Sunday, 13 March 2022

373 अंतर्ज्ञान कालातीत होता है।

 अंतर्ज्ञान कालातीत होता है। 

बुढ़ापे की प्रक्रिया न केवल हाथों  और पैरों को प्रभावित करती है, बल्कि मस्तिष्क सहित पूरे शरीर को भी अपने प्रभाव में ले लेती है। मस्तिष्क  हमारा  मानसिक केंद्र है । यही कारण है कि 50 या 60 साल की आयु पार करने के बाद, आम लोगों की बुद्धि कमजोर पड़ती है। उनकी तंत्रिका कोशिकायें अधिक से अधिक  कमजोर हो जाती हैं। लोग, अपनी स्मृति और मनोवैज्ञानिक संकाय धीरे धीरे एक दिन कम होते जाते हैं और एक दिन  उनके दिमाग भी काम करना बंद कर देते हैं।  यह असाधकों के साथ होता है जब वे बहुत बूढ़े हो जाते हैं। हालांकि, योग साधना करने वालों के मामले में, यह नहीं होता है। परन्तु आपको केवल बुद्धि पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए क्योंकि बुद्धि में इतनी  दृढ़ता नहीं होती है। अगर आपके पास भक्ति है, तो अंतर्ज्ञान विकसित होगा और इसके साथ, आप समाज को बेहतर और बेहतर सेवा करने में सक्षम होंगे। 

इसलिए मानसिक क्षेत्र में, भक्त अंतर्ज्ञान पर अधिक निर्भर करते हैं जो  कभी भी क्षय नहीं होता क्योंकि अंतर्ज्ञान ब्रह्मांडीय विचारों पर आधारित होता है। जब मन को सुदृढ़ किया जाता है या उसे सूक्ष्म दृष्टिकोण की ओर निर्देशित किया जाता  है, तो वह  “पुराना हो रहा है“ इसका प्रश्न ही नहीं उठता । मन अपना विस्तार करना जारी रखता है जिससे वह  अधिक तेज और अधिक एकाग्र  होता जाता है परन्तु जो लोग केवल बुद्धि पर निर्भर होते हैं वे बहुत कष्ट पाते हैं। इसका कारण यह है कि बुढ़ापे की शुरुआत से ही  उनका  मानसिक संकाय अधिक से अधिक कमजोर  होता  जाता है जब तक कि उनकी बुद्धि पूरी तरह से नष्ट होने  की संभावना न हो जाय । जो लोग अपने अन्तर्मन से भक्ति कर रहे हैं वे आसानी से परमपुरुष  द्वारा अंतर्ज्ञान पाने का  आशीर्वाद प्राप्त कर लेते  हैं।

अगर किसी ने अपनी युवा अवस्था  से ही उचित साधना की है  और मन को आध्यात्मिक  अभ्यास  में प्रशिक्षण दिया  है तो उसकी  प्राकृतिक प्रवृत्ति परमार्थ  की ओर बढ़ने की हो जाती है।  इस प्रकार  साधना करते हुए  उसे अंतिम सांस तक कोई समस्या आने का कोई प्रश्न नहीं उठता । उनका मन  आसानी से ब्रह्मांडीय लय और  ताल में बह जाएगा और साधना क्रिया स्वाभाविक रूप से सरल होगी । इसके विपरीत यदि कोई कहे कि साधना करना तो बुढ़ापे का कार्य है तो उसे बहुत कठिनाई होगी।


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