Sunday, 1 April 2018

185 पशु वध

185 पशु वध
हमारी धरती पर अनेक मतों के अनुयायी अपने अपने धार्मिक उत्सव में बकरे या भैंसा की बलि देते हुए किसी देवी माॅं का नामोच्चार करते हैं ताकि वह प्रसन्न हो जाएं । तो, उस समय वे यह जानते हैं कि जिस जीवधारी की वे हत्या कर रहे हैं वह प्रकृति का ही अंग है और मर जाने पर उसे वापस नहीं लाया जा सकता परन्तु , वे लोग फिर भी उसकी हत्या करते हैं और कहते हैं कि यह देवि या देवता की प्रसन्नता के लिए किया जा रहा है और उनके धर्म का अंग है।
वास्तव में यह उन आडम्बरी लोगों की भावजड़ता या ‘dogma’ ही कहलाएगा जो यह शिक्षा देते हैं कि अन्य सभी जीव मनुष्यों के उपभोग की सामग्री हैं। यदि कोई अपने भाई की हत्या माॅं के सामने करेगा तो क्या माॅं प्रसन्न होगी? नहीं , वह नहीं हो सकती। वह तो हर संभव प्रयत्न करेगी कि उसका पुत्र बच जाए , वह उसकी हत्या अपने सामने नहीं होने दे सकती।
इन दो घटनाओं में अंतर यह है कि तथाकथित देवि या देवता उस हत्या को किसी भी प्रकार से रोक नहीं सकते जबकि माॅं आवश्यक कार्यवाही कर उसे रोकने में सक्षम है । स्पष्ट है कि वह देवी उन अनुयायियों की स्वार्थलोलुप आपूर्ति हेतु की गई कल्पना की उड़ान के अलावा कुछ नहीं है अन्यथा अवश्य ही वह इस दुष्टता भरे अनुपयोगी कृत्य को रोकने में हस्तक्षेप करती ??

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