196 उचित तरीका जीवन का
सभी जानते हैं कि ढीले तार को खींचने पर उससे आवाज नहीं निकलती और यदि तने हुए पतले तार को भी अधिक खींचा जाए तो वह टूट जाता है । मानव जीवन पर भी यही सिद्धान्त लागू होता है। जैसे, यदि कोई मनुष्य अपने शरीर से बहुत अधिक तप करता है तो मानव की सूक्ष्म संवेदनाएं छोटे छोटे खंडों में टूट जाती हैं। मन के कोमल और संवेदनशील तन्तु जलकर राख हो जाते हैं। दूसरी ओर यदि जीवन को ढीले तार जैसा बनाया जाता है तो जीवन के आदर्श को पाने की ललक कभी पूरी नहीं होती। दूसरे शब्दों में इस प्रकार का जीवन विकृत होकर खाने पीने और सोने वाले पशु जैसा हो जाता है।
इसलिए जीवन के तन्तु कभी भी ढीले नहीं छोड़ना चाहिए और न ही बहुत अधिक तनाव से उसे टूटने की कगार पर पहॅुंचाना चाहिए। इस प्रकार का जीवन विशेष रूपसे संघर्ष करता है तथा वामपंथियों के आघात के प्रभावों से बचा रहता है या फिर, दक्षिणपंथियों के अन्याय को सहन करता है।
आदर्श जीवन वही है जिसमें न तो दायीं ओर और न ही बायीं ओर झुकाव हो पर , जिसमें परमपुरुष को पाने की तीब्र ललक हो और स्वर्ण ध्वज पर अपनी दिव्य चमक प्रदर्शित करता हो।
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