। यदि आप हर प्रकार के ज्ञान को आत्मसात कर पाने की अपनी शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं तो प्राणों को अधिकतम विस्थापन अर्थात् आयाम (amplitude)  देने की यह वैज्ञानिक विधि सीखना चाहिये जिससे मन को एक विंदु पर केन्द्रित करना सरल हो जाता है। यह शरीर के अनेक रोगों को दूर करने के भी काम आता है , परंतु किसी भी प्रकार के प्राणायाम को बिना उचित मार्गदर्शक  के करना वर्जित है। प्राणायाम को  साधारण, सहज, विशेष और अन्तः इन चार प्रकारों में विभाजित किया गया है ।

रवि- प्राणायाम की सही विधि क्या है?
बाबा- साधारण प्राणायाम की विधि में आॅंखें बंद कर सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर आसन शुद्धि करने के बाद मन को अष्टाॅंगयोग के आचार्य के द्वारा बताये गये बिंदु पर मन को स्थिर करके चित्त शुद्धि करने के बाद अपने इष्ट मंत्र के पहले अक्षर पर चिंतन करते हुए दाॅंये हाथ के अंगूठे से दायीं नासिका को दबाये हुए वाॅंयी नासिका से धीरे धीरे गहरी श्वास भीतर खींचना चाहिये और इस समय सोचना चाहिये कि अनन्त ब्रह्म जो हमारे चारों ओर है उसके किसी विंदु से अनन्त जीवनीशक्ति भीतर प्रवेश  कर रही है। पूर्ण श्वास  भर जाने के बाद वाॅंयीं नासिका को मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा अंगुली से बंद करते हुए दाॅयीं नासिका से अंगूठे को हटा कर श्वास  को धीरे धीरे बाहर करते हुए सोचना चाहिये कि अनन्त जीवनीशक्ति अनन्त ब्रह्म में वापस जा रही है और साथ साथ अपने इष्ट मंत्र के दूसरे अक्षर पर चिंतन करते रहना चाहिये। यह ध्यान रखना चाहिये कि श्वास  लेते हुए या छोड़ते हुए आवाज नहीं हो । पूरी श्वास  निकल जाने के बाद अब दाॅयीं नासिका से धीरे धीरे पूरी श्वास  लेते हुए उसी प्रकार इष्ट मन्त्र  चिंतन करते हुए अंगूठे को उसी प्रकार दबा कर अंगुलियों को हटाकर श्वास  को पूर्णतः बाहर कर देना चाहिये । यह एक प्राणायाम हुआ।

चंदू- तो क्या इसकी न्यूनतम और अधिकतम संख्या निर्धारित है?
बाबा- हाॅं, एक सप्ताह तक केवल तीन प्राणायाम दोनों समय करना चाहिये, फिर प्रति सप्ताह एक एक की वृद्धि करते हुए अधिकतम सात प्राणायाम करने की सलाह दी जाती है। प्राणायाम को एक दिन में अधिकतम चार बार तक किया जा सकता है। जो नियमित रूप से दो बार प्राणायाम कर रहे हों और किसी दिन वे तीनबार करना चाहते हैं तो कर सकते हैं पर उन्हें अचानक चार बार प्राणायाम नहीं करना चाहिये । इसलिये उचित यही है कि पहले पहले दोनों समय तीन और फिर एक सप्ताह बाद क्रमशः  एक एक बढ़ाते हुए अधिकतम सात की संख्या तक ही करना चाहिये। फिर भी कोई यदि किसी दिन निर्धारित संख्या में प्राणायाम नहीं कर पाया हो तो सप्ताह के अंत में उतनी संख्या बार प्राणायाम करके क्षतिपूर्ति कर लेना चाहिये। यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि धूल, धुएं और दुर्गंध से दूर रहें तथा अधिक शारीरिक श्रम न करें। इसका अभ्यास प्रारंभ करने के समय प्रथम दो माह तक पर्याप्त मात्रा में दूध और उससे बनी सामग्री का उपयोग भोजन में करना चाहिये।

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