Tuesday, 13 October 2015

26 बाबा की क्लास ( नवदुर्गा 1)



रवि- बाबा!आजकल सबेरे से ही अनेक लोग अपने बगीचे के फूल तोड़ने आ जाते हैं, बिना पूछे ही डंडे से या हाथ से खींच खीच कर जासोन की तो कलियाॅं और डालियाॅं तक तोड़ जाते हैं। कल मैं ने कुछ लोगों को टोका तो कहने लगे नवदुर्गा के लिये चाहिये हैं उन्हें जासोन का फूल प्रिय है। बाबा! यह नवदुर्गा क्या हैं ?

बाबा- प्रागैतिहासिक युग के लोग फार्मेकोलाजी से अपरिचित थे अतः वे पेड़ पौधों को सीधे ही रोगों को दूर करने में प्रयुक्त करते थे। उन दिनों विशेषतः भारत में लोग नौ प्रकार के पेड़ पौधों के संपर्क में आये जो दवाओं या भोजन के रूप में अत्यंन्त लाभदायी थे। वे उन्हें जीवनदायी मानकर उन्हें अत्यधिक आदर के साथ पालते और रक्षा करते।  बाद में उन्हें नष्ट होने से बचाने के उद्देश्य  से उनमें देवी देवताओं का स्वरूप दे दिया गया जिसका परिणाम अन्धानुकरण और आडम्बर के रूप में आज तक दिखाई दे रहा है। ये नौ पौधे जिनमें भारत के लोगों ने विशेष औषधीय गुण पाये, वे हैं, कदली (Plantain) कचु या अरबी (arum) हरिद्रा(Turmeric) जयंती, अशोक, विल्व, दाडि़म्ब अर्थात् अनार , मान अर्थात् कन्द और धान्य (Unhusked rice)।

नंदु- बाबा! ये नौ पौधे किस प्रकार जीवनदायी हैं?

बाबा-  कदली एक अच्छा न्युट्रिशियस भोजन है और एक दिन के अंतर से आने वाले ज्वर के लिये बढि़या औषधि है, इसके अलावा वह पेंक्रियाज और किडनी के लिये अच्छी तरह क्रियाशील बनाये रखने में भी सहायक है। वह डिसेंट्री के लिये औषधि है ही। उन माताओं के लिये यह अच्छा भेाजन है जिनके बच्चे छोटी अवस्था में मर जाते हैं। उन बच्चों के लिये जिनकी माॅं की मृत्यु हो जाने के कारण दूध के न मिल पाने से रिकेट्स की बीमारी हो जाती है, उन्हें यह काले चिट्टे वाले अधिक पके केले के रूप में खिलाये जाने पर रामवाण औषधि है। इतना ही नहीं यह, वे बछड़े जिनकी माॅं मर गयी हो उनको अधिक पके  केले और सत्तू के एक अनुपात दो के अनुपात में पेस्ट के रूप में खिलाने पर स्वस्थ हो जाते हैं। स्पष्ट है कि कदली में अनेक जीवनदायी गुणों के कारण लोगों ने उसे देवता की तरह आदर देना प्रारंभ किया।
दूसरा है कचु या अरबी अर्थात् अरुम, इसकी भोजन के रूप में कम उपयोगिता है परंतु किडनी के लिये यह बहुत ही उपयोगी है।
तीसरा है हरिद्रा अर्थात् टर्मेरिक, यह एन्टीसेप्टिक होती है और अच्छा मसाला भी है। भोजन में प्रयुक्त होने वाली हल्दी धूप में सुखाई गई होती है, सीधे खेत से लाई गई हरी हल्दी विषैली होती है अधिक उपयोग करने पर मृत्यु भी हो सकती है, परंतु ऐंटीसेप्टिक है वह खून को साफ करती है तथा त्वचा के रोगों को दूर करती है। जब किसी के घर कोई्र बड़ा समारोह आयोजित होता है तो आज भी एकत्रित होने वाली महिलाओं में हल्दी का उबटन लगाने की प्रथा है खास तौर पर विवाह के अवसरों पर, क्यांेकि अनेक स्थानों के व्यक्ति एकत्रित होने से इन्फेक्शस डिजीज होने की संभावना रहती है।
चौथा है जयन्ती, इसकी जड़ों में औषधीय गुण अधिक होते हैं, यह श्वेत कुष्ठ के लिये सही दवा है। यथार्थतः यह सात प्रकार के त्वचीय रोगों में से चार प्रकार के लिये अधिक उपयोगी है।
पाॅंचवाॅं है अशोक, अर्थात् सीता अशोक, केवल अशोक कहने  का अर्थ है देवदारु। सीता अशोक में ही औषधीय गुण पाये जाते हैं। यह सभी प्रकार के स्त्री रोगों की आदर्श  औषधि है।
छठवाॅं है विल्व, अर्थात् बेल का फल। बिना पका बेल हर प्रकार के पेट रोग की दवा है। कच्चे बेल फल को भूंन कर खाना चाहिये। बिल का अर्थ है सूक्ष्म छिद्र अतः विल्व का अर्थ है ‘वह जो छोटे से छोटे छिद्र में प्रवेश   कर पेट को अधिकतम लाभ पहुंचाता है‘। इसके असाधारण गुणों के कारण इसे  श्रीफल भी कहते है जिसका मतलब है उत्तम गुणों वाला फल।
सातवाॅं है दाडि़म्ब, इसकी छाल, जड़ें और फल सभी महिलाओं की सभी प्रकार की बीमारियों की अच्छी दवा है। चीन और भारत की आयुर्वेदिक पद्धतियों में दाडि़म्ब के ये गुण मान्यता प्राप्त हैं।
आठवाॅं है मान अर्थात् कंन्द, जो मनुष्य के शरीर में मास बढ़ाने बाले सभी प्रकार के स्टार्ची खाद्य पदार्थों में अतुलनीय है। यह आलु अथवा कटहल के बीजों की तुलना में अधिक अच्छा है। कटहल के बीज आलु से ढाई गुने अच्छे हैं। भारत में आलु के आने के पहले यहाॅं इन्हीं बीजों का उपयोग किया जाता था, मान इन बीजों से भी अधिक मूल्य रखता है। इसके अलावा मान के द्वारा मानव शरीर पर ठंडा प्रभाव डाला जाता है। गर्मी के समय यह अच्छी दवा है, जब शरीर गर्मी से प्रभावित होकर नाक से खून बहाने लगता है तो यह औषधि और भोजन दोनों की तरह काम में लाया जाता है। 
नौवाॅं है धान्य अर्थात् पैडी जिसके अनेक उपयोग हैं, सबसे सरल तो यह है कि इससे अल्कोहल बनाया जाता है जो अनेक प्रकार की दवायें बनानें के काम आता है।

