71 इन्द्रजाल
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गेट पर भजन गाते भिखारी को कुछ देने के लिये शर्मा जी ज्योंही उठे सामने से मित्र गुप्ता जी गेट के भीतर आते दिखे। उन्हें नमस्कार कर बैठने का इशारा करते हुए भिखारी को पाॅंच रुपये का सिक्का देकर बोले, अभी एक भजन और सुनाओ पाॅंच रुपया और दॅूंगा, सुनकर भिखारी दूसरा भजन सुनाने के लिये अपना तम्बूरा ठीक करने लगा और शर्माजी, गुप्ता जी के पास बैठते हुए बोले ...
‘‘ कहो आज कैसे भूल पड़े ?‘‘
‘‘ अरे! तुम्हें मालूम नहीं? तुम्हारे एरिया के सामुदायिक भवन में एक पहॅुचे हुए संत आये हैं, उन्हीं के दर्शन करने आया था, सोचा यहाॅं तक आये हैं तो आप से भी मिलता चलॅूं।‘‘
‘‘ आपकी कृपा है, मुझे याद रखा।‘‘
‘‘ लेकिन यार! आश्चर्य है, दूर दूर से बड़े बड़े लोग संत जी से मिलने आ रहे हैं और तुम्हें पता ही नहीं है? विधायक, मंत्री और जिले के बड़े अफसर और नागरिक, सभी की भीड़ इतनी थी कि बैठने की जगह ही कम पड़ गयी, मैं भी पीछे की ओर खड़े हो कर ही उन्हें देख पाया। वाह! क्या भव्य रूप है भाई, धन्य हो गया देखकर .... .... ( गुप्ता जी अपना कथन जारी रखे थे, शर्मा जी बिना कुछ प्रतिक्रिया किये सुनते जा रहे थे, और बीच में ही भिखारी भी अपने भजन को तम्बूरे की तान पर गाने लगा था... हरि बोल , हरि बोल, हरि बोल रे मन ... ) ... ... लौटते हुए तुम्हारे घर तक लगभग एक किलोमीटर आने में एक घंटा लग गया, भीड़ केे कारण ट्रेफिक ही जाम हो गया था।‘‘
‘‘ मित्र गुप्ता जी! क्या बता सकते हो सन्त जी ने क्या कहा मिलने आई भीड़ से?‘‘
‘‘ मैंने बताया न ! कि भीड़ बहुत थी और मैं सबसे पीछे खड़ा कुछ स्पष्ट सुन ही नहीं पाया वे बहुत देर से बोल रहे थे और मेरे पहुंचने के पन्द्रह मिनट के बाद प्रवचन समाप्त हो गया।‘‘
( इसी बीच शर्माजी ने भिखारी को पास बुलाया और पाॅंच रुपये का सिक्का देते हुए कहा, बहुत अच्छा भजन गया, धन्यवाद, भिखारी सिक्का लेकर तुरन्त ही दूसरे घर जा पहुंचा ) शर्माजी बोले,
‘‘गुप्ता जी! इन व्यावसायिक प्रवचनकर्ताओं और उनके चेला मेकिंग सिस्टम में बंधे ये तथाकथित बड़े बड़े लोग इस भजन गायक भिखारी की तरह ही होते हैं‘‘
‘‘क्या मतलब?‘‘
‘‘देखा नहीं ? इस भिखारी ने भजन तो कितना मार्मिक गाया परंतु उसका अर्थ नहीं समझता रंचमात्र भी। गा रहा था ईश्वर का भजन पर उसका ध्यान था पाॅंच रुपये के सिक्के पर कि कब मिले और वह अन्य स्थान पर माॅंगने जा सके। इसी प्रकार इन विधायकों , मंत्रियों, अफसरों या अन्य श्रोतागणों का लक्ष्य भी केवल प्रवाचक के संबंध में प्रचारित किये गये गुणगान से आकर्षित होकर मान, प्रतिष्ठा, पद और धन पाने की लालसा में तथाकथित कृपा पाने के लिये ही होता है, ईश्वर को पाने के लिये तो बिलकुल नहीं।‘‘
‘‘तो क्या ...! ...! ...!‘‘
‘‘ बिल्कुल, इन व्यावसायिक प्रवचनकर्ताओं का लक्ष्य भी प्रवचन करने के रेम्युनरेशन और इन तथकथित बड़े लोगों को, ईश्वर के सबंध में बड़ी बड़ी बातें करते हुए अपने चेला मेकिंग सिस्टम के इंद्रजाल में फंसाये रखने का ही होता है ।
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गेट पर भजन गाते भिखारी को कुछ देने के लिये शर्मा जी ज्योंही उठे सामने से मित्र गुप्ता जी गेट के भीतर आते दिखे। उन्हें नमस्कार कर बैठने का इशारा करते हुए भिखारी को पाॅंच रुपये का सिक्का देकर बोले, अभी एक भजन और सुनाओ पाॅंच रुपया और दॅूंगा, सुनकर भिखारी दूसरा भजन सुनाने के लिये अपना तम्बूरा ठीक करने लगा और शर्माजी, गुप्ता जी के पास बैठते हुए बोले ...
