Friday, 9 November 2018

222 ज्ञानदीप

222
ज्ञानदीप हर ओर जलाएं
आओ दीपावली मनाएं।

तम आच्छादित दिवा रात्रि,
घनघोर शोर में बहरे होते।
दूभर जीवन दूषित हो
नव कष्ट देह में गहरे ढोते।
धूलधूसरित धरा धाम पर ,
मेघ पुनीत नीर बरसाएं।
ज्ञानदीप हर ओर जलाएं
आओ दीपावली मनाएं।1।

दम्भ प्रदर्शन की जड़ता ने
मनोभाव पंगु कर डाले।
मानवता कराहती पल पल,
रिश्तों में भी विष भर डाले।
अज्ञ विज्ञ सब हुए पंकमय
प्रज्ञनीर में सभी नहाएं।
ज्ञानदीप हर ओर जलाएं
आओ दीपावली मनाएं।2।

लोभ मोह की क्षुधा प्रसारित
जल थल नभ रोते अपनों  पर।
नीर समीर व्योम पावक सब
चकित व्यथित दूषित सपनों पर।
दिव्य प्रकाश ज्योति फैलाकर
क्यों न नव्यमानवता लाएं ?
ज्ञानदीप हर ओर जलाएं
आओ दीपावली मनाएं।3।

8 नवम्बर 2018

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