Sunday 16 July 2017

137 बाबा की क्लास ( माइक्रोवाइटम या अणुजीवत् -2 , मन पर प्रभाव )

137 बाबा की क्लास ( माइक्रोवाइटम या अणुजीवत् -2 , मन पर प्रभाव )

राजू- विभिन्न प्रकार के माइक्रोवाइटा क्या एक ही प्रकार का कार्य करते  हैं?
बाबा-  तीन प्रकार के माइक्रोवाइटा में से जो सबसे कम सूक्ष्म होते हैं वे पूरे ब्रह्माॅंड में जीवन के बीज वाहक का कार्य करते हैं। अलग अलग स्तरों पर संघर्ष के कारण भौतिक संरचना में परिवर्तन होते हैं और विभिन्न प्रकार के जीव जन्तु और मनुष्य पैदा होते हैं। सूक्ष्म माइक्रोवाइटा की एक श्रेणी आभासी संसार में तन्मात्राओं के द्वारा क्रियाशील होती है और दूसरी सीधे ही मानव मन पर प्रभाव डालती है।

रवि-  मानव मन को प्रभावित करने वाले माइक्रोवाइटा कौन हैं और वे कैसे कार्य करते हैं?
बाबा- जो व्यक्ति अधिक से अधिक धन संग्रह करने की इच्छा रखते हैं ,वे यक्ष माइक्रोवाइटा के प्रभाव में होते हैं । वे इस मानसिक बीमारी से इतने  ग्रस्त हो जाते हैं कि धन संग्रह ही उनके जीवन का लक्ष्य बन जाता हैं। जब कोई व्यक्ति बिना किसी आदर्श  के धन संग्रह करने को अपना लक्ष्य बना लेता है तो यक्ष माइक्रोवाइटा उसके मन में उथल पुथल मचाने लगते हैं और उसकी यह मानसिक बीमारी यक्ष्मा से भी घातक हो जाती है।

इन्दु- तो क्या माइक्रोवाइटा व्यक्ति के लक्ष्य और संबंधित के कार्य के अनुसार ही मन को प्रभाकवित करते हैं?
बाबा- हाॅं,
1. जो व्यक्ति संगीत और नृत्य को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लेता है तो उसके मन में गंधर्व माइक्रोवाइटा सक्रिय हो जाते हैं ये मित्रवत व्यवहार करते हैं और व्यक्ति को सूक्ष्म ज्ञान की ओर ले जाकर सफलता दिलाते हैं।
2. जिन्हें सुन्दरता की भूख होती है उनके मन पर किन्नर माइक्रोवाइटा सवार हो जाते हें और वे भौतिकता की ओर ले जाकर उन्हें पतित कर सकते हैं। ये नकारात्मक माइक्रोवाइटा होते हैं।
3. वे , जो मन में नाम, यश  और ज्ञान की इच्छाओं को पालते हैं, विद्याधर माइक्रोवाइटा से प्रभावित हो जाते हैं और समाज में अच्छे कार्यों और अपने सद् गुणों  के द्वारा समाज में सम्मान पाते हैं। ये घनात्मक माइक्रोवाइटा होते हैं।
4. जो भौतिक जगत के सुखों और जड़ता के कामों में ही आनन्द पाते हैं और उन्हीं में रहना चाहते हें, उच्च विचारों और ईश्वर  संबंधी ज्ञान और कार्यों से दूर बने रहते हैं , वे प्रकृतिलीन माइक्रोवाइटा से प्रभावित होकर जड़ता की ओर बढ़ने लगते हैं। ये ऋणात्मक माइक्रोवाइटा कहलाते हैं।
5. परमपुरुष से दूर रहकर जिनके मन हमेशा  भौतिक पदार्थों, और लाभ की तलाश  में चारों ओर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकते रहते है। कोल्हू के बैल की तरह उनके मन बेचैन रहते हैं ऐसे व्यक्ति विदेहलीन माइक्रोवाइटा की चपेट में रहते हैं और हमेशा  उलझे रहते हैं। ये नकारात्मक माइक्रोवाइटा कहलाते हैं।

चन्दू- क्या माइक्रोवाइटा आध्यात्मिक प्रगति में सहायता नहीं करते?
बाबा- वे लोग जो आत्म साक्षात्कार के उद्देश्य  से अपना सब कुछ त्यागने और रहस्यात्मक अनभूतियों को जानने की तीब्र इच्छायें रखते हैं वे सिद्ध माइक्रोवाइटा के प्रभाव में होते हैं जो धनात्मक माइक्रोवाइटा कहलाते हैं। ये व्यक्ति को अनेक प्रकार से उचित मार्गदर्शन  देते हुये परम सत्ता से मेल कराने में सहयोग करते हैं। जो भी भक्त इन सिद्ध माइक्रोवाइटा के संपर्क में आये हैं और उन्हें समझ पाये हैं वे कहते हैं कि तथाकथित धार्मिक देवता विष्णु के हाथ में जो चक्र है वह और कुछ नहीं वल्कि सिद्ध माइक्रोवाइटा का साॅंकेतिक नाम है। स्पष्ट है कि माइक्रोवाइटा मनुष्यों के द्वारा निर्मित नहीं किये जा सकते वे परम सत्ता के द्वारा ही उत्सर्जित किये जा सकते हैं।

राजू- यदि वर्तमान वैज्ञानिक इन्हें खोज लेते हैं तो क्या पूरा रसायन विज्ञान ही बदल जाएगा ?
बाबा- माइक्रोवाइटा के कारण रसायन विज्ञान और समाज में भी परिवर्तन होगे जैसे, फैरस सल्फेट को   FeSO 7H2O      न लिख कर  उसके साथ माइक्रोवाइटा के ग्रुप और संख्या को भी लिखा जायेगा। जैसे, FeSO 7H2O   (group A mv 20 million)  आदि। अतः केवल रासायनिक समीकरण बदलेगा बाकी वही रहेगा। जीवन का उद्गम कार्बन परमाणु को न माना जाकर कहा जायेगा कि प्रोटोप्लाज्मिक सैल असंख्य माइक्रोवाइटा का एकत्रित ठोस रूप है। इस प्रकार प्रोटोप्लाज्मिक सैलों के माइक्रोवाइटा पर नियंत्रण कर मनुष्यों के शरीरों में भी परिवर्तन लाये जा सकेंगे। साधारण मनुष्य को असाधारण बनाया जा सकेगा। एक्टोप्लाज्मिक सैलों के माइक्रोवाइटा पर नियंत्रण कर मन और शरीरों पर अच्छे से अच्छे तरीके से नियंत्रण किया जा सकेगा। पदार्थों की संरचना वही रहते हुए उनके माइक्रोवाइटा की संख्या में परिवर्तन कर  आन्तरिक गुणों में परिवर्तन लाया जा सकेगा।

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