Sunday, 15 May 2016

64 बाबा की क्लास ( धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र)

64 बाबा की क्लास ( धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र)
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रवि- बाबा! श्रीमद्भागवत, महाभारत और श्रीमद्भगवद्गीता में क्या अंतर है?
बाबा- श्रीमद्भागवत पुराण है, जिसके अंतर्गत महाभारत इतिहास का विवरण है। इसी महाभारत युद्ध के बीच हुए अर्जुन और कृष्ण के संवाद को श्रीमद्भगवद्गीता कहा गया है। संक्षेप में इसे केवल गीता भी कहते हैं, इसमें मानव जीवन के लक्ष्य और कर्म के संबंध में उत्तम ज्ञान दिया गया है।

राजू- परंतु श्रीमद्भगवद्गीता में पहला संवाद तो धृतराष्ट्र और संजय के बीच प्रारंभ हुआ बताया गया है?
बाबा- हाॅं, परंतु तुम लोगों के लिये इसे केवल कहानी और युद्ध के वर्णन के आधार पर नहीं वरन उसके भीतर छिपे हुए रहस्यों और शिक्षाओं के आधार पर ही अध्ययन करना चाहिये। इस युद्ध को इस प्रकार नहीं याद रखना कि यह तो पाॅंच हजार साल पुरानी घटना है, यह महाभारत तो अभी भी सभी के साथ रोज ही चल रहा है और चलता रहेगा जब तक सभी इकाई चेतनायें, परमचेतना के साथ एकीकृत नहीं हो जातीं।

नन्दू- इसका रहस्य क्या है बाबा?
बाबा- अच्छा, ध्यान से सुनो और समझकर याद रखना ताकि अन्य लोगों को भी सही सही बता सको। धृतराष्ट्र का अर्थ क्या है जानते हो?
चंदू- हाॅं, दुर्योधन आदि एक सौ भाइयों के पिता जो जन्म से ही अंधे थे।

बाबा- हाॅं , परंतु रहस्य यह है कि धृत मानें होता है जो धारण किये हो और राष्ट्र माने संरचना अर्थात्  स्ट्रक्चर। तो संरचना को जो धारण किये हो वह हुआ धृतराष्ट्र । यहाॅं संरचना क्या है? संरचना है यह ‘शरीर‘ और उसे धारण कौन किये है? उसे धारण किये है ‘मन‘। धृतराष्ट्र कैसे थे? वे जन्माॅध थे। तो मन भी जन्माॅंध होता है वह बिना आॅंखों के कैसे देख सकता है इसलिये उसकी आॅंखें है ‘संजय‘ जिसका अर्थ है बुद्धि और विवेक। अतः इसे अब हम यह मानें कि ‘मन‘ और ‘बुद्धि‘ के बीच वार्तालाप हो रहा है। क्या तुम लोग जानते हो कि यह वार्तालाप कहाॅं हुआ था?
रवि- हाॅं, वर्तमान हरियाणा के कुरुक्षेत्र में।
बाबा- तो, इस कुरुक्षेत्र को भी समझ लो क्या है? कुरुक्षेत्र है यह समस्त धरती । यह धरती, इस पर रहने वाले सभी लोगों से कह रही है कुछ करो , कुछ करो ... कुरु का अर्थ करना । इसलिये  कुरुक्ष्ेात्र का अर्थ है कर्म संसार, जो लगातार कुछ करने को पूछता है,  जो क्षेत्र कह रहा है कि कुछ करो, कुछ करो वह है कुरुक्षेत्र।

नन्दू- तो फिर धर्मक्षेत्र का क्या अर्थ है?
बाबा-  धर्मक्षेत्र है , आन्तरिक मानसिक संसार जहाॅं पांडव प्रभावी होते हैं।

