Thursday, 14 June 2018

198 प्राणायाम से संबंधित जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

  198 प्राणायाम से संबंधित जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य

हमारे देश के अमूल्य ज्ञान ‘ योग विज्ञान ’ को पूरे विश्व ने अब महत्व देना प्रारंभ किया है तो रातों रात अनेक प्रकार के योग गुरुओं की भरमार हो गई है। अपने अपने ज्ञान के हिसाब से वे जन सामान्य में इसे केवल खेल की तरह सिखा रहे हैं जबकि यह एक व्यावहारिक विज्ञान है। विज्ञान का नियम है कि पहले सैद्धान्तिक रूप से तथ्य को समझना और उसके बाद उसकी व्यावहारिक पद्धति को कुशल व्यक्ति से सीखकर उनकी देखरेख में प्रयोग करना चाहिए तभी सफलता मिलती है । आजकल ‘प्राणायाम ’ के लाभों के सम्बंध में व्याख्यान देकर अनेक लोग  इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं जो केवल श्वास को लेकर छोड़ने और छोड़कर लेने का प्रशिक्षण देते पाए जाते हैं। प्राणायाम के  पीछे क्या विज्ञान है, इसे कब और कहॉं करना चाहिए या कितनी बार कितनी संख्या में करना चाहिए  इसकी जानकारी नहीं दी जाती इसलिए लोग मनमाने ढंग से इसे करने लगते हैं और लाभ पाने के स्थान पर हानि उठा वैठते हैं और फिर योगविज्ञान को दोष देते हैं। इस लेख के माध्यम से प्राणायाम को सामान्य स्तर पर जानने योग्य पूरा विवरण समझाया जा रहा है ताकि सच्चाई जानने के बाद संबंधित सभी भ्रान्तियों का निराकरण हो सके।
अष्टॉंग योग के अन्तर्गत इसे चौथी सीढ़ी पर रखा गया है, इससे पहले यम , नियम और आसन आते हैं। स्पष्ट है कि प्राणायाम करने से पहले यम, नियम और आसन में पारंगत होना पड़ता है तभी प्राणायाम में वॉंछित सफलता और लाभ प्राप्त होता है। अहिंसा , सत्य ,अस्तेय ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पॉंचों को ‘यम’ कहा जाता है । शौच, सन्तोष, स्वाध्याय, तप और ईश्वरप्रणिधान इन पॉचों को ‘नियम’ कहा जाता है। अनेक प्रकार की योगासनें हैं जिनमें योगमार्ग पर चलने के इच्छुक लोगों को योग्य प्रशिक्षक के माध्यम से अपने अनुकूल लगने वाली आसनों को सीखकर उनका लगातार अभ्यास करते रहना चाहिए। सामान्यतः पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन, भुजंगासन, मत्स्येन्द्र आसन, और सर्वांगासन का अभ्यास करना हितकारक होता है। इसके बाद प्राणायाम का अभ्यास किया जाना चाहिए। प्राणायाम के संबंध में शास्त्र कहते हें, ‘‘ श्वासप्रश्वासयोः गतिविच्छेदः प्राणायाम’’। अर्थात् प्राणायाम परम चेतना को अध्यारोपित करते हुए श्वास पर नियंत्रण करने की पद्धति है। यह मन को केन्द्रित करने और ध्यान करने में सहायक होता है। इसकी प्रवृत्ति के संबंध में कहा गया है ‘‘ प्राणाः यमयति एशः प्राणायाम ।’’ अर्थात् प्राणों (vital forces) को उसके कार्यक्षेत्र में यथोचित ढंग से अधिकतम विश्राम देना। मन को इधर उधर भागने और भटकने से बचाने के लिए स्वाभाविक श्वास  पर नियंत्रण करने का कार्य अष्टॉंग योग में अनिवार्य घटक माना गया है, संस्कृत में इसे प्राणायाम कहते हैं। वह विधि जिससे प्राणों  अर्थात् (vital forces)  के दसों प्रकार जैसे, प्राण (जो नाभि से कंठ के बीच श्वास प्रश्वास के लिये कार्य करता है), अपान ( जो नाभि से गुदा के बीच मल और मूत्र की गतिशीलता को नियंत्रित करता है ), समान (जो नाभि के चारों ओर गोलीय क्षेत्र में प्राण और अपान के बीच संतुलन बनाता है), उदान (जो गले में रहता हुआ वाक् नलिका और वाणी पर नियंत्रण रखता है), व्यान ( जो पूरे शरीर में खून का संचार करने और अफेरेन्ट और इफेरेन्ट नाड़ियों की भौतिक क्रियाओं में सहयोग करता है ), नाग ( जो कूदते समय,या शरीर को फैलाने या वस्तुओं के फेकते समय अपना कार्य करता है), कूर्म (जो शरीर को संकुचन करने में सहायक होता है)र्, क्रिकर (जो जंभाई लेते समय सक्रिय रहता है), देवदत्त (जो भूख और प्यास लगने पर क्रियाशील होता है) और धनन्जय (जो तन्द्रा और निद्रा के लिए उत्तरदायी होता है ), इन सब पर नियंत्रण किया जाता है, प्राणायाम कहलाती है। अतः प्राणयाम की विधि वह है जो हमारे दसों प्राणों को उनकी कार्य सीमा में अधिकतम कार्य करने की क्षमता प्रदान करती है। यदि आप हर प्रकार के ज्ञान को आत्मसात कर पाने की  शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं तो सभी प्राणों को अधिकतम विस्थापन अर्थात् आयाम (amplitude) देने की यह वैज्ञानिक विधि सीखना चाहिये जिससे मन को एक विंदु पर केन्द्रित करना सरल हो जाता है। हमारा शरीर वास्तव में हमारे मन का ही विस्तार है जो पॉंच ज्ञानेन्द्रियों (ऑख, कान, नाक, जीभ, त्वचा) और पॉंच कर्मेन्द्रियों ( हाथ, पैर, वाक्, उपस्थ , पायु ) की सहायता से लगातार दिन रात कार्य करता रहता है। शरीर में किसी कारण से इन दस प्राणों के बीच होनेवाले असंतुलन या विकृति से ही रोगों की उत्पत्ति होती है। विशेष प्रकार के रोगों को दूर करने के लिए विशेष प्राणायाम करना पड़ता है जिनमें श्वास को निर्धारित समयान्तराल के लिए रोकना पड़ता है इसे कुंभक कहते हैं। परंतु किसी भी प्रकार के प्राणायाम को बिना उचित मार्गदर्शक  के करना वर्जित है। प्राणायाम को  साधारण, सहज, विशेष और अन्तः इन चार प्रकारों में विभाजित किया गया है ।
साधारण प्राणायाम की विधि में ऑंखें बंद कर सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर आसनशुद्धि करने के बाद मन को अष्टॉंगयोग के आचार्य के द्वारा बताये गये विंदु पर स्थिर करके चित्तशुद्धि करने के बाद अपने इष्टमंत्र के पहले अक्षर पर चिंतन करते हुए दॉंये हाथ के अंगूठे से दायीं नासिका को दबाये हुए वायीं नासिका से धीरे धीरे गहरी श्वास  भीतर खींचना चाहिये और इस समय सोचना चाहिये कि अनन्त ब्रह्म जो हमारे चारों ओर है उसके किसी विंदु से अनन्त जीवनीशक्ति भीतर प्रवेश  कर रही है। पूर्ण श्वास  भर जाने के बाद वायीं नासिका को मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठा अंगुली से बंद करते हुए दायीं नासिका से अंगूठे को हटा कर श्वास  को धीरे धीरे बाहर करते हुए सोचना चाहिये कि अनन्त जीवनीशक्ति अनन्त ब्रह्म में वापस जा रही है और साथ साथ अपने इष्ट मंत्र के दूसरे अक्षर पर चिंतन करते रहना चाहिये। यह ध्यान रखना चाहिये कि श्वास  लेते हुए या छोड़ते हुए आवाज नहीं हो । पूरी श्वास  निकल जाने के बाद अब दॉयीं नासिका से धीरे धीरे पूरी श्वास  लेते हुए उसी प्रकार चिंतन करते हुए अंगूठे को उसी प्रकार दबा कर अंगुलियों को हटाकर श्वास  को पूर्णतः बाहर कर देना चाहिये । यह एक प्राणायाम हुआ।
