Thursday, 14 March 2019

241 अपनी प्रतिभा को जागृत करना

241
अपनी प्रतिभा को जागृत करना
जो कुछ आप कहते हैं, कह रहे हैं या भविष्य में कहेंगे, यह सब आपके भीतर ही सुप्तावस्था में होता है। प्रत्येक मनुष्य में अपार क्षमता सोयी रहती है जैसे बरगद के बीज में विशालकाय वृक्ष  रहता है। यह बीज हवा ,पानी, भूमि और प्रकाश की उचित मात्रा पाकर वृक्ष को जागृत कर देता है। परिणाम स्वरूप धीरे धीरे अनेक शाखायें  निकल कर बड़ा वृक्ष बन जाती हैं। इसी प्रकार मनुष्यों के भीतर मूलाधार में कुलकुडलिनी शक्ति अपार क्षमताओं के साथ सोयी अवस्था में रहती है । जब उचित बीज मंत्र की सहायता से मंत्राघात कर मंत्रचैतन्य के द्वारा ऊपर की ओर संचालित की जाती है तो मानवीय क्षमताओं के द्वार, एक के बाद एक खुलते जाते हैं। ध्यान की यह पद्धति तन्त्रविज्ञान में ‘पुरश्चरण’ और योग में ‘अमृतमुद्रा या आनन्दमुद्रा’ कहलाती है। इस तरह मनुष्यों में जीवन्तता और सौदर्यता, दिव्यता की ओर बढ़ने लगती है। जन सामान्य की दृष्टि में इस प्रकार के लोग महापुरुष कहलाने लगते हैं । ये लोग अन्ततः परमपुरुष के साथ एक हो जाते हैं।

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