इंदु- इस प्रकार 100 कौरव कौन से हैं?
बाबा- पूर्व, पश्चिम , उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्व  और अधः ये छः दिशायें और ईशान, आग्नेय, वायव्य, और नैऋत्य ये चार अनुदिशायें मिलकर कुल दस दिशायें होती है। मन अंधा है अतः वह विवेक के द्वारा देख व समझ पाता है। मन धृतराष्ट्र है और उसके दस एजेंट वहिःकरण की दसों इंद्रियाॅं (अर्थात् पाॅंच ज्ञानेन्द्रियाॅं और पाॅंच कर्मेन्द्रियाॅं) , इन दसों दिशाओं में एकसाथ कार्य करते हैं अतः 10 गुणित 10 बराबर 100 यही धृतराष्ट्र के पुत्र हैं जो कौरव कहलाते हैं।

राजू- और पाॅंडव?
बाबा- मानव शरीर की रचना करने वाले पंच तत्व पाॅंडव हैं। शरीर की आन्तरिक संरचना में इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का जहाॅं जहाॅं मिलन होता है वहीं पर ऊर्जा केन्द्र बन जाते हैं जिन्हें चक्र या प्लेक्सस कहते हैं। प्रथम ऊर्जा केन्द्र हैं ‘सहदेव‘ अर्थात् ठोस अवस्था अर्थात्, मूलाधार चक्र  जो कि सभी के आधार स्तंभ हैं। द्वितीय ऊर्जा केन्द्र अर्थात् ‘नकुल‘ स्वाधिष्ठान चक्र अर्थात् जल तत्व। तृतीय केन्द्र ‘अर्जुन‘ ऊर्जा को प्रदर्शित  करते हैं अर्थात् मनीपुर चक्र। चौथे केन्द्र ‘भीम‘ वायु तत्व अर्थात् अनाहत चक्र । और पाॅंचवे केन्द्र विशुद्ध चक्र या व्योम तत्व को युधिष्ठिर प्रदर्शित  करते हैं। विशुद्ध चक्र तक भौतिक संसार समाप्त हो जाता है और आज्ञा से सहस्त्रार तक आध्यात्मिक संसार कहलाता है। इसलिये भौतिकवादियों और आध्यात्मवादियों अर्थात् स्थूल और सूक्ष्म के बीच में होने वाले झगड़े में युधिष्ठिर स्थिर रहते हैं। युद्धे स्थिरः यः सः युधिष्ठिरः।

रवि- इनमें युद्ध का होना क्या है, यह कैसे संभव है?
बाबा- परम चेतना (fundamental positivity) अर्थात् कृष्ण सहस्त्रार में हैं । इकाई चेतना(fundamental negativity) जो कि मूलाधार में कुंडलनी की तरह होती है वह पाॅंडवों की मदद से कृष्ण तक पहुंचना चाहती है। पाॅंडव उसे मदद करना चाहते हैं परंतु अंधे मन धृतराष्ट्र के सौ पुत्र उन्हें यह करने से रोकते हैं और इकाई चेतना को बाहरी संसार में ही फंसाये रखना चाहते हैं। इसलिये युद्ध चलता रहता है। धृतराष्ट्र अर्थात् मन,  संजय अर्थात् विवेेक से पूछ रहा है कि युद्ध में क्या हुआ। विवेक बता रहा है कि अंततः इकाई चेतना अर्थात् जीवात्मा अथवा जीव, पाॅंडवों की सहायता से युद्ध जीतकर कृष्ण के पास पहुंच जाता है।  इस तरह महाभारत का युद्ध प्रत्येक के साथ रोज ही चल रहा है यही इस धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र  का असली रहस्य है।  अपनी इकाई चेतना को पंचतत्वों की सम्यक सहायता लेकर हमें, मन के 100 प्रकार के भौतिक आकर्षणों से जूझते हुए , परम लक्ष्य परमचेतना तक जाने का कार्य करना है, करते रहना है जब तक हम लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाते, श्रीमद्भगवद्गीता यही शिक्षा देती है ।

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