Saturday, 1 August 2015

13 बाबा की क्लास ( परमसत्ता और देवता)
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रवि - बाबा! ये देवता कौन हैं? जितना पढ़ते हैं उतना ही कन्फ्यूजन होता है?

बाबा - परम निर्पेक्ष चेतना ही सत्य और आनन्दघन सत्ता है। उसकी कार्यकारी त्रिगुणमयी प्रकृति उसे, उसी की सहमति से, उसके ही कुछ भाग को नये नये आकार देकर उसके विभिन्न सगुण रूप बनाती और मिटाती रहती है। ऋषियों ने उसके इस कार्य को  ब्रह्मचक्र नाम दिया है। इसके प्रत्येक अस्तित्व को दिव्य तरंगें अर्थात् देवता कहा जाता है और हम सब भी वही हैं पर अपने अहंकार और संस्कारों के रंग से रंगे होने के कारण पृथक पृथक होने का आभास पाते हैं।  इसलिये देवता वह है जिसके व्यक्तित्व और आदर्श  एकसमान हो गये हैं और जिसने अपने अहंकार और संस्कारों के सभी रंगों को अभ्यास, वैराज्ञ और संघर्ष से समाप्त कर लिया है। स्पष्ट है कि वे कहीं अन्यत्र  नहीं हैं और न ही वे प्रसन्न और अप्रसन्न होते हैं। हममें से कोई भी निरंतर अभ्यास के द्वारा अपने व्यक्तित्व और आदर्श  में एकरूपता ला सकता है।

रवि - तो फिर देवताओं की संख्या 33 करोड़  क्यों बताई जाती है?

बाबा -  संख्या के संबंध में सच्चाई यह है कि हमारे शरीर के संचालन के लिये प्रकृति ने तेतीस करोड़ नर्व सैल और नर्व फाइवर्स बनाये हैं जिन्हें नियंत्रित करने के लिये कुल तेतीस नाडि़याॅं या ऊर्जा केन्द्र ही प्रधान होते हैं । ये परस्पर अपने व्यक्तित्व और आदर्श  से ओतप्रोत होने के कारण देवता कहलाते हैं। जो कुछ मनुष्य शरीर के भीतर है वही ब्रह्मांड में गेलेक्सियों तारों , वनस्पतियों और जीवधारियों के रूप में भी है।
इन्ही ऊर्जा केन्द्रों को एकादश  रुद्र,  (अर्थात् पाॅंच ज्ञानेन्द्रियाॅं, पाॅंच कर्मेद्रियाॅं और एक मन कुल ग्यारह) जब कोई व्यक्ति अपना शरीर छोड़ देता है तो ये एकादश  अवयव भी एक एक कर चले जाते हैं और संबंधीजन रोने लगते हैं, चूंकि ये सबको अंत में रुलाते हैं इस लिये रुद्र कहलाते हैं। 
द्वादश  आदित्य, (इनमें वर्ष के बारह माह सम्मिलित होते हैं वही आदित्य हैं) आदित्य का अर्थ है ‘लेना‘ चूंकि ये बारह माह धीरे धीरे व्यक्ति की आयु को लेते जाते हैं अतः आदित्य कहलाते हैं।
अष्ट वसु , (अर्थात् वासस्थान ), चूंकि जीव का वासस्थान भूमि, जल, वायु, अग्नि, आकाश , सूर्य, चंद्र और अंतरिक्ष इन आठ स्थानों में माना गया है अतः ये अष्ट वसु कहलाते हैं।
एक इंद्र अर्थात् ऊर्जा या कर्मशक्ति और 
एक प्रजापति अर्थात् यज्ञ या कर्म ।
इस प्रकार इनकी कुल संख्या (11+12+8+1+1= 33) तेतीस हैं। यह, जब देह में  होते हैं तब दैहिक देवता और ब्रह्म में होने पर में ब्राह्मी देवता कहलाते हैं । इसलिये जो देह में है वही ब्रह्माॅंड में भी है, यह कहा जाता है। 

रवि, चंदु और नन्दू एक साथ बोले -  ओह! तो... सच्चाई ये है, सब कन्फ्यूजन दूर....! 

बाबा -  हम सभी के पास इन तेतीस देवताओं अर्थात् ऊर्जा केन्द्रों का समूह होता है जिसे केवल एक ही परमनियंत्रक सत्ता जिसे ब्रह्म कहते हैं नियंत्रित करता है अतः मनुष्यमात्र का कर्तव्य है कि इनकी सहायता से अपनी तमोगुणी और रजोगुणी प्रकृति के विरुद्ध संघर्ष कर सत्य में प्रतिष्ठित होने की विजय प्राप्त करे और अपने जीवन के मुख्य लक्ष्य इस परमपुरुष तक पहॅुंचने का कर्म करे। जितने भी महापुरुष हुए है और जिन्हें हम देवतुल्य पूजते हैं वे सभी भी हमारी ही तरह सामान्य रहे हैं परंतु उन्होंने  सभी जड़ प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष कर विजय पायी और अद्वितीय कहलाये। उनकी जय बोलने का अर्थ यह है कि हम अपनी ही जय बोलते हैं और अपेक्षा करते हैं कि उनकी ही तरह हम अपने आदर्श  और व्यक्तित्व को समेकित करने में सफलता पायें। 

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