मन का स्वभाव ही यह होता है कि वह वैसा ही आकार ले लेता है जिसके संबंध में वह सोचता है । अंधविश्वास चाहे सामाजिक हो या मानसिक या आध्यात्मिक वह मन को चिंता में डाल कर कष्टों की ओर धकेल देता है। उसका मानसिक संतुलन इस प्रकार विगड़ जाता है कि वह अपनी शांति ही नहीं खोता वरन् वह इस प्रकार के काम भी कराने लगता है जो उसके स्वयं के लिए हानिकारक होते हैं। अंधविश्वास अपना पोषण स्वयं ही करता जाता है क्योंकि इस पर विश्वास करने वाले लोग छोटी छोटी सी घटनाओं को इस प्रकार बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करते हैं कि दुलर्क्षण भी अच्छे लगने लगते हैं। मन के इसी लक्षण के कारण लोगों को भूत दिखाई देते हैं जो कि मन की ही रचनाएं होते हैं। भूतों का रहस्य यह है कि यदि भूत देखने वाला व्यक्ति भूत को पकड़ने का साहस कर ले तो तत्काल समझ जाएगा कि वह तो कुछ नहीं को सब कुछ समझ रहा था।
सामाजिक स्तर पर डाइन, जादूगरनी, विधवाओं के साथ भेदभाव आदि के रूप में, मानसिक स्तर पर भूतों के रूप में, श्राद्ध त्योहारों के रूप में, और आध्यात्मिक स्तर पर स्वर्ग और नर्क की अवधारणाओं के रूप में अन्धविश्वास ने गहरी जड़े जमा रखी हैं। अमीर गरीब, प्रकांड विद्वान और निरक्षर, सहित अधिकॉंश जनसंख्या का इसने गला पकड़ रखा है। सामाजिक और व्यक्तिगत शान्ति संरक्षित रखने के लिए हमें प्राथमिकता से इसके विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए।
हमारे देश के तो वैज्ञानिक भी इनसे नहीं बच पाए हैं, जैसा कि हर अच्छे काम के प्रारंभ में चाहे धंधा हो, राजनीति हो फिल्मों का उदृघाटन हो, या सेटेलाइट का प्रक्षेप हो तथाकथित पूजा और नारियल फोड़ने का कार्य अवश्य किया जाता है। यह एक संयोग भी कहा जा सकता है कि भारत का पहला मंगल यान मंगल के दिन ही असफल होकर गिर गया था भले ही इसरो के चेयरमेन के0 राधाकृष्णन ने प्रक्षेपित करने के एक दिन पहले तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर में विधिविधान से उसकी सफलता के लिए पूजा की थी। उनसे जब इस विषय पर चर्चा की गई तब वह बोले कि वह तो अपने पूर्ववर्ती जी0 राधवन नायर का ही अनुकरण कर रहे थे जो अपने कार्यकाल में हर सेटेलाइट के प्रक्षेपित होने के पहले पूजा किया करते थे। नेशनल स्टाक एक्सचेंज जैसे व्यवसाय में भी लक्ष्मी जी की उचित मुहूर्त में पूजा की जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार मुहूर्त वह समय होता है जब ग्रहों की स्थिति सभी प्रकार की बाधाओं को और संकटों को दूर करने के लिए अनुकूल होती है। कई लोग मुहूर्त में सांकेतिक रूप से अपने थोड़े से धन से धंधा प्रारंभ कर देते हैं और मानते हैं कि अब साल भर शुभत्व बना रहेगा, दीवाली मुहूर्त का इसीलिए बड़़ा ही महत्व माना जाता है? किसी भी नई फिल्म को दिखाने के पहले मुहूर्त में उसकी पूजा की जाती है। चुनावों के समय नेता भी अलग अलग धर्मों के प्रसिद्ध स्थानों पर जाकर पूजा अर्चना करते पाए जाते हैं। केलेंडर में इन मुहूर्तों को अलग से दर्शाया जाता है।(1)
आस्था, मान्यता और परम्परा के नाम पर इस प्रकार के अंधविश्वास हमारे ही देश में नहीं अन्य देशों में भी देखे जाते हैं। अमेरिका में बास्केटवाल का कोच यह मांग रखता है कि हर खेल के पहले उसके खिलाड़ी स्टीक और सालम का एक सा भोजन खायेंगे। कुछ कोच जीतने की प्रवृत्ति के प्रभाव में एक ही स्वेटर हर खेल में बिना धोए ही पहिनना अच्छा मानते हैं । कुछ खिलाड़ी खेल के पूर्व भोजन करते समय यह मांग रखते हैं कि उनका सेंडविच तिर्यक रूप से बिलकुल एक समान काटा जाना चाहिए। कुछ खिलाड़ी जीतने तक अपनी दाढ़ी बढ़ाये रहते हैं। लकड़ी को खटखटाना, तारे को नमस्कार करना, दर्पण को तोड़ना, चार पत्तों वाली वनमैथी को रखना, घर के भीतर छाता न खोलना, भाग्यशाली सिक्का रखना, जब छींक आए तब शुभ हो कहना आदि, अनेक प्रकार के अंधविश्वासों से अमेरिका की लगभग आधी जनता अंधविश्वास पालती है। अनेक लोग अंधविश्वास करते है क्योंकि जीवन अनिश्चित होता है और जब हम चाहते हैं कि कुछ घटित हो और उसके होने की निश्चितता नहीं होती तो वे उसे वैसा ही मान लेते हैं। अंधविश्वास हमें उस अवस्था में नियंत्रण करने की भावना देता है जहॉं हम नियंत्रित नहीं हो पाते।(1) (2)
विश्व के कुछ दर्शन अपने ही समाज को सिखाते हैं कि केवल वे और उनका समाज ही ईश्वर के लिए प्रिय है अन्य सभी अप्रिय और अभिशप्त। इस प्रकार के दोषपूर्ण शिक्षण से उस समाज के लोग अन्य समाजों के निरपराध व्यक्तियों के लिए समाप्त कर देना पवित्र कार्य मानते हैं । वे इन निरपराध लोगों के खून में स्नान कर अपने को पवित्र, धन्य और मुक्त मानते हैं। उनका दर्शन इस प्रकार का है कि दूसरों को मदद करना, रक्षा करना आदि सद्गुणों का उपयोग वे अपने ही समाज के लोगों के साथ करते हैं दूसरे समाज के लिए नहीं। इस प्रकार की अपंग व्याख्या ने जानबूझकर लोगों को धर्म का सही अर्थ जान पाने से वंचित कर दिया है । वे मानवीय गुणों से भटक रहे हैं तथा एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। कुछ झूठे दर्शनों के पालनकर्ता तर्क देते हैं कि अपनी बुद्धि का उपयोग करना क्या बुरा है? हम अपनी बुद्धि से पराक्रम कर धन अर्जित करते हैं तो क्या बुरा है? इस प्रकार के परजीवियों ने लाखों लोगों के हक पर अतिक्रमण कर अपने को महलों में स्थापित कर लिया है और असंख्य लोग अपने अस्थिपंजर के साथ आसमान के नीचे बसर करने को विवश हैं। इस प्रकार के लोगों ने ही जनसामान्य को नैतिकता और धर्म से हटाकर भौतिकवाद की मरीचिका वाले सुखों की ओर भटका दिया है। (3)
संदर्भ
(1) विकीपीडिया ।
(2) याहू हेल्थ, स्टुआर्ट वायस, साइक्लाजी आफ सुपरस्टीशन।
(3) नमः शिवाय शान्ताय, प्रवचन 14
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