विभिन्न मतों पर चर्चा करना
संसार में प्रचलित अनेक मान्यताओं, मतों और उनसे जुड़ी आस्थाओं पर चर्चा करते समय मनोवैज्ञानिक विधियों का सहारा लिया जाना चाहिए। इस आधार पर ही उनमें प्रचलित उन तथ्यों, मान्यताओं और विश्वासों, जो प्रायः भावजड़ता या ‘डोगमेटिक’ होते हैं, पर तार्किक, विवेकपूर्ण और वैज्ञानिक तरीके से निर्णय करने का अवसर जुटाया जा सकता है। यह वही लोग कर सकते हैं जिन्होंने विवेकपूर्ण ढंग से तार्किक आधार पर दर्शनों का वैज्ञानिक अध्ययन कर उन्नत बौद्धिक स्तर प्राप्त किया हो।
जब मानव मन भय मनोविज्ञान से दबा होता है तो वह तर्क से भागकर अंधानुकरण करने लगता है। यदि मानव के मन में व्याप्त इस भय को तर्क और यथार्थ कारण समझाते हुए दूर कर दिया जाए तब उसका अंधविश्वास दूर हो जाएगा। इसलिए इन व्याख्याकारों को संवेदनशील, व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रवीण होना आवश्यक है, तभी धर्म के नाम पर हो रहे अंधानुकरण को रोका जा सकता हैं और भटकने वालों को नई और उचित दिशा दी जा सकती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि कुछ मतों में प्रचलित इस प्रकार के विचारों को किस प्रकार अनुकूल बनाया जा सकता है जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं भी आहत न हों और उनके द्वारा किए जा रहे इस प्रकार के अव्यावहारिक और अमानवीय कार्यों की ओर वे गंभीरता से सोचने को विवश हो सकें।
धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुॅंचाने का अर्थ है उन व्यक्तियों के मुॅंह पर क्रूर आघात करना । जैसे, कोई हनुमान और गणेश की पूजा करने वालों से यह कहने लगे कि क्या मूर्खता करते हो, बंदर और हाथी की पूजा करते हो ! तो वह क्रोधित ही नहीं होगा वरन् मारने मरने के लिए तैयार हो जाएगा क्योंकि उनके पूजन से उन लोगों की धार्मिक भावनाएं गहरी जुड़ी होती हैं विशेषतः यह कि वे उन्हें वरदान देकर इच्छाओं की पूर्ति करते हैं, रक्षा करते हैं। अतः यदि इस प्रकरण को आदर पूर्वक मनोवैज्ञानिक ढंग से, वहाॅं से प्रारंभ किया जाए जहाॅं से और जिस कारण से इस पूजा का उद्गम हुआ है और सावधानी पूर्वक तार्किक ढंग से समझाया जाय तो उन्हें इस संबंध में और अधिक जानने की जिज्ञासा होगी और धीरे धीरे यथार्थता को जान लेंगे।
परन्तु यदि इन विधियों के स्थान पर अन्य का सहारा लिया गया तो उन पर उल्टा प्रभाव पढ़ेगा और वे भावजड़ता में और गहरे चले जाएंगे। इसलिए न तो किसी के धार्मिक विश्वास की व्यर्थ ही हॅंसी उड़ाना चाहिए और न ही उनकी भावनाओं पर आघात करना चाहिए। समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए सभी लोगों को किसी भी तथ्य को स्वीकारने से पहले तर्क विज्ञान और विवेक के आधार पर निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना ही उचित होगा।
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