Monday, 19 October 2015

27 बाबा की क्लास ( नवदुर्गा 2)


रवि- लेकिन बाबा! यह विभिन्न आकार प्रकार की देवियों की नौ दिन तक पूजा करने का समारोह तो पूरे देश  में हर वर्ष सभी लोग धूम धाम से मनाते हैं?
बाबा- हाॅं तुम ठीक कहते हो, इस प्रकार के समारोहों में भक्तिभाव तो कुछ ही लोगों में देखा जाता है आडम्बर और हो हल्ला ही मुख्यतः दिखाई देता है ।
नन्दू- तो क्या ‘‘देवी शक्ति ‘‘ की अवधारणा असत्य है ?
बाबा- देवीशक्ति की अवधारणा की यथार्थता पौराणिक काल से काल्पनिक कथाओं , आकारों , आडम्बर और बाहरी प्रदर्शनों  में विलुप्त ही हो गई है बहुत कम लोग ही यह सच्चाई  जानते हैं।
चन्दू- तो इस अवधारणा की सच्चाई क्या है आप हमें बताइये जिससे हम अन्य लोगों को उसका ज्ञान करा सके? इन देवियों के माता पिता कौन हैं ? ये सब कहाॅं से आई और अब कहाॅं हैं?
बाबा- अच्छा! तुम लोग विज्ञान में शक्ति अथवा ऊर्जा के बारे में क्या पढ़ते हो? क्या तुम उसे उत्पन्न कर सकते हो, क्या उसे नष्ट कर सकते हो? अथवा क्या तुम उसे देख सकते हो?
रवि,नन्दू और चन्दू - नहीं बाबा! ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट । हाॅं, उसका रूपान्तरण, अपने कार्य में लेने के अनुसार अवश्य  किया जा सकता है जैसे चुम्बक , विद्युत, ऊष्मा, प्रकाश , ध्वनि आदि आदि।
बाबा- तुम लोग सही कह रहे हो, पर यह बताओ कि शक्ति क्या है? क्या इसके अनेक हाथ पैर , मुंह या कोई अन्य आकार होता है?
रवि- बाबा! हम लोग तो यह जानते हैं कि भौतिक कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा अर्थात् एनर्जी औरसमय के सापेक्ष  कार्य करने की दर को शक्ति अर्थात् पावर कहते हैं । इसके हाथ पैर मुंह होने का तो प्रश्न  ही नहीं है।
बाबा- तो अब तुम्हीं लोग बताओ कि यह जो आडम्बर और प्रदर्शन  देवी पूजा के नाम पर होता है उसकी सार्थकता क्या है?
नन्दू- बाबा! यह बात तो समझ में आ गई कि भौतिक कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं पर उसकी पूजा करने का अर्थ क्याहै?
बाबा- तुम लोग विज्ञान में यह भी पढ़ते हो कि पदार्थ क्या है? 
चन्दू- हाॅं बाबा! ऊर्जा और पदार्थ एक दूसरे में रूपान्तरित होते रहते हैं आइंस्टीन के ‘‘ मास एनर्जी इक्वेलेंस ‘‘ के अनुसार। इसका अर्थ है पदार्थ और कुछ नहीं ऊर्जा का घनीभूत रूप ही है । और इस ‘कासमस‘ अर्थात् ब्रह्माॅंड में पदार्थ , ऊर्जा और रिक्त स्थान अर्थात् ‘स्पेस‘ के अलावा कुछ नहीं है ।
बाबा- तो अब तुम्हीं लोग बताओ कि जब पदार्थ और ऊर्जा के अलावा कुछ है नहीं तो हमें इनका अधिकतम सदुपयोग करना चाहिये कि नहीं ? उनके रूपान्तरण करने और नियंत्रण करने की नयी नयी विधियाॅं खोजना और जनहित में उनका सदुपयोग करना सीखना ही हमारी पूजा हुयी या उसके अनेक भयावह आकार देकर डरना डराना और पानी फूल पत्ते भेंट देकर सारे संसार पर राज्य करने का वरदान पाने की इच्छा रखना?

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