Thursday, 16 November 2017

166 सत्याश्रयी कम ही होते हैं।

166: सत्य को जानने की इच्छा रखने वाले लोग कम क्यों होते हैं?
हम सबका अनुभव है कि यदि कहीं सात्विक और ज्ञानपूर्ण चर्चा के कार्यक्रम में आप दो सौ व्यक्तियों को आमंत्रित करें तो आप पायेंगे कि अधिकतम साठ लोग ही आये हैं; इनमें से दस या बारह लोग ही पूरे मनोयोग से चर्चा को सुनेंगे और इन श्रोताओं में से भी कुछ ही विषयवस्तु को सही सही समझ पायेंगे। इन थोड़े से समझदार लोगों के समूह में से अल्प ही ऐंसे होंगे जो समझ में आई विषयवस्तु को याद रख पायेंगे और अन्त में शेष रहे इस समूह के मात्र एक या दो ही व्यक्ति वे होंगे जो सुनी और समझी गई विषयवस्तु को आचरण में उतार पायेंगे।
ऐसा , केवल अविद्या और विद्या के द्वारा मन में उत्पन्न किये जा रहे संघर्ष के कारण होता है। इस संघर्ष में अविद्या की विजय होना प्रकट करता है कि आप विद्या के आन्तरिक झुकाव से बाहर की ओर भाग रहे हैं। इसका कारण यह है कि औसत व्यक्ति के मन में पाशविक संस्कार अधिक और सात्विक आन्तरिक संवेग कम होता है। अविद्या की ऐंद्रियगत भावनायें व्यक्ति के विचार प्रवाह में छन्ने का काम करती रहती हैं । सच्चाई की ओर चलने के लिये प्रयासरत प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह प्रक्रिया लम्बे समय से चल रही होती है और बहुत अभ्यास के बाद ही सात्विक विचार मन में स्थायी हो पाते हैं। इसीलिये सत्याश्रयी कम ही होते हैं।

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