Friday 5 June 2020

319 अन्धविश्वासों की प्रवृत्ति और उनका संरक्षण



भारत के सभी कोनों में व्याप्त ‘अन्धविश्वास‘ एक ऐसी विचित्र विधा है जो काल्पनिक देवी देवताओं की रचना करने में लगाई जाती है। जब जन सामान्य अच्छी तरह शिक्षित नहीं होता है तो वह अन्धविश्वास की ओर प्रवृत्त हो जाता है। जब अन्धविश्वास उगता है तब काल्पनिक देवी देवताओं की रचना कर ली जाती है और उन्हें उन लोगों की समस्याओं के समाधान करने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। दुर्गा, सरस्वती , लक्ष्मी, गनेश, काली, सूर्य, जगन्नाथ और न जाने कितने देवता इसी प्रकार बनाए गए हैं।
अनेक प्रकरणों में लोगों को उपदेवताओं के प्रति भय के कारण भक्ति करने या कभी कभी कुछ पाने के लिए पूजा करते देखा गया है। जंगल में जाने से शेर का डर लगता है इसलिए ‘‘वनदेवी‘‘ की कल्पना शेर के भय से मुक्त करने के लिये की गई। हैजा से बचने के लिये ‘‘ओलाइ चंडी‘‘, बड़ी माता से बचने के लिए ‘‘शीतला देवी‘‘ साॅंपों सें बचने के लिए ‘‘मनसा देवी‘‘ की कल्पना की गई। इन्हें उपदेवता भी कहा जाने लगा। घर में पूरे वर्ष सुख समृद्धि बनी रहे इसलिए गृहणियाॅं ‘ लक्ष्मी देवी की पूजा करती है। शान्ति अनुष्ठान के सम्पन्न होने के लिए ‘सेतेरा और सुवाचनी देवी‘ की पूजा की जाती है। बच्चों की भलाई के लिए ‘षष्ठी और नील देवी की तथा बीमारी से बचने के लिए श्मशानकाली और रक्षकाली‘ की पूजा की जाती है। संस्कृत में इन्हें उपदेवता कहा गया है क्योंकि वे परमपुरुष नहीं हैं। अर्थात् आध्यात्मिक संसार में उन्हें ध्यान करने के लिए लक्ष्य नहीं माना गया है। 
इसी प्रकार मंगला चंडी, आशानबीबी, सत्यपीर आदि भी हैं। उपदेवताओं को लौकिक देवी देवता भी कहा जाता है जिनमें से किन्हीं किन्हीं का लौकिक भाषा में ही ध्यानमन्त्र भी बना लिया गया है। अनेक मामलों में जैनोत्तर और बुद्धोत्तर काल में इन धर्मों के देवी देवताओं ने भी उपदेवताओं का स्थान पा लिया।
कुछ लोग भूतों को भी भय के कारण उपदेवता कहते पाए जाते हैं अर्थात् वे उन्हें छोटे देवी या देवता की तरह पूजने लगते हैं अन्यथा वे नाराज हो कर अहित कर देंगे। परन्तु संस्कृत में उपदेवता का अर्थ भूत नहीं है, भूत के लिए अपदेवता शब्द उच्चारित किया गया है। ‘उप‘ का अर्थ होता है ‘निकट‘ जबकि ‘अप‘ का अर्थ होता है ‘ बिलकुल उल्टा‘ । इसलिए अपदेवता का अर्थ हुआ ‘जिसकी प्रकृति देवता के बिलकुल विपरीत है।‘

वे आध्यात्मिक साधक जो ज्ञान, कर्म और भक्ति का रास्ता पकड़ कर आगे बढ़ते हैं वे किसी भी काल्पनिक देवता या उपदेवता की शरण में नहीं जाते वे तो केवल एकमेव परमपुरुष की ही साधना और उपासना करते हैं।

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