राजू- बाबा! पिछले 24 सितम्बर 2015 को सऊदी अरब के हाजी में भगदड़ होने पर मरने वालों की संख्या अलग अलग रिपोर्टो में 769 से 1184 के बीच बताई गयी है । इसी स्थान पर , 1990 में , हज यात्रा के पहले ही दिन 1426 यात्री भगदड़ में मारे गये थे। इतनी भीड़ इन स्थानों पर क्यों होती है?
रवि- हाॅं बाबा! भारत में भी अक्टूबर 2013 में रतनगढ़ (मप्र) की सिंध नदी के पुल पर यात्रियों की भगदड़ में 115 लोग मर गये थे और 100 से अधिक घायल हुए थे, और इससे पहले भी अप्रेल 2008 में हिमाचल प्रदेश के एक पर्वत पर बने मंदिर कों जाते समय मची भगदड़ में 145 लोगों ने अपने प्राणों से हाथ धोये थे।
चंदू- ये तो अपेक्षतया हाल के ही उदाहरण हैं बाबा! भूतकाल के अनेक हृदय विदारक द्रश्य भी सभी को ज्ञात हैं जो समय समय पर तीर्थों धार्मिक मेलों और उत्सवों में एकत्रित भीड़ में लोगों के प्राणहर्ता बने हैं?
बाबा- तुम लोग तो आज आॅंकड़ों सहित आये हो, चलो आज ‘तीर्थ‘ पर ही चर्चा करते हैं। प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन मे तीन प्रकार की भूख क्रमशः लगती है, एक तो शारीरिक जो समय समय पर भोजन करने से, दूसरी मानसिक जो भौतिक सुख सुविधायें जुटाने से और तीसरी आध्यात्मिक जो सच्चे ज्ञान की प्राप्ति से शाँत होती है। जब प्रथम दो प्रकार की भूखों को तृप्त करने पर भी मन शान्त नहीं होता तो वह उस रास्ते या व्यक्ति को ढूंडने लगता है जो भौतिक और मानसिक जगत से ऊपर हो और मन को शांत कर सके, इसे आध्यात्मिक जगत कहते हैं। इसे खोजने के कार्य को हमारे पूर्व मनीषियों ने ‘‘पर्यटन‘‘ कहा है जिसका अर्थ है ज्ञान प्राप्ति के लिये अध्ययन करते हुए घूमना। इस प्रकार अलग अलग विचार धाराओं के लोग अपने अपने ढंग से इस प्रकार ज्ञान प्राप्त करने के लिये अध्ययन हेतु स्थान स्थान पर जाते थे। बाद में कुछ स्वार्थी लोगों ने इन्हें आय के साधनों की तरह उपयोग में लेना प्रारंभ कर दिया। इसलिये यह अब विकराल अंधानुकरण में बदल गया है।
राजू- बाबा! इन्हीं स्थानों को क्या तीर्थ कहा गया है ? या कोई अन्य? तीर्थ वास्तव में है क्या?
बाबा- मनुष्यों का यह स्वभाव है कि वे भौतिक जगत में हो या आध्यात्मिक जगत में, बिना कुछ पराक्रम किये सब कुछ पाना चाहते हैं । यही कारण है कि वे अपने सौभाग्य को पाने या पापों को धोने के लिये तथाकथित तीर्थों की यात्रा करते हैं। इन तथाकथित तीर्थों में गाय की पूछ पकड़ कर वैतरणी पार कराकर स्वर्ग में ले जाने का ठेका चलाने वाले तथाकथित ज्ञानी लोग इन भोले भाले लोगों को ही नहीं डिग्री धारी पढ़े लिखे लोगों को भी ठगते देखे जाते हैं क्योंकि वे उनकी इस मानसिक कमजोरी को पहचानते हैं। यात्री, अपने ज्ञान और इच्छा से कोई पूजा पाठ नहीं कर पाते और इन धूर्तों के बहकावे में आकर एक स्थान से दूसरे स्थान को तीर्थ यात्रा के नाम पर भटकते रहते हैं और अपना बहुमूल्य समय, धन और पराक्रम व्यर्थ ही व्यय करते रहते है। अनेक स्थलों पर चाहे प्राकृतिक घटना कहें या मानव निर्मित त्रासदी, हजारों लोग इस अवसर पर जीवन भी समाप्त कर बैठते हैं, इसके अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। कुछ तो तुम लोग बता ही चुके हो। पवित्र स्थलों या तीर्थों का ‘डोग्मा‘ लोगों के मन में इतना गहरा गया है कि वे भौतिक सम्पदा जैसे धन, पति, पत्नि, विवाह, पदोन्नति, स्वर्ग और अनेक सुखोपभोग की वस्तुओं को विना पराक्रम किये इन स्थानों पर जाकर पाने की इच्छा करते हैें और फिर भगदड़ जैसी कृत्रिम घटनाओं में अपने प्राण तक खो बैठते हैं।
रवि- तो क्या जिन स्थानों को तीर्थ स्थान कहा जाता है वे व्यर्थ हैं? यदि हाॅं तो वास्तविक तीर्थ क्या हैं?
बाबा- तीर्थ का अर्थ है ‘‘तीरे स्थितः यः सः तीर्थः।‘‘ जैसे नदी के किनारे पहुंचने पर यदि एक ही कदम आगे बढ़ाते हैं तो नदी के पानी में जा पहुंचते हैं और नदी किनारे से एक ही कदम पीछे रहते हैं तो स्थल पर ही बने रहते हैं, है कि नहीं?
सभी बच्चे- हाॅं बाबा! इसीलिये नदी के किनारे को तीर कहते हैं ।
बाबा- बिलकुल सही। इसी प्रकार भौतिक जगत और आध्यात्मिक जगत की मिलन रेखा पर (अर्थात् तीर पर ) जो स्थित हो गया उसे कहेंगे ‘तीरस्थ‘ और वह मिलन स्थल तीर्थ । कितना आश्चर्य है कि अन्तरिक्ष में अपना अपना राज्य फैलाने को उत्सुक संसार के देश अपने नागरिकों को इतना शिक्षित नहीं कर पाये कि वास्तविकता क्या है , धर्म अधर्म और आस्था अनास्था क्या है।
धर्मप्राण भारत के ही पुरोधा कह गये हैं कि ‘‘ इदं तीर्थं इदं तीर्थं भ्रामयन् तमसा जनाः, आत्मतीर्थं न जानन्ति कथम् मोक्ष वरानने?‘‘ अर्थात् अज्ञान के प्रभाव से लोग इस तीर्थ से उस तीर्थ में भटकते फिरते हैं, परंतु जब तक आत्मतीर्थ को नहीं जाना है मोक्ष कैसे मिल सकता है?
----- अब तुम्हीं लोग बताओ क्या हमें अब भी जनसामान्य में व्याप्त इस अज्ञान को हटाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये?
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