Thursday, 27 July 2017

139 औषधीय पौधे और उनका उपयोग

139 औषधीय पौधे और उनका उपयोग

चंद्रमा का प्रकाश सूर्य के प्रकाश की तरह औषधि नहीं है परन्तु वह मन में विभिन्न प्रकार की भावनाओं को जन्म देता है। चंद्रमा के प्रकाश में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि औषधीय जड़ीबूटियों और पौधों में औषधीय गुणों का संचार उसके प्रकाश की तीब्रता के अनुसार आता है अर्थात् कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष के अनुसार। यही कारण है कि उन पौधों को उखाड़ने और उनसे औषधियाॅं बनाते समय विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है। उनमें औषधीय गुणों का परिवर्तन दिन के विभिन्न प्रहरों के अनुसार होता रहता है इसका भी औषधि का प्रयोग करने के समय मन में विचार रखना होता है। जिन औषधियों के गुण चाॅंद्र दिन या ग्रहीय स्थिति के कारण परिवर्तित होते हैं वे ‘‘कुल्या‘‘ कहलाते हैं। प्राचीन काल से ही मनुष्य केवल जड़ी बूटियों के पदार्थों से औषधियों का निर्माण नहीं करते थे वरन् प्राणियों से भी उनका प्रचुर निर्माण किया जाता था। आयुर्वेदिक, वैद्यक और यूनानी पद्धतियों में प्राणियों के लिवर, तीतर का मास आदि  प्रयुक्त होता रहा है। बकरे के मास और उसके सींग से निकाले गए तेल से औषधियों का निर्माण होता है। विभिन्न प्राणियों के लिवर और पेंक्रियाज से एलोपैथी विधियों से भी दवायें बनायी जाती हैं। वर्तमान में इन्सुलिन बनाने में उनका उपयोग होता है। काडलिवर आइल और शार्कआइल बहुत बार प्रयोग में लाया जाता है। इनसे टेबलेट ही नहीं इंजेक्शन भी बनाए जाते हैं। होमियोपैथी की ‘नाज‘ ‘चिना‘ और ‘एपिस‘ दवाएं पूर्णतः प्राणियों से ही बनाई जाती हैं। मनुष्य की जान बचाने के लिए प्राणियों की हत्या की जाना उचित नहीं माना जा सकता परन्तु इसे तभी किया जाना चाहिए जब कोई अन्य विकल्प न हो।  यह सार्वभौतिक स्वीकृत सिद्धान्त है कि  जब प्राणियों को मार कर ही औषधि बनाया जाना हो तो जहाॅं तक संभव हो उन प्राणियों को मारा जाना चाहिए जो मानव के जन्मजात शत्रु हैं, परन्तु मानव के मित्र प्राणियों को नहीं मारा जाना चहिए।

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