151 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
ऋषिगण कहते हैं, सब प्रसन्न रहें, सभी भौतिक अथवा मानसिक क्लेशों से मुक्त रहें, सभी लोग एक दूसरे के उन्नत पक्ष की ओर ही देखें ।
अर्थात् हमें सदा ही प्रत्येक व्यक्ति का उज्जवल पक्ष ही देखना चाहिये और रचनात्मक आलोचना का स्वागत करना चाहिये। जैसे, कोई अभिभावक देखते हैं कि उनका पाल्य स्कूल में ठीक ढंग से अध्ययन नहीं कर रहा है तो उन्हें उसकी पढ़ाई करने की विधियों पर रचनात्मक आलोचना करना चाहिये ताकि उसे अपने को उन्नत बनाने का अवसर मिल सके। कोई कोई यह कह सकते हैं कि बेकार ही बच्चे को पढ़ाई करने के लिये डाॅंटते रहते हैं, परंतु वे यह नहीं जानते कि बच्चे के हित में ही यह किया जा रहा है। इसलिये उन्नत पक्ष को देखने का अर्थ हुआ कि जहाॅं कहीं भी सामाजिक या व्यक्तिगत बुराइयाॅं जन्म ले रही हों उन्हें पहचान कर दूर करने का तत्काल उपाय करना चाहिये तभी समाज अथवा व्यक्ति की उन्नति संभव हो सकेगी।
सभी लोगों के स्वभाव में उजला और अंधेरा पक्ष रहता है, जैसे किसी के पास बहुत सी योग्यतायें हों परंतु बहुत ही कंजूस हो तो यह कंजूसी अंधेरा पक्ष हुआ । अतः जो व्यक्ति जैसे विचार करता है वैसा ही वह धीरे धीरे होता जाता है। यदि उसका लक्ष्य महान है तो वह महान हो जायेगा परंतु यदि उसके विचार नीच हैं तो वह निम्न स्तर का ही हो जायेगा। जो कोई भी, किसी व्यक्ति या घटना के धनात्मक पक्ष को ही देखता है और रचनात्मक आलोचना का आदर करता है उसे "सुलोचन" और जो महिला इस प्रकार की प्रवृत्तियाॅं रखती है उसे "सुलोचना" कहते हैं। इसलिये अपने परिवार के किसी सदस्य के द्वारा किये जा रहे या समाज में होने वाले किसी प्रकार के अन्याय, आडम्बर और समाजविरोधी गतिविधियों का विरोध करना ‘‘भद्राणि पश्यन्तु‘‘ के अन्तर्गत ही आयेगा।
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