शिव के ध्यान मंत्र में उन्हें ‘व्याघ्रकृत्तिमवासनम्’ कहा गया है। व्याघ्र का अर्थ है शेर या ‘टाइगर’, कृत्तिम का अर्थ है चर्म या चमड़ा और वसानम् का अर्थ है वस्त्र या पहनावा। अर्थात् वे शेर के चमड़े को पहना करते थे। जैन दर्शन के प्रभावी काल में कुछ अज्ञानियों ने शिव को दिगम्बर मान लिया जब कि ध्यान मंत्र में स्पष्ट है कि वे व्याघ्रचर्म पहना करते थे, इसी कारण अनेक नामों में से उनका एक नाम ‘कृत्तिवास‘ भी है।
इसी मंत्र में उन्हें विश्वाद्यम् और विश्वबीजम् भी कहा गया है। विश्वाद्यम् अर्थात् विश्व आद्यम् अर्थात् विश्व में सबसे पहले। और विश्वबीजम् अर्थात् विश्व को उत्पन्न करने के बीज स्वरूप। शिव को परमपुरुष मानने का कारण यह है कि उनमें परमसत्ता के सभी गुण हैं और वे हमारे बिल्कुल निकट हैं अतः उन्हें परमपिता कहना न्यायसंगत है। वे पुरुषोत्तम हैं, प्रथम पुरुष है, परम शिव हैं और वे विश्वाद्य अर्थात् बृह्मॉंड के उद्गम है। विश्व के उद्गम का कारण भी इन्हीं प्रथम पुरुष में है, आदिशिव ही अपने निष्कलत्व को सकलत्व में मात्र इच्छा से ही रूपान्तरित कर देते हैं। आदिशिव की इच्छा के विना प्रकृति कोई भी रचना नहीं कर सकती। इसलिये विश्व के मूल कारण आदिशिव हैं न कि प्रकृति। ध्यान मंत्र में यह स्पष्ट कहा है कि शिव ही विश्व के बीज हैं।
No comments:
Post a Comment