चंदु- परंतु बाबा! मंदिरों में तो इनके अनेक आकार, प्रकार, के मुंह हाथ आदि होते हैं?

बाबा- यह सभी काल्पनिक हैं, किसी रचनाकार की कल्पना को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इन नौ प्रकार के पौधों के विशेष गुणों के कारण ही उनमें लोगों ने अपना पूज्य भाव स्थापित किया और बहुत समय  बाद  पौराणिक काल में उनमें नौ प्रकार की चंडिका शक्ति के वास स्थान होने की कल्पना की गई,  जैसे,  कदली में ब्राह्मणी, अरुम में कालिका, हरिद्रा में दुर्गा, जयंति में कार्तिकी, अशोक में शोकरहिता, विल्व में शिव, दाडिंब में रक्तदन्तिका, मान में चामुंडा, और धान्य में लक्ष्मी। 
राजू - अच्छा ! इसीलिए आज भी यदि किसी के पैर भूल से चावल के दानों से छू जावें तो वह फौरन ‘‘ओ माता लक्ष्मी‘‘ कह कर क्षमा मागते हुए प्रणाम करने लगता है। 

बाबा- इस प्रकार का सोच उस समय लोगों का था। अभी भी देवी शक्तियों को लोग संयुक्त रूप से उसी प्रकार इन पौधों में होने की मान्यता देते हैं और नवदुर्गा का नाम देकर पूजते हैं ;अर्थात् अगरबत्ती लगाकर घी के दीपक जलाकर आरती उतारते हैं और चंदन का तिलक लगाते हैं तथा जैसा कि तुमलोगों ने भी देखा चोरी के जासोन के फूल चढ़ाकर भौतिक वैभव और स्वर्ग की कामना करते हैं, और उन पौधों को संयुक्त रूप में नव पत्रिका का नाम देते हैं। अब तुम लोग ही सोचो  कि पौधों की पूजा करने का अर्थ  उन्हें पालने, पानी, खाद और अन्य पोषक तत्वों से उनका संवर्धन और रक्षण करने में होता है या केवल आरती और चंदन या अगरबत्ती से?  बस, यहीं से अन्धानुकरण और आडंबर ने जन्म लिया है और बढ़ता ही जा रहा है। 
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