‘‘ कहो आज कैसे भूल पड़े ?‘‘
‘‘ अरे! तुम्हें मालूम नहीं? तुम्हारे एरिया के सामुदायिक भवन में एक पहॅुचे हुए संत आये हैं, उन्हीं के दर्शन करने आया था, सोचा यहाॅं तक आये हैं तो आप से भी मिलता चलॅूं।‘‘
‘‘ आपकी कृपा है, मुझे याद रखा।‘‘
‘‘ लेकिन यार! आश्चर्य है, दूर दूर से बड़े बड़े लोग संत जी से मिलने आ रहे हैं और तुम्हें पता ही नहीं है? विधायक, मंत्री और जिले के बड़े अफसर और नागरिक, सभी की भीड़ इतनी थी कि बैठने की जगह ही कम पड़ गयी, मैं भी पीछे की ओर खड़े हो कर ही उन्हें देख पाया। वाह! क्या भव्य रूप है भाई, धन्य हो गया देखकर .... .... ( गुप्ता जी अपना कथन जारी रखे थे, शर्मा जी बिना कुछ प्रतिक्रिया किये सुनते जा रहे थे, और बीच में ही भिखारी भी अपने भजन को तम्बूरे की तान पर गाने लगा था... हरि बोल , हरि बोल, हरि बोल रे मन ... ) ... ... लौटते हुए तुम्हारे घर तक लगभग एक किलोमीटर आने में एक घंटा लग गया, भीड़ केे कारण ट्रेफिक ही जाम हो गया था।‘‘
‘‘ मित्र गुप्ता जी! क्या बता सकते हो सन्त जी ने क्या कहा मिलने आई भीड़ से?‘‘
‘‘ मैंने बताया न ! कि भीड़ बहुत थी और मैं सबसे पीछे खड़ा कुछ स्पष्ट सुन ही नहीं पाया वे बहुत देर से बोल रहे थे और मेरे पहुंचने के पन्द्रह मिनट के बाद प्रवचन समाप्त हो गया।‘‘
( इसी बीच शर्माजी ने भिखारी को पास बुलाया और पाॅंच रुपये का सिक्का देते हुए कहा, बहुत अच्छा भजन गया, धन्यवाद, भिखारी सिक्का लेकर तुरन्त ही दूसरे घर जा पहुंचा ) शर्माजी बोले,
‘‘गुप्ता जी! इन व्यावसायिक प्रवचनकर्ताओं और उनके चेला मेकिंग सिस्टम में बंधे ये तथाकथित बड़े बड़े लोग इस भजन गायक भिखारी की तरह ही होते हैं‘‘
‘‘क्या मतलब?‘‘
‘‘देखा नहीं ? इस भिखारी ने भजन तो कितना मार्मिक गाया परंतु उसका अर्थ नहीं समझता रंचमात्र भी। गा रहा था ईश्वर का भजन पर उसका ध्यान था पाॅंच रुपये के सिक्के पर कि कब मिले और वह अन्य स्थान पर माॅंगने जा सके। इसी प्रकार इन विधायकों , मंत्रियों, अफसरों या अन्य श्रोतागणों का लक्ष्य भी केवल प्रवाचक के संबंध में प्रचारित किये गये गुणगान से आकर्षित होकर मान, प्रतिष्ठा, पद और धन पाने की लालसा में तथाकथित कृपा पाने के लिये ही होता है, ईश्वर को पाने के लिये तो बिलकुल नहीं।‘‘
‘‘तो क्या ...! ...! ...!‘‘
‘‘ बिल्कुल, इन व्यावसायिक प्रवचनकर्ताओं का लक्ष्य भी प्रवचन करने के रेम्युनरेशन और इन तथकथित बड़े लोगों को, ईश्वर के सबंध में बड़ी बड़ी बातें करते हुए अपने चेला मेकिंग सिस्टम के इंद्रजाल में फंसाये रखने का ही होता है ।
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