महाभारत कालीन द्रौपदी के संबंध में कुछ विद्वानों को अनेक प्रकार के भ्रम पैदा हो गए हैं और वे साहित्य की मनमानी व्याख्या कर दूसरों को भी भ्रमित करते देखे जा सकते हैं। इस संबंध में मेरा विचार इस प्रकार है-
1. हमारे समृद्ध प्राचीन संस्कृत साहित्य की सौदर्य हैं उसके छंद, अलंकार, अन्योक्तियॉं, व्यंग्योक्तियॉं और अतिशयोक्तियॉं। इन पर सावधानीपूर्वक ध्यान दिये बिना उसका रसास्वादन कर पाना कठिन है। अन्य तथ्य यह भी है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व में घटित घटनाओं का अध्ययन यदि हम आज के संदर्भ में करना चाहते हैं तो हमें मनोयोग से उस काल की सामाजिक व्यवस्थाओं, प्रचलित प्रथाओं, मान्यताओं, भौगोलिक और सांस्कृतिक विषमताओं पर अपने विवेकपूर्ण चिंतन को ले जाना होता है अन्यथा स्वयं भ्रमित होते हैं और दूसरों को भी भ्रमित करते हैं।‘‘द्रौपदी के पांच नहीं एक ही पति था,’’ इस लेख के लेखक ने भी यही भूल की है।
2. सर्वविदित है कि वैदिक युग में तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था में बहुपति प्रथा, बहुपत्निप्रथा, बहुसंतान प्रथा, नियोग प्रथा आदि की सामाजिक स्वीकृति थी भले ही आज के समाजविज्ञान की दृष्टि से इसे उचित नहीं कहा जा सकता। महाभारत काल के आने तक नियोग प्रथा, बहुपत्नि प्रथा और बहुसंतान प्रथा प्रचलन में बनी रही, पर बहुपति प्रथा कुछ जनजातीय राज्यों जैसे तत्कालीन उत्तर भारत की मंगोल जाति जिसे पिशाच कहा जाता था, में प्रचलित थी। आज भी तिब्बत और लद्दाख की कुछ जातियों में यह पाई जाती है। महाभारत के सभी पात्रों की एक से अधिक पत्नियॉं, बहुत संतान या नियोगज सन्तान और कुछ पात्रों में बहुपतियों का पाया जाना तात्कालिक सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप ही था जिसे अनुचित नहीं माना जा सकता। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर तथा पांचों पांडव नियोगज संतान ही थे। कुन्ती के वैवाहिक पति पांडु थे परन्तु विवाह पूर्व उन्होंने सूर्य से कर्ण और विवाह के बाद यम से युधिष्ठिर, वायु से भीम और अग्नि से अर्जुन को जन्म दिया। इस प्रकार उनके भी पांच पति हुए।
3. द्रौपदी थीं पांचाल देश (गंगा के उत्तरी में हिमालय के ऊपरी क्षेत्र से आज के बुदौन, फर्रुखाबाद तथा उत्तरप्रदेश के इस भाग से जुडे़ जिलों तक फैला जनजातीय भूभाग) के नरेश द्रुपद की पुत्री जिसका नाम कृष्णा था पर द्रुपद की पुत्री के कारण लोग द्रौपदी और पांचाल देश की पुत्री होने के कारण पांचाली नाम से भी पुकारते थे। यह सही है कि पांचों पाडव भाई द्रौपदी के पति थे जिनसे प्रत्येक से क्रमशः एक एक वर्ष के अन्तर पर एक एक पुत्र थे जिनके नाम हैं, प्रतिविन्ध्य, सुतलोक, श्रुतकर्म, शतनिक और श्रुतसेन। महाभारत के आदिपर्व के हराहरण पर्व के अध्याय 220 में द्रौपदी के पॉंचों पुत्रों और अभिमन्यु के जन्म संस्कार के वर्णन में यह दिया गया है। द्रौपदी और कुन्ति दोनों ही पंचकन्याओं में स्थान पाती हैं क्योंकि वे दोनों ही श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं।
4. लेखक द्वारा जिन श्लोकों का उद्धरण देकर अपना मत पुष्ट करना चाहा गया है उन्हें स्पष्ट करते समय तात्कालिक परिस्थतियों (अज्ञातवास) और साहित्यिक व्यंगोक्तियों पर ध्यान नहीं दिया जाकर एक पक्षीय रूपान्तरण कर दिया गया है। भीम और द्रौपदी के संवाद में द्रौपदी का कथन ‘‘ क्या पूछते हो! युधिष्ठिर की पत्नि होकर दुख न पाऊं, यह कैसे हो सकता है?’’ यह व्यंगोक्ति नहीं तो और क्या है? कीचक के सामने भीम का कथन, ‘‘ आज मैंने अपने भाई की पत्नि का अपमान करने वाले को दंड देकर उऋण हो मन को शांत किया।’’ यह भी लेखक ने स्थान और परिस्थिति पर ध्यान न देकर अपने एकपक्षीय चिंतन के समर्थन में मान लिया जबकि सर्वविदित है कि राजा विराट के पास ये सभी अपनी पहिचान छिपाकर नाम बदलकर युधिष्ठिर को बड़ा भाई और द्रौपदी को उनकी पत्नी बताकर संरक्षण पाये थे। जरा सोचिए कीचक के सामने क्या वे अपने को द्रौपदी का पति बताकर उक्त कथन को कह सकते थे?
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