Tuesday, 16 June 2020

322 सबल और स्वस्थ समाज का निर्माण


इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि इस ग्रह पर अभी तक प्रबल और स्वस्थ मानव समाज का निर्माण नहीं हो पाया है। इसका मुख्य कारण है किसी आदर्श दर्शन का उपयुक्त प्रसार न होना। यद्यपि समय समय पर कुछ लोगों ने प्रबल और स्वस्थ मानव समाज की स्थापना करने का विचार किया परन्तु उनका प्रयास आदर्श की स्थापना के स्थान पर अपनी स्वयं की महत्ता को प्रतिष्ठित करने तक ही सीमित रह गया। इस प्रकार आदर्श की स्थापना पीछे खिसक गयी और उन्होंने अपने आप को महात्मा और महापुरुषों के रूप में स्थापित कर पूजा जाना प्रारंभ करा दिया। अतः आदर्श के अभाव में प्रबल मानव समाज की स्थापना नहीं हो सकी और व्यक्तिगत जीवन में भी अनेक प्रकार के दोषों ने जन्म ले लिया।
इस धरती पर अनेक सन्त, ऋषि और महापुरुष आए और मनुष्यों  को धार्मिक शिक्षाएं दी परन्तु बार बार उनकी शिक्षाओं से किनारा कर केवल उनकी जादुई कहानियों और तथाकथित चमत्कारों को ही प्रचारित किया जाता रहा जिससे सबसे अधिक जन सामान्य को ठगा जाता रहा। 
जैसे, जब महासम्भूति ‘‘लार्ड शिव ’’ आये तब उन्होंने तन्त्रविज्ञान, ध्यान, संगीत, कला, समाज निर्माण आदि पर अनेक शिक्षायें दी। परन्तु ज्योंही  उन्होंने धरती को छोड़ा उनके अनुयायियों ने भगवान शिव के चमत्कारों और कहानियों को प्रचारित करना प्रारंभ कर दिया और जनता को उनकी यथार्थ शिक्षाओं से वंचित कर उनके मन में "डोगमा" केन्द्रित अंधानुकरण भर दिया और वे उनकी शिक्षाओं के बिलकुल उल्टा करने लगे। धर्म साधना करने के स्थान पर वे उनकी मूर्तियां बनाकर पूजा करने लगे। इससे समाज का अहित हुआ, उसे अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा, वह अंधानुकरण की ओर प्रवृत्त हो गया और शिव के द्वारा स्थापित आदर्श सदा के लिए भुला दिया गया । 
इसी प्रकार जब महासम्भूति ‘‘लार्ड कृष्ण’’ आये, उन्होंने  यम, नियम, आसन, प्राणायाम, योग और ध्यान आदि की शिक्षा दी परन्तु यही उनके साथ हुआ। उनकी जादुई कहानियों को तो प्रचारित किया गया परन्तु उनके आदर्श को भुला दिया गया। उनकी भी मूर्तियां बनाकर पूजा जाने लगा और उनकी शिक्षाओं के बिलकुल विपरीत चलने के कारण समाज को अपार क्षति का सामना करना पड़ा। उनकी जादुई कथाओं के कारण उनकी सभी शिक्षाओं को भुला दिया गया और जनता अंधेरे में भटकने लगी। भगवान शिव और कृष्ण के द्वारा दिये गए दर्शन को उनकी जादुई कथाओं की तुलना में महत्व ही नहीं दिया गया अतः जनसाधारण उन्हें सीखने से वंचित हो गया।
‘‘लार्ड महावीर और बुद्ध’’ ने भी पशुओं की हत्या नहीं करने और शांति सद्भाव से धर्मसाधना करने की शिक्षा दी परन्तु उनके साथ भी यही हुआ। उनकी शिक्षाएं भुलाकर जादुई कहानियों में जन साधारण को उलझाया गया और यही कारण है कि वे सब उनकी शिक्षाओं के विपरीत ही कार्य करने लगे। उनकी मूर्तियाॅं बनाकर उनकी पशुओं के मास से ही पूजा करने लगे। इतना ही नहीं पश्चात्वर्ती अन्य महापुरुषों, चैतन्य महाप्रभु, कबीर आदि अनेक लोगों की शिक्षाओं का भी यही हाल हुआ।
सभी का कारण एक ही था कि उनके द्वारा स्थापित आदर्श का सही सही प्रचार और प्रसार नहीं किया गया । इसलिये सबल और स्वस्थ समाज निर्माण करने के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण  है सच्चे आदर्श की सही व्याख्या करना और उसका प्रचार प्रसार करना।

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