भावजड़ता के मुख्य हथियार
कभी कभी मत और संप्रदाय जिन्हें ‘रिलीजन’ कहा जाता है भावजड़ता से भरे होने पर भी अधिक समय तक चलते जाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अपनी शिक्षाओं को सत्य से पृथक कर विभिन्न परिस्थितियों में संतुलन बैठाते हुए किस प्रकार मोड़ा जा सकता है। उनका उद्देश्य होता है विशेष वर्ग का हित साधन सुरक्षित करना। कुछ ने अपने को ईश्वर केन्द्रित विचारों से जोड़ रखा है जबकि वे ईश्वर केन्द्रित नहीं होते। वे, लोगों के मन में भावनात्मकता भर कर ईश्वर के नाम पर अपनी धारणाओं को अपनी शिक्षाओं का महत्वपूर्ण भाग होना प्रदर्शित करते हैं जो उनके मनों में गहराई से बैठ जाती हैं।
भावजड़ता पर आधारित दर्शनों के मुख्य हथियार ये होते हैंः-
- श्रेष्ठता की मनोग्रंथियाॅं निर्मित करने के लिये काल्पनिक कहानियों और दृष्टान्तों का प्रचार करना।
- निम्नता की मनोग्रंथियाॅं निर्मित करने के लिये काल्पनिक कहानियों और दृष्टांतों का प्रचार करना।
- निम्न वर्गो में भय और निम्नता की मनोभावनाओं का प्रचार करना।
इस प्रकार सभी मत और संप्रदाय भावजड़ता से भरे हुए हैं तर्क पर आधारित नहीं हैं। वे सभी यह प्रचारित करते हैं कि उनके भगवान ही सत्य और सबसे श्रेष्ठ हैं अन्य सभी झूठे । जब कोई धर्म यह कहता है कि उनके भगवान ही सही हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि वह धर्म भावजड़ता के सिद्धान्तों पर आधारित है। हिंदुओं को ही लीजिये, वे कहते हैं कि ब्राह्मण लोग परमपुरुष के मुँह से, क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य छाती से और शूद्र पैरों से उत्पन्न हुए हैं। क्या यह उनकी भावजड़ता नहीं है।
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