17 : बाबा की क्लास ( बम बम भोले , हर हर भोले)
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चंदु - बाबा! आज हम लोगों ने स्कूल से आते हुए कुछ लोगों को, रास्ते में लेटते फिर उठकर चलते, फिर लेटते फिर उठकर चलते और ‘‘बम बम भोले /हर हर भोले‘‘ के नारे लगाते हुए देखा। यह कैसा कार्य है?
बाबा - यह भोले भाले लोगों की, उनके भोले भाले भगवान शिव के प्रति उनकी भोली भाली पूजा करने का प्रकार है।
रवि - कुछ समझ में नहीं आया बाबा! बम तो आज विज्ञान के युग में बने हैं, सात हजार वर्ष पहलेे शिव के कार्यकाल में यह कहाॅं थे? वे तो ‘बम बम भोले‘ जोर जोर से चिल्ला रहे थे?
बाबा - भारतीय दर्शन के अनुसार वह सत्ता जो हमारी सभी बाधाओं, संस्कारों और पापों को हर लेती है वह ‘‘हर‘‘ कहलाती है। इसलिये कहा गया है कि जब तक कोई व्यक्ति इस ‘हर‘ के संपर्क में नहीं आता है वह संस्कारों और पापों से मुक्त नहीं हो सकता है। प्राचीन काल से ही भक्तगण इस सत्ता को परासत्ता मानकर उसका प्रसिद्ध मन्त्र ‘‘हर हर व्योम व्योम‘‘ गाते रहे हैं। ‘व्योम‘ भौतिक जगत के पदार्थ का सूक्ष्मतम रूप है इसे आकाश तत्व कहते हैं और ‘हर‘ आत्मिक क्षेत्र का। अतः इस मंत्र को कहने का आशय यह है कि अपने मन को ‘व्योम‘ की तरह सूक्ष्म कर लो ताकि वह ‘हर‘ से संपर्क कर सके।
नन्दू - परंतु बाबा! वे तो बम बम बम... चिल्लाते थे... ?
बाबा - वे क्या करें, हजारों वर्षों में मानव समाज में विचारधाराओं, सिद्धान्तों और संघर्षों के अनेक आघात हुए हैं जिससे वास्तविकता विकृत हुई है और जिन्हें इसे अक्षुण्ण बनाये रखने का शिव ने दायित्व दिया था वे भी लोभ और स्वार्थ ग्रस्त होकर स्वयं पतित होते गये। शिव की सरलता, साधुता और तेजस्विता के कारण सभी जन सामान्य उन्हें अपने अत्यधिक निकट अनुभव करते थे इसलिये वे सरल हृदय के लोगों के सरल देवता हैं। यही लोग ‘हर हर व्योम व्योम‘ को ही अपभ्रंशवश ‘हर हर बम बम‘ बोलते हैं और दंडवत प्रणाम करते हुए इस विश्वाश के साथ अपने घर से शिव मंदिर तक जाते हैं ताकि वह प्रसन्न हों।
चंदु - तो क्या शिव उनके इस कार्य से प्रसन्न होकर उनकी मनोकामना पूरी कर देंगे?
बाबा - कर भी सकते हैं और नहीं भी कर सकते हैं, सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उनके संचित संस्कार क्या हैं और इस कार्य के पीछे उनकी भावना क्या है। अधिकांश लोग आडंबरी प्रदर्शन कर ईश्वर से यह चाहते हैं कि उन्हें संसार के सभी सुख और साधन सम्पन्नता मिल जाये परंतु यह भूले रहते हैं कि यह सब तो कर्मों के अनुसार ही प्राप्त होते हैं। कर्म फल सबको भोगना ही पड़ता है।
रवि - तो ईश्वर की पूजा करने का औचित्य ही क्या है?
बाबा - ईश्वर की पूजा करने का क्या तुम यह अर्थ लगाते हो कि उन्हें एक नारियल चढ़ा कर और अगरबत्ती की सुगंध भेंट कर सारे संसार के सुख प्राप्त कर लें? नहीं यह उद्देश्य भी नहीं होना चाहिये । ईश्वर की सच्ची पूजा वह है जिसमें हम अपने विशुद्ध मन से उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करें कि उन्होंने कृपा कर हमें श्रेष्ठ मानव शरीर दिया है जिसकी सहायता से हम, हमारे अंतिम आश्रय ‘‘उन्हें ही‘‘ पाने का प्रयत्न कर सकते हैं इसका हम दुरूपयोग न करें । तुम लोग याद रखना! यह कार्य अन्य किसी जीव के शरीर में संभव नहीं है।
चंदु - यदि हमें उनसे कुछ नहीं मांगना चाहिये तो क्या कुछ देना भी नहीं चाहिये?
बाबा - हाॅं , नहीं माॅंगना चाहिये। हमें अपनी योग्यतानुसार उन्होंने पहले ही सब कुछ दे दिया है। उन्हें हम क्या दे सकते हैं ? सब कुछ तो उन्हीं का है , हम भी उन्हीं के हैं परंतु अहंकार के कारण उनसे भिन्नता पाले हुए हैं। हमें अपने विशुद्ध मन को ही उन्हें समर्पित करना चाहिये जिससे हमारा और उनका मन एक हो जाये, यही सच्ची पूजा है।
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