प्राणायाम के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है व्यक्ति का इष्टमंत्र जो प्रत्येक व्यक्ति का उसके संस्कारों के अनुकूल अलग अलग होता है और पुरश्चरण की प्रक्रिया में पारंगत गुरु ही उसे ऊर्जावान बना कर प्रदान करते हैं। बिना इष्टमंत्र के किया गया प्राणायाम केवल श्वास लेना और छोड़ना ही माना जाता है और निष्फल होता है।
 एक सप्ताह तक केवल तीन प्राणायाम दोनों समय करना चाहिये, फिर प्रति सप्ताह एक एक की वृद्धि करते हुए अधिकतम सात प्राणायाम करने की सलाह दी जाती है। प्राणायाम को एक दिन में अधिकतम चार बार तक किया जा सकता है। जो नियमित रूप से दो बार प्राणायाम कर रहे हों और किसी दिन वे तीन बार करना चाहते हैं तो कर सकते हैं पर उन्हें अचानक चार बार प्राणायाम नहीं करना चाहिये । इसलिये उचित यही है कि पहले पहले दोनों समय तीन और फिर एक सप्ताह बाद क्रमशः  एक एक बढ़ाते हुए अधिकतम सात की संख्या तक ही करना चाहिये। फिर भी कोई यदि किसी दिन निर्धारित संख्या में प्राणायाम नहीं कर पाया हो तो सप्ताह के अंत में उतनी संख्या बार प्राणायाम करके क्षतिपूर्ति कर लेना चाहिये। यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि धूल, धुएं और दुर्गंध से दूर रहें तथा अधिक शारीरिक श्रम न करें। इसका अभ्यास प्रारंभ करने के समय प्रथम दो माह तक पर्याप्त मात्रा में दूध और उससे बनी सामग्री का उपयोग भोजन में करना चाहिये।
कुछ प्राणायाम विशेष प्रकार की बीमारियों को दूर करने के लिए ही प्रयुक्त किए जाते हैं जो योग्य आचार्य के मार्गदर्शन में किये जाते हैं। एक से अधिक प्रकार के प्राणायाम को किसी भी व्यक्ति को करने की सलाह नहीं दी जाती है। बीमारी को दूर करने के लिए यदि किसी प्राणायाम को करना पड़ता है तो नियमित रूप से किए जाने वाले साधारण प्राणायाम के एक घन्टे पहले और एक घंटे बाद में ही किया जाना चाहिए। ये विशेष प्राणायाम हैं, वस्तिकुंभक, शीतलीकुंभक, शीतकारीकुंभक, कर्कट प्राणायाम, और पक्षबद्ध प्राणायाम। इनकी विधियॉं कुशल आचार्य ही सिखाते हैं और उन्हीं की देखरेख में इन्हें करना पड़ता है। शरीर के जिस भाग में बीमारी या दर्द होता है उसके केन्द्र पर मन को स्थिर रखकर बताई गई विधि से उचित प्रकार का प्राणायाम करना पड़ता है इससे अनेक बीमारियॉं दूर होते देखा गया है।
अब प्रश्न उठता है कि इष्टमंत्र और प्राणायाम की सही विधि को सिखाने और अपने मार्गदर्शन में अभ्यास कराने वाले योग्यता धारक आचार्य को कहॉं खोजा जाए? इसका उत्तर है कि मन में उत्कट जिज्ञासा होने पर उचित समय पर आचार्य स्वयं आपको खोज लेते हैं।‘‘मुक्त्याकॉंक्ष्या सद्गुरु प्राप्तिः ।’’ ध्यान रहे जो अपने आचरण से सिखाते हैं वही आचार्य कहला सकते हैं।

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