Sunday 31 May 2020

318 सबसे बड़ा गुण


सम्पन्नता और राजसी ठाटबाट में पले बढ़े ठाकुर वीरविक्रम सिंह को नौकरी की आवश्यकता ही नहीं थी पर शौक पूरा करने के लिए राज्य सेवा में चयनित हो अधिकारी बन गए। पहली पोस्ंिटग में ही उन्हें महिला बाॅस के आधीन कार्य करना पड़ा जो उनकी शान के खिलाफ था पर किसी प्रकार काम चलने लगा। अपनी आदतों के अनुसार ठाकुर साहब कार्यालयीन भृत्यों को ही नहीं बाबुओं को भी अपने घरेलु नौकरों की तरह आदेश दिया करते, महिला अधिकारी को भी वह तुच्छ समझते। प्रारंभ में सभी कर्मचारी यह सोच कर कि नये नये अधिकारी हैं आगे सब ठीक हो जाएगा काम करते रहे। पर, जब कई माह निकलने के बाद भी स्थिति वही बनी रही तब एक दिन किसी भृत्य ने उन्हें उन्हीं की स्टाइल में जबाब दे दिया। अब क्या था ठाकुर साहब ने उसे दो तीन थप्पड़ जड़ दिए। उनकी वरिष्ठ महिला अधिकारी के द्वारा बीच बचाव करने के बावजूद भी यूनियनबाजी, नारेबाजी और अंततः पुलिस प्रकरण बन गया। पुलिस ने भी ठाकुर साहब की पोजीशन भांपकर मामला विभागीय मानकर विभाग के संचालक को भेज दिया। संचालक ने महिला अधिकारी से पुलिस की रिपोर्ट पर टिप्पणी चाही।
महिला ने ठाकुर साहब को बुलाकर समझाया कि गलती आपकी है, आपने सरकारी सेवा के आचरण नियमों का उल्लंघन किया है। आपकी नई नई नौकरी है इसलिए मैं नहीं चाहती कि आपको कोई दंड मिले अतः सुझाव देती हॅूं कि आप लम्बी छुट्टी पर चले जाएं। उनके लम्बी छुट्टी पर चले जाने से कार्यालय में यथावत कार्य चलने लगा। लोग सोचते थे कि प्रभावशाली परिवार के होने से शायद वह अपना ट्रांस्फर करा लें।
घर पर ठाकुर साहब की बड़ी बहिन अपने बच्चों सहित आई हुई थी। एक दिन फोर्थ स्टेंडर्ड के छात्र उनके भानजे ने कहा,
‘‘मामा! मैंने हिन्दी का यह लेसन तो पढ़ लिया है, एक क्वेश्चन को छोड़ सभी के आन्सर बन गए हैं, क्या आप मुझे इसका आन्सर सर्च करने में हेल्प कर सकेंगे?’’
‘‘ क्या क्वेश्चन है बताना?’’ ठाकुर साहब बोले।
‘‘ वह कौन सी चीज है जो स्वयं तो मुफ्त में मिलती है पर उससे सभी कुछ खरीदा जा सकता है?’’
ठाकुर साहब सोच में पड़ गए, बोले जरा बताओ देखूं लेसन क्या है? और पूरा पाठ पढ़ डाला। उन्होंने भानजे को प्रश्न का उत्तर लिखवाया,
‘‘विनम्रता मुफ्त में मिलती है, पर उससे सभी कुछ खरीदा जा सकता है।’’
 और, सब छुट्टियां केंसिल कर अगले ही दिन वे अपनी ड्युटी ज्वाइन करने चल पड़े।


No comments:

Post a Comment