153 दुष्टों के आश्चर्यजनक लक्षण
जीव वैज्ञानिक कहते हैं कि वे प्राणी जो समुद्रों की गहराई में रहते हैं अंधेरे में जन्म लेने और उसी में रहने के कारण, उनकी आॅंखे नहीं होती । इसलिये स्वभावतः उनके शरीर से प्रकाश निकलता है और सुरक्षा के लिये उनकी रीढ़ बड़ी ही संवेदनशील होती है। किन्हीं किन्हीं की ग्रंथियों में विष निकलता है और किन्हीं की आवाज में मधुरता होती है। इस प्रकार निकलने वाले कम्पनों की सहायता से उनके देख पाने की कमी को पूरा करने के लिये प्रकृति यह व्यवस्था कर देती है और वे अपना अस्तित्व इन सूक्ष्म स्पन्दनों की सहायता से बनाये रखते हैं।
इसी प्रकार जन्मजात दुष्ट व्यक्ति की आघातों को सहन करने की क्षमता सामान्य व्यक्तियों से अधिक होती है। जितनी मार पड़ने पर किसी सामान्य व्यक्ति की मौत हो जाती है उतनी, इस प्रकार के जन्मजात दुष्टों के द्वारा आसानी से सहन कर ली जाती है। तात्पर्य यह कि ऐंसे लोगों का एकपक्षीय विकास होने लगता है। इन व्यक्तियों के अंगों से खून भी बहने लगता है तो उन्हें उसका कोई भी कष्ट अनुभव नहीं होता वरन् उन्हें खून के बह जाने पर आराम ही मिलता है।
इस प्रकार के लोगों को प्रकृति के इशारों का पहले से ही बोध भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार के मामलों में वे कुछ हद तक मानवेतर प्राणियों जैसे हो जाते हैं।
फिर भी, कितना आश्चर्य है कि इस प्रकार की शक्तियों को पाने के लिये सद् गुणी व्यक्ति को बहुत परिश्रमपूर्वक कठिन आध्यात्मिक साधना करना पड़ती है।
जीव वैज्ञानिक कहते हैं कि वे प्राणी जो समुद्रों की गहराई में रहते हैं अंधेरे में जन्म लेने और उसी में रहने के कारण, उनकी आॅंखे नहीं होती । इसलिये स्वभावतः उनके शरीर से प्रकाश निकलता है और सुरक्षा के लिये उनकी रीढ़ बड़ी ही संवेदनशील होती है। किन्हीं किन्हीं की ग्रंथियों में विष निकलता है और किन्हीं की आवाज में मधुरता होती है। इस प्रकार निकलने वाले कम्पनों की सहायता से उनके देख पाने की कमी को पूरा करने के लिये प्रकृति यह व्यवस्था कर देती है और वे अपना अस्तित्व इन सूक्ष्म स्पन्दनों की सहायता से बनाये रखते हैं।
इसी प्रकार जन्मजात दुष्ट व्यक्ति की आघातों को सहन करने की क्षमता सामान्य व्यक्तियों से अधिक होती है। जितनी मार पड़ने पर किसी सामान्य व्यक्ति की मौत हो जाती है उतनी, इस प्रकार के जन्मजात दुष्टों के द्वारा आसानी से सहन कर ली जाती है। तात्पर्य यह कि ऐंसे लोगों का एकपक्षीय विकास होने लगता है। इन व्यक्तियों के अंगों से खून भी बहने लगता है तो उन्हें उसका कोई भी कष्ट अनुभव नहीं होता वरन् उन्हें खून के बह जाने पर आराम ही मिलता है।
इस प्रकार के लोगों को प्रकृति के इशारों का पहले से ही बोध भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में इस प्रकार के मामलों में वे कुछ हद तक मानवेतर प्राणियों जैसे हो जाते हैं।
फिर भी, कितना आश्चर्य है कि इस प्रकार की शक्तियों को पाने के लिये सद् गुणी व्यक्ति को बहुत परिश्रमपूर्वक कठिन आध्यात्मिक साधना करना पड़ती है।
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