Tuesday, 13 November 2018

223 कुछ लोग आध्यात्मिक पथ से भटक क्यों जाते हैं?

223 कुछ लोग आध्यात्मिक पथ से भटक क्यों जाते हैं?
अविद्यामाया का बल साधारण मनुष्यों की तुलना में आध्यात्म की ओर बढ़ने वाले व्यक्तियों को अधिक प्रभावित करता है। उनके सामने अनेक कठिनाइयाॅं आती हैं जैसे, पारिवारिक असंतुलन और अशाॅंति, या अत्यधिक धन और प्रतिष्ठा, या आर्थिक अभाव और अपमान। परन्तु सच्चे साधक इन कठिनाइयों को परीक्षा की तरह लेते हैं और बहादुरी से उनका सामना करते हैं। वे पीछे मुड़ने की कभी नहीं सोचते  क्योंकि अविद्या बल हमेशा पीठ पर अर्थात् छिपकर, घातक हमला करता है। इसलिए, सभी परिस्थितियों में अपने आध्यात्मिक और मानसिक विकास से संबंधित सोई हुई शक्तियों को जागृत करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।  विचित्रता यह है कि इस संसार में यदि कोई गलत कार्य करता है तो विद्यामाया उसे यह करने से रोकती है। जैसे, यदि कोई नया चोर चोरी करने जाता है तो उसके मन में पुलिस से पकड़े जाने का भय विद्यामाया पैदा करती है। इसी प्रकार जब कोई अच्छा कार्य करने की सोचता है तो अविद्यामाया उसे अधिक भयंकर रूप से यह करने से रोकती है। जैसे, कोई व्यक्ति साधना करने बैठता है तो अविद्यामाया इन में से किसी एक या अधिक प्रकार से बाधा पहुॅंचा सकती है, ‘‘पारिवारिक असंतुलन और अशाॅंति, या अत्यधिक धन और प्रतिष्ठा, या आर्थिक अभाव और अपमान। ’’इतना ही नहीं इसके अलावा भी  अनेक प्रकार से अविद्यामाया साधक की पीठ में छुरा मारने का कार्य करती है जिससे वह साधना का रास्ता छोड़ कर भाग जाए।
इस प्रकार से भागने वाले लोग अविद्यामाया से पराजित माने जाते हैं। इसलिए जब भी इस प्रकार की परिस्थितियाॅं आड़े आती हों तो तत्काल समझ जाना चाहिए कि यह सब अविद्यामाया का जंजाल है इसका दृढ़ता से सामना करना है न कि पीछे भाग जाना। सभी जानते हैं कि अनेक साधु पुरुषों को गुरु मिल जाने के बाद भी वे पूर्वोक्त कारणों से अविद्या के साथ मुकाबला करने में डर गए और पथभ्रष्ट होकर भटक गए और फिर समाज में समाज घृणा के पात्र बने।
यहाॅं, यही समझाया गया है कि जिस प्रकार आगे चलने पर पृथ्वी का घर्षणबल गति की विपरीत दिशा में सक्रिय हो जाता है परन्तु हम उसके विरुद्ध लगातार क्रियारत रहकर आगे बढ़ते जाते हैं, यदि घर्षणबल से डर कर रुक जाएं तो कभी भी आगे नहीं जा सकते । अतः अविद्या और विद्यामाया को यदि एक दूसरे का सहायक मानकर संघर्ष किया जाय तो अवश्य सफलता मिल जाती है। उपनिषदों में कहा गया है कि जो केवल अविद्या की उपासना करते हैं वे अंधकूप में गिरते हैं और जो केवल विद्या की उपासना करते हैं वे उससे भी अधिक अंधे कुए में गिरते हैं।

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