106 बाबा की क्लास ( महासम्भूति श्रीकृष्ण- 15)
राजू- लेकिन जीवधारी तो असंख्य हैं मनुष्यों की सख्या भी धरती पर कम नहीं है, धरती के अलावा अन्य ग्रहोंपर भी जीवन सम्भव है तो फिर परमपुरुष को सभी से व्यक्तिगत रूपसे जुड़कर आनन्द पाना किस प्रकार सम्भव होता है?
बाबा- परमपुरुष ओतयोग और प्रोतयोग से सबसे जुड़े रहते हैं। ओतयोग का अर्थ है व्यक्तिशः जुड़ना और प्रोतयोग का अर्थ है सामूहिक रूपसे जुड़ना। बृजगोपाल ओतयोग से और पार्थसारथी प्रोतयोग से सब से जुड़े रहे। समाजिक चेतना को भीतर तक हिला देने के लिये छः घटकों की आवश्यकता होती है, आध्यात्मिक आदर्श , सामाजिक द्रष्टिकोण, सामाजिक आर्थिक सिद्धान्त, साहित्य और निर्देशक। कृष्ण ने अपने समय में उच्चस्तरीय सामाजिक चेतना जाग्रत की और बताया कि सभी के मिलजुल कर रहने से ही सामाजिक प्रगति हो सकती है पृथक पृथक रहकर नहीं। इसीलिये उन्होंने सामान्य जीवन को स्वाभाविक रूपसे उन्नत किये जाने पर बल दिया और जो भी इसके मार्ग में बाधक बना उसे समाप्त कर दिया। इस प्रकार कृष्ण की सामाजिक चेतना से कुछ लोगों के आनन्द में बाधा भले ही पहुँची हो पर इससे नन्दन विज्ञान का क्षेत्र और विस्त्रित हो गया।
इन्दु- परन्तु पार्थसारथी से तो केवल राजा लोग ही मिल पाते थे ?
बाबा- सत्य है, पर पार्थसारथी के निकट आकर लोग अपने मन की तरंग लम्बाई में बृद्धि का अनुभव करते थे। वे उनका स्मरण और चिन्तन करने पर भी अपनी तरंग लम्बाई में बृद्धि होने से आनन्द का अनुभव करते थे जो सामाजिक चेतना के जाग्रत होने पर ही सम्भव था। पार्थसारथी के अनन्त सद गुणों के चिन्तन में लोग उन्हीं में खो जाते थे, परमपुरुष का इस प्रकार चिन्तन करते उन्हीं में खो जाना रहस्यवाद कहलाता है। इस प्रकार सभी लोग उनसे अपना व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाये थे और केवल उन्हीं के सम्बन्ध में सोचना और उन्हीं का नाम सुनना चाहते थे जो प्रकट करता है कि वे नन्दन विज्ञान के स्वयं जन्मदाता थे अतः नन्दन विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में उनका परीक्षण कौन कर सकता है ?
रवि- कुछ लोग मोहनविज्ञान की चर्चा करते पाए जाते हैं और कहते हैं कि कृष्ण तो सबको मोह लेते थे, यह क्या नन्दन विज्ञान से अलग है ?
बाबा- नन्दन विज्ञान में आनन्द का आदान प्रदान होता है, पर मोहन विज्ञान इससे भिन्न है। निःसन्देह मानवता ने इसके थोड़े से पक्ष को अनुभव किया है पर यह विज्ञान विशिष्ठ रूप से परमपुरुष से संबंधित है कृष्ण से सम्बंधित है। यहाॅं कृष्ण से तात्पर्य दोनों बृज और पार्थसारथी कृष्ण से है। मोहन विज्ञान में ये दोनों एकसाथ मिल जाते हैं। मोहन विज्ञान में परमपुरुष, मनुष्यों को तन्मात्राओं या एक्टोप्लाज्मिक आकर्षण से अपने निकट खींचते हैं अथवा अन्य लोग उनके अनवरुद्ध आकर्षण से खिंचे चले जाते हैं। कृष्ण अपने आन्तरिक प्रेम से लोगों को अपने निकट खींचते हैं, मन में वे लोग सोचते हैं कि नहीं जाऊँगा, नहीं जाऊँगा पर फिर भी आकर्षण इतना अधिक होता है कि न चाहते हुए भी उनकी ओर चले जाते हैं यह है मोहन विज्ञान। नन्दन विज्ञान और मोहन विज्ञान में यही अन्तर है। यहाॅं कृष्ण ही परमसत्ता होते हैं अन्य कोई नहीं और वे भक्तों को अपने व्यक्तिगत सम्बंधों से आकर्षित करते हैं। संसार से जुड़े होने के कारण तन्मात्राओं से परिचित लोगों को इन्हीं से परमपुरुष आकर्षित करते हैं पर ये तन्मात्रायें भौतिक संसार से सम्बंधित होती हैं मानसिक संसार से संबंधित नहीं होती हैं। परमपुरुष का जब गहराई से चिन्तन किया जाता है तो भक्त एक्टोप्लाजिमक सैलों से निकलने वाली गन्ध तन्मात्राओं को भौतिक संसार की तरह ही अनुभव करता है। इसी प्रकार रुप, रस, स्पर्ष और षब्द तन्मात्राओं के बारे में भी घटित होता है। एक्टोप्लाज्मिक संसार में कृष्ण कहते हैं आओ, आना ही पड़ेगा ,तुम आने के लिये रोक नहीं सकते। पास आ जाने पर उनके सुन्दर रूपको देखकर आॅंखें चोंधिया जाती हैं तथा भक्त का प्रत्येक अंग अपने भीतर कृष्णमय ही अनुभव करता है और फिर उनसे पृथक नहीं रह सकता। इस प्रकार परमपुरुष तन्मात्राओं के माध्यम से सबको अपने अधिक निकट ले आते हैं, मोहन विज्ञान का यही सार तत्व है।
चन्दू- यह बृन्दावन क्या है?
बाबा- भक्तगण भौतिक बृन्दावन में नहीं वरन् भाव के बृन्दावन में यात्रा करते हैं। कृष्ण ने कहा भी है कि आघ्यात्मिक बृन्दावन छोड़कर वे एक कदम भी कहीं नहीं जाते। इस प्रकार भक्त के हृदय के बृन्दावन में बृजगोपाल और पार्थसारथी दोनों मिलकर एक हो जाते हैं और परमपुरुष का लीलानन्द पक्ष, नित्यानन्द पक्ष में बदल जाता है। इसलिये उत्तम यह है कि मोहन तत्व के आभास होते ही बिना देर किये उनकी शरण में आ जाना चाहिये।
राजू- लेकिन जीवधारी तो असंख्य हैं मनुष्यों की सख्या भी धरती पर कम नहीं है, धरती के अलावा अन्य ग्रहोंपर भी जीवन सम्भव है तो फिर परमपुरुष को सभी से व्यक्तिगत रूपसे जुड़कर आनन्द पाना किस प्रकार सम्भव होता है?
बाबा- परमपुरुष ओतयोग और प्रोतयोग से सबसे जुड़े रहते हैं। ओतयोग का अर्थ है व्यक्तिशः जुड़ना और प्रोतयोग का अर्थ है सामूहिक रूपसे जुड़ना। बृजगोपाल ओतयोग से और पार्थसारथी प्रोतयोग से सब से जुड़े रहे। समाजिक चेतना को भीतर तक हिला देने के लिये छः घटकों की आवश्यकता होती है, आध्यात्मिक आदर्श , सामाजिक द्रष्टिकोण, सामाजिक आर्थिक सिद्धान्त, साहित्य और निर्देशक। कृष्ण ने अपने समय में उच्चस्तरीय सामाजिक चेतना जाग्रत की और बताया कि सभी के मिलजुल कर रहने से ही सामाजिक प्रगति हो सकती है पृथक पृथक रहकर नहीं। इसीलिये उन्होंने सामान्य जीवन को स्वाभाविक रूपसे उन्नत किये जाने पर बल दिया और जो भी इसके मार्ग में बाधक बना उसे समाप्त कर दिया। इस प्रकार कृष्ण की सामाजिक चेतना से कुछ लोगों के आनन्द में बाधा भले ही पहुँची हो पर इससे नन्दन विज्ञान का क्षेत्र और विस्त्रित हो गया।
इन्दु- परन्तु पार्थसारथी से तो केवल राजा लोग ही मिल पाते थे ?
बाबा- सत्य है, पर पार्थसारथी के निकट आकर लोग अपने मन की तरंग लम्बाई में बृद्धि का अनुभव करते थे। वे उनका स्मरण और चिन्तन करने पर भी अपनी तरंग लम्बाई में बृद्धि होने से आनन्द का अनुभव करते थे जो सामाजिक चेतना के जाग्रत होने पर ही सम्भव था। पार्थसारथी के अनन्त सद गुणों के चिन्तन में लोग उन्हीं में खो जाते थे, परमपुरुष का इस प्रकार चिन्तन करते उन्हीं में खो जाना रहस्यवाद कहलाता है। इस प्रकार सभी लोग उनसे अपना व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाये थे और केवल उन्हीं के सम्बन्ध में सोचना और उन्हीं का नाम सुनना चाहते थे जो प्रकट करता है कि वे नन्दन विज्ञान के स्वयं जन्मदाता थे अतः नन्दन विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में उनका परीक्षण कौन कर सकता है ?
रवि- कुछ लोग मोहनविज्ञान की चर्चा करते पाए जाते हैं और कहते हैं कि कृष्ण तो सबको मोह लेते थे, यह क्या नन्दन विज्ञान से अलग है ?
बाबा- नन्दन विज्ञान में आनन्द का आदान प्रदान होता है, पर मोहन विज्ञान इससे भिन्न है। निःसन्देह मानवता ने इसके थोड़े से पक्ष को अनुभव किया है पर यह विज्ञान विशिष्ठ रूप से परमपुरुष से संबंधित है कृष्ण से सम्बंधित है। यहाॅं कृष्ण से तात्पर्य दोनों बृज और पार्थसारथी कृष्ण से है। मोहन विज्ञान में ये दोनों एकसाथ मिल जाते हैं। मोहन विज्ञान में परमपुरुष, मनुष्यों को तन्मात्राओं या एक्टोप्लाज्मिक आकर्षण से अपने निकट खींचते हैं अथवा अन्य लोग उनके अनवरुद्ध आकर्षण से खिंचे चले जाते हैं। कृष्ण अपने आन्तरिक प्रेम से लोगों को अपने निकट खींचते हैं, मन में वे लोग सोचते हैं कि नहीं जाऊँगा, नहीं जाऊँगा पर फिर भी आकर्षण इतना अधिक होता है कि न चाहते हुए भी उनकी ओर चले जाते हैं यह है मोहन विज्ञान। नन्दन विज्ञान और मोहन विज्ञान में यही अन्तर है। यहाॅं कृष्ण ही परमसत्ता होते हैं अन्य कोई नहीं और वे भक्तों को अपने व्यक्तिगत सम्बंधों से आकर्षित करते हैं। संसार से जुड़े होने के कारण तन्मात्राओं से परिचित लोगों को इन्हीं से परमपुरुष आकर्षित करते हैं पर ये तन्मात्रायें भौतिक संसार से सम्बंधित होती हैं मानसिक संसार से संबंधित नहीं होती हैं। परमपुरुष का जब गहराई से चिन्तन किया जाता है तो भक्त एक्टोप्लाजिमक सैलों से निकलने वाली गन्ध तन्मात्राओं को भौतिक संसार की तरह ही अनुभव करता है। इसी प्रकार रुप, रस, स्पर्ष और षब्द तन्मात्राओं के बारे में भी घटित होता है। एक्टोप्लाज्मिक संसार में कृष्ण कहते हैं आओ, आना ही पड़ेगा ,तुम आने के लिये रोक नहीं सकते। पास आ जाने पर उनके सुन्दर रूपको देखकर आॅंखें चोंधिया जाती हैं तथा भक्त का प्रत्येक अंग अपने भीतर कृष्णमय ही अनुभव करता है और फिर उनसे पृथक नहीं रह सकता। इस प्रकार परमपुरुष तन्मात्राओं के माध्यम से सबको अपने अधिक निकट ले आते हैं, मोहन विज्ञान का यही सार तत्व है।
चन्दू- यह बृन्दावन क्या है?
बाबा- भक्तगण भौतिक बृन्दावन में नहीं वरन् भाव के बृन्दावन में यात्रा करते हैं। कृष्ण ने कहा भी है कि आघ्यात्मिक बृन्दावन छोड़कर वे एक कदम भी कहीं नहीं जाते। इस प्रकार भक्त के हृदय के बृन्दावन में बृजगोपाल और पार्थसारथी दोनों मिलकर एक हो जाते हैं और परमपुरुष का लीलानन्द पक्ष, नित्यानन्द पक्ष में बदल जाता है। इसलिये उत्तम यह है कि मोहन तत्व के आभास होते ही बिना देर किये उनकी शरण में आ जाना चाहिये।
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