Monday 24 October 2016

88 बाबा की क्लास ( शिव-13 प्रणाम मंत्र )

मित्रो ! पिछले कुछ दिनों से हम तारकब्रह्म भगवान सदाशिव के सम्बंध में जानने योग्य उन तथ्यों पर वैज्ञानिक आधार पर विचार कर रहे थे जो सामान्यतः उनके संबंध में पाये जाने वाले साहित्य के पढ़ने से अनेक भ्रान्तियाॅं और विचित्रता पैदा करते रहे हैं । वास्तव में, शिव को तत्वतः तो केवल शिव ही जानते हैं, इसलिये वे जैसे भी हों उन्हें उसी प्रकार से हम बार बार केवल प्रणाम ही कर सकते हैं। अतः अब हम आज की क्लास में उनके प्रणाम मंत्र पर विचार करते हुए इस चर्चा को यहीं समाप्त कर रहे हैं । आशा है इस वैज्ञानिक चर्चा से आपकी भ्रान्तियाॅं दूर हो गयी होंगी। आगे की क्लासों में महासम्भूति कृष्ण पर इसी प्रकार की चर्चा करने का प्रयत्न करूंगा ।  

88 बाबा की क्लास ( शिव-13 प्रणाम मंत्र )

इन्दु- बाबा! जिस प्रकार शिव का ध्यान मंत्र आपने बताया है उसी प्रकार उनका क्या प्रणाम मन्त्र भी है? यदि हो तो उसे भी हमें समझाइये?
बाबा- अवश्य ही शिव का प्रणाम मन्त्र भी है । सुनो,
    ‘‘नमस्तुभ्यं विरुपाक्ष नमस्ते दिव्य चक्षुसे, नमः पिनाक हस्ताय वज्रहस्ताय वै नमः,
     नमः त्रिशूल  हस्ताय दंडपाशासिपानये, नमस्त्रैलोक्यनाथाय भूतानाम पतयेनमः,
     नमः शिवाय शान्ताय कारणत्रयहेतबे, निवेदयामि चात्मानम् त्वमगतिः परमेश्वरा ।‘‘

रवि - इसका शब्दिक अर्थ मुझे मालूम है,
‘‘ दिव्यद्रष्टि वाले विरूपाक्ष तुम्हें प्रणाम, पिनाक और बज्र को हाथ में धारण करने वाले तुम्हें प्रणाम, त्रिशूल रस्सी और दंड को धारण करने वाले तुम्हें प्रणाम, सभी प्राणियों/भूतों के स्वामी और तीनों लोेकों के स्वामी तुम्हें  प्रणाम, तीनों लोकों के आदिकारण शान्त शिव  को प्रणाम, परम प्रभो ! मेरी यात्रा के अंतिम बिंदु और लक्ष्य ! मैं अपने आप को आपके समक्ष समर्पित करता हॅूं।‘‘

बाबा - हाॅं, बिलकुल ठीक है, परन्तु इसका केवल शाब्दिक अर्थ लेने से कभी कभी गलत संदेश जाता है इसलिये उन शब्दों के पीछे निहित यथार्थ को मैं विस्तार से समझाये देता हॅूं।

शब्द " विरूपाक्ष " के दो अर्थ हैं, एक तो वह जिसके नेत्र विरूप अर्थात् अप्रसन्न या क्रोधित हों, दूसरा यह कि जो प्रत्येक को विशेष मधुर और कल्याणकारी द्रष्टि से, दयालुता से देखता हो। पापियों के लिये शिव, विरूपाक्ष पहले रूप में और सद्गुणियों के लिये दूसरे अर्थ में लेते थे।
दिव्यचक्षु का अर्थ है जिसके पास प्रत्येक वस्तु के भीतर छिपे मूल कारण को देख सकने  की दिव्य द्रष्टि है, अर्थात् वर्तमान भूत और भविष्य को देख सकने वाला।
पिनाक अर्थात् जो डमरु को बजा कर सभी प्राणियों के शरीर मन और आत्मा को कंपित कर देता हो वह सदाशिव हैं। दुष्टों को दंडित करने और अच्छे लोगों की रक्षा के लिये हमेशा से हर युग में हथियार बनाये जाते रहे हैं शिव ने भी सब की भलाई के लिये भयंकर वज्र धारण किया। इसलिये वे वज्रधर ही नहीं शुभवज्रधर कहलाते हैं ।
त्रिशूल से शिव शत्रुओं को तीन ओर से छेदित करते थे, शिव इसे हाथ में लिये रहते थे इसलिये वे शूलपाणि कहलाते हैं। पापियों के हृदय में भय पैदा करने और बांधने के लिये, जिससे कि वे पाप से दूर रहें और भले लोगों को शान्ति  से रहने दें, शिव, दंड और रस्सी लिये रहते थे।
शिव, तीनों लोकों के जीवन प्रवाह को नियंत्रित पालित और पोषित करने के कारण त्रैलोक्यनाथ और इस पृथ्वी के सभी जीवधारियों की प्रकृति को भलीभांति जानते हैं अतः वे भूतनाथ कहलाते हैं। संगीत विद्या के विद्यार्थियों के लिये वह प्रमथनाथ हैं। चूॅंकि शिव अपने भीतर और बाहर पूर्ण नियंत्रित रहते थे अतः वे शान्त कहलाते हैं। इस शान्त  पुरुष के पास सब पर नियंत्रित करने की शक्ति है इसलिये कहा गया  है ‘नमः शिवाय शान्ताय‘।
जड़, सूक्ष्म और कारण संसार के मूलकारण घटक को चितिशक्ति कहते हैं। ये शिव और चितिशक्ति एक ही हैं। इसीलिये उन्हें ‘कारणस्त्रयहेतबे‘ कहा गया हैं। उस परम सत्ता को, जिसने अपने मधुर और प्रभावी प्रकाश से सभी निर्मित और अनिर्मित को भीतर बाहर से प्रकाशित कर रखा है, सभी प्रणाम करते हैं और समर्पित रहते हैं। वही सबके अंतिम लक्ष्य होते हैं, अतः कहा गया है ‘निवेदयामि च आत्मानम् त्वम गतिः परमेश्वरा ‘। हे परमेश्वर  मैं अपने आपको आपके समक्ष समर्पित करता हूॅ क्योंकि आप ही मेरे परम आश्रय हैं। हे शिव, हे परम पुरुष, अनाथों के अंतिम आश्रय, थकेमांदों के अंतिम आश्रयस्थल, मैं अपने अस्तित्व की सभी भावनायें आपके चरणों में समर्पित करता हूूॅं। आपके अलावा मेरा कुछ नहीं ,आपके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं।

No comments:

Post